यादों में स्वतंत्रता सेनानी बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष बाबू रामदयालु सिंह

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास के एक अप्रितम सेनानी, एक धाकड़ अधिवक्ता, कर्मयोगी, राष्ट्रभक्त और संत राजनेता बाबू रामदयालु सिंह की की यादें आज भी क्षेत्र के जनमानस में तरोताजा है।

बाबू रामदयालु सिंह का जीवन यात्रा:-

रामदयालु सिंह का जन्म जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के हद में कटरा थाने के गंगेया ग्राम स्थित एक संपन्न भूमिहार ब्राह्मण बाबू चंद्रदेव सिंह के तृतीय पुत्र के रूप में वर्ष 1886 के कार्तिक माह में हुआ था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा कटरा के लोअर प्रायमरी स्कूल में हुई और सन 1907 में कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक पास करने के बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की।कोलकाता में पढ़ाई के दौरान ही सन् 1906 में रामदयालु सिंह की शादी कटरा थाना के लखनपुर ग्राम के बाबू डोमन ठाकुर की पुत्री रामप्यारी देवी के साथ हो गया। रामदयालु सिंह को कोई पुत्र नहीं था। उनकी सिर्फ दो पुत्री थी।

उन्होंने सन् 1910 में वकालत पास करने के बाद पटना में अपना वकालत शुरू किया। लेकिन पटना में वकालत में उनका मन नहीं लगा। वे मुजफ्फरपुर आ गए। राम दयाल बाबू ने जिस समय मुजफ्फरपुर में वकालत शुरू किया, उस समय मुजफ्फरपुर कचहरी में बंगाली अधिवक्ताओं की धाक थी, लेकिन रामदयालु बाबू बहुत कम समय में अपनी वाक् चतुराई के बल पर मुजफ्फरपुर के बड़े वकील बन गए। उत्तर बिहार के बड़े-बड़े जमींदार और साहूकार उनके मोवकील बन गए और रामदयालु सिंह ने वकालत पेशा से अकूत धन कमाया।

रामदयालु सिंह ने सैकडों बीघा जमीन अपने गांव पर खरीद की। साथ हीं बररी कोठी भी खरीद किया। उनका परिवार एक मध्यम किसान से बहुत बड़ा जमींदार परिवार हो गया।

स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश:-

इलाहाबाद में वकालत की पढ़ाई के दौरान सन् 1908 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान रामदयालु सिंह का परिचय पंडित मदन मोहन मालवीय और तिरहुत क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने गए बाबू लंगट सिंह से हुआ। रामदयालु सिंह इन दोनों के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए। सन् 1910 में इलाहाबाद कुंभ के दौरान इनको संतों के साथ संपर्क का मौका मिला और ये पक्का सनातनी हो गए।

नियमित गीता पाठ और सन्ध्या वंदन का नियम अपने अंतिम जीवन तक निभाया। रामदयालु सिंह बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले की विचारधारा से काफी प्रभावित थे। सन् 1919 में रोलेट एक्ट के विरुद्ध मुजफ्फरपुर के सरैयागंज में जब एक आम सभा हुई तो पहली बार उस आम सभा में रामदलयू सिंह भाग लिए और स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में अपना पहला भाषण दिया, जिससे अन्य नेतागण उनसे काफी प्रभावित हुए। 7 दिसंबर 1920 को जब महात्मा गांधी चंपारण यात्रा के दौरान मुजफ्फरपुर रात्रि में रुके तो रामदयालु सिंह का संपर्क महात्मा गांधी से हुआ।

महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर रामदयालु सिंह उनके साथ चंपारण किसान आंदोलन में भाग लिया। सन् 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर शुरू हुए असहयोग आंदोलन में मुजफ्फरपुर के बहुत से वकीलों ने अपना वकालत पेशा छोड़ दिया।

उस समय रामदयालु सिंह भी असहयोग आंदोलन से जुड़े और सामाजिक कार्यों में आगे बढ़कर भाग लेना शुरू किया और सन् 1922 में रामदयालु सिंह ने वकालत पेशा छोड़कर अपने को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया।

एक कुशल प्रशासक और संगठन कर्ता:- सन् 1922 में रामदयालु सिंह मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। उन्होंने पूरे मुजफ्फरपुर जिले में स्वतंत्रता स्वयंसेवकों को कांग्रेस से जोड़ा और सन् 1922 में श्रीकृष्णा सिंह के साथ इनको बिहार में स्वराज दल के संगठन का प्रभार दिया गया।

सन् 1923 में रामदयालु सिंह मुजफ्फरपुर नगर पालिका के उपाध्यक्ष चुने गए। उनके कार्यों को देखते हुए सन् 1924 में मुजफ्फरपुर जिला बोर्ड का इन्हें अध्यक्ष बनाया गया। मुजफ्फरपुर जिला बोर्ड के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने जिले के प्रत्येक गांव का भ्रमण कर ग्रामीण सरकारी स्कूलों के विकास के लिए कार्य किया।

दर्जनों स्कूल माध्यमिक और प्राइमरी खुलवाएं। अंग्रेजों द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को खत्म कर दिया गया था। लेकिन रामदयालु सिंह ने पुराने आयुर्वेदिक चिकित्सा को पुनर्जीवित करने के लिय मुजफ्फरपुर जिले में आयुर्वेद चिकित्सा के लिए कई एक जगह आयुर्वेदिक अस्पताल बनबायें और वैद्य को नियुक्त किया।

सन् 1924 आते-आते रामदयालु सिंह की गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होने लगी। बिहार उड़ीसा संयुक्त प्रांत के लेजिसलेटिव असेंबली चुनाव में रामदयालु सिंह पुपरी बेलसन्ड से सदस्य निर्वाचित हुए। सन् 1926 से 1928 तक वे बिहार ओड़िसा संयुक्त प्रान्त की विधान सभा में विरोधी दल के नेता रहे।

बिहार में किसान सभा की स्थापना:-

स्वामी सहजानन्द सरस्वती बक्सर से लेकर मजफ्फरपुर जिले के रैयत किसानों को उनका हक दिलाने के लिये कार्य कर रहे थे। साथ ही बिहार के कांग्रेसी नेताओं से उनका अच्छा सम्पर्क था। उस समय रैयत तथा किसान, जमींदार और सरकार से त्रस्त थी। रामदयालु सिंह के प्रस्ताव पर सन् 1929 के 17 नबम्बर को हरिहर क्षेत्र मेला के अवसर पर हजीपुर के गंगा गंडक के संगम पर एक विशाल किसान सम्मेलन किया गया।

सम्मेलन की पूरी व्यवस्था रामदयालु सिंह के निर्देश पर हजीपुर के किशोरी प्रसन्न सिंह और सोनपुर के सबलपुर के किसानों ने की। इसी किसान सम्मेलन में बिहार प्रांतीय किसान सभा का जन्म हुआ और स्वामी सहजानन्द अध्यक्ष तथा श्रीकृष्ण सिंह महामंत्री बनाये गए। राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, रामदयालु सिंह सदस्य चुने गए।

बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष:-

सन् 1922 से 1937 तक रामदयालु सिंह मजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अपनी संगठनात्मक क्षमता के बल पर उन्होंने मजफ्फरपुर जिला में स्वतंत्रता स्वयंसेवको का जाल फैला दिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास मे मजफ्फरपुर का एक अपना इतिहास है। सन् 1929 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में लिए गये निर्णय के अनुसार 26 जनवरी 1930 को जिला मुख्यालय में स्वतंत्रता दिवस और तिरंगा झंडा फहराना था।

26 जनवरी 1930 को रामदयालु सिंह के प्रयास से समूचे जिले से युवा स्वयंसेवक हजारों की संख्या में मजफ्फरपुर के तिलक मैदान पहुंच गए, लेकिन अंग्रेजो की पुलिस ने तिरंगा झंडा फहराने पहुंचे स्वयंसेवक पर लाठी चार्ज कर दिया। वहा भगदड़ मच गई, लेकिन बैकुंठ शुक्ल ने पुलिस के डंडो की मार की परवाह नहीं करते हुए तिरंगा झंडा फहरा दिया।

बाद में पुलिस ने बैकुंठ शुक्ल सहित दर्जनों युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सन् 1930 के अप्रैल में गांधी जी द्वारा नमक सत्याग्रह का ऐलान हुया। रामदयालु सिंह के नेतृत्व में शिवहर में नमक सत्याग्रह चलाया गया, जिसमें वे पहली बार गिरफ्तार किए गये।

सन् 1932 में रामदयालु सिंह को अंग्रेजों ने उनको पत्नी के साथ गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में रखा, जहां से दोनों 6 माह बाद रिहा हुए। 15 जनवरी 1934 में आये भूकम्प से उत्तर बिहार में काफी नुकसान हुया। तब उन्होंने कांग्रेसी स्वयंसेवक महेश प्रसाद सिंह, दीपनारायण सिंह, किशोरी प्रसन्न सिंह इत्यादि के सहयोग से भुकम्प पीड़ितों को काफी मदद पहुंचाई ।

सन 1936 में 1935 शासन अधिनियम के अंतर्गत बिहार प्रांतीय एसेम्बली विधान सभा का चुनाव हुया। रामदयालु सिंह खुद पुपरी बेलसंड क्षेत्र से चुनाव जीते औऱ पूरे उत्तर बिहार से कांग्रेसी उम्मीदवार को विजयी बनाया। विधान सभा मे कांग्रेस का बहुमत हुआ लेकिन प्रधानमंत्री के पद को लेकर कांग्रेस में गुटबाजी शुरू हो गईं।

सारण जिले के कद्दावर नेता नारायण प्रसाद सिंह, बीहट वाले रामचरित्र सिंह, दीपनारायण सिंह, महेश प्रसाद सिंह, बिंदेश्वरी वर्मा इत्यादि नेता रामदयालु सिंह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे।महात्मा गांधी का भी संदेश रामदयालु सिंह के पक्ष में आया लेकिन दक्षिण बिहार के कृष्ण बल्लभ सहाय, पंडित बिनोदानन्द झा, अनुग्रह नारायण सिंह इत्यादि नेताओं की गुटवाजी से खिन्न होकर कांग्रेस विधायक दल की बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए रामदयालु सिंह ने श्रीकृष्ण सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा।

श्रीकृष्ण सिंह 20 अप्रील 1937 को बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने। डॉ श्रीकृष्ण सिंह औऱ अन्य नेताओं के दबाव पर 26 जुलाई 1937 को रामदयालु बाबू सर्वसम्मति से विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष बने।

राजनीति से सन्यास:-

सन् 1937 में बिहार विधानसभा के प्रथम अध्य्क्ष बनने के बाद रामदयालु बाबू ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया और अपने को दलगत राजनीति से दूर कर लिया। बिहार विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में उनकी निष्पक्षता के सभी दल के नेता कायल थे।

सन् 1939 में गांधीजी के आह्वान पर डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया, लेकिन रामदयालु बाबू ने अध्यक्ष पद से त्याग पत्र नहीं दिया औऱ जीवन पर्यंत बिहार विधान सभा के अध्यक्ष रहे।

परिवार का त्याग और वैराग्य जीवन:-

सन् 1939 में श्रीकृष्ण सिंह मन्त्रिमण्डल के त्याग पत्र के बाद जहाँ सभी कांग्रेसी स्वतन्त्रता आंदोलन में कूद पड़े, वहीं रामदयालु बाबू ने अपने को स्वतंत्रता आंदोलन से अलग कर लिया। एक बैरागी सन्त की भांति देश के धार्मिक स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया। उनकी धर्मपत्नी रामप्यारी देवी अपने मायके में जाकर रहने लगी।

हाजीपुर के नारायणी तट पर स्थित एक मठ या मनियारी मठ के महन्थ अपने दोस्त दर्शन दासजी के मठ पर ही रामदयालु बाबू रहने लगे। रामदयालु बाबू के कहने पर महन्तजी ने मजफ्फरपुर में एक महिला कॉलेज की स्थापना की जो आज महन्थ दर्शन दास महिला कॉलेज के नाम से जाना जाता है। रामदयालु बाबू 28 नबम्बर 1944 को महन्थ मनियारी मठ पर ही इस नश्वर दुनिया को छोड़कर चले गए।

सनातन और भारतीय संस्कृति से प्रेम:-

रामदयाल बाबू पक्के सनातनी थे। वे नियमित रूप से गीता पाठ करते आए और संस्कृत शिक्षा के लिए प्रयासरत रहे। सन् 1926 में रामदयाल बाबू ने मुजफ्फरपुर के गनीपुर में दान में ली गई 22 एकड़ जमीन में संस्कृत शिक्षा के लिए तिलक विश्वविद्यालय और ब्रह्मचर्य आश्रम कायम किया, जिसमें छात्रों को पुराने गुरुकुल की भांति शिक्षा दी जाने लगी। बाबू रामदयालु सिंह की मृत्यु के बाद उनके मित्र महन्थ दर्शन दास और बाबू महेश प्रसाद सिंह के अथक प्रयास से सन् 1948 में उक्त ब्रह्मचर्य आश्रम वाली भूमि में एक महाविद्यालय की स्थापना 9 मई 1948 को की गई।

जिसका शुभारंभ बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह द्वारा किया गया। यह महाविद्यालय आज रामदयालु सिंह महाविद्यालय के नाम से उच्च शिक्षा का केंद्र है। इस महाविद्यालय के आसपास का गन्नीपुर का क्षेत्र रामदयालु नगर के नाम से जाना जाता है। इस महाविद्यालय के छात्रों की सुविधा के लिये महाविद्यालय के नजदीक रेलवे स्टेशन बना जो रामदयालु नगर स्टेशन के नाम से जाना जाता है।

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