एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। अगर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार आलू झारखंड को नहीं देने पर हठधर्मिता अपनाती है तो जल्द ही झारखण्ड से एक छटाक कोयला एवं अन्य खनिजो को पश्चिम बंगाल जाने नही दिया जायेगा।
उपरोक्त बाते 3 दिसंबर को आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने झारखंड की राजधानी रांची के हटीया स्थित अपने कार्यालय में कही। नायक प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आलू झारखंड को नहीं देने पर अपना अड़ियल रुख बनाये रखने पर प्रतिक्रिया में उक्त बाते कही।
उन्होंने कहा कि प. बंगाल सरकार द्वारा झारखंड को आलू नहीं देने के कारण झारखंड में आलू की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि देखी जा रही है। राज्य के गरीब गुरबा व् आमजनों से आलू दूर होती जा रही है।
नायक ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आलू निर्यात प्रकरण में हठधर्मिता और अड़ियल रुख अपना रहीं है, जो पड़ोसी राज्य होने तथा संकट व् दु:ख सुख में साथ देने के नैतिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रही है। यह शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण के पटाक्षेप हेतु झारखंड के मुख्य सचिव अलका तिवारी और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव स्तर से वार्ता भी किया जा चुका है, बावजूद इसके अभी तक कोई सफल परिणाम नहीं निकला है।
अब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तुरंत बिना देर किए दो टूक में प. बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात करना चाहिए और इस मामले का समाधान निकालने का सफ़ल एवं ठोस प्रयास होना चाहिए, ताकि जनता को आलू के बढ़ते महंगाई से निजात मिल सके।
नायक ने साफ एवं कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि अगर मुख्यमंत्री सोरेन द्वारा प. बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी से वार्ता करने के बाद भी कोई सकरात्मक पहल ममता दीदी द्वारा नहीं किया जाएगा तो झारखंड से एक छटाक कोयला एवं अन्य खनिजों को प. बंगाल जाने नहीं दिया जाएगा, जिसकी जिम्मेवारी प. बंगाल की ममता सरकार की होगी।
कहा कि जब वे पड़ोसी धर्म नहीं निभायेगी तो झारखंड भी अपना पड़ोसी धर्म नहीं निभायेगा और जैसे को तैसा वाली नीति अपनाई जायेगी। उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से यह भी मांग किया कि वे हरेक जिला में कोल्ड स्टोरेज बनाने की दिशा में काम करे और झारखंड के किसानो को हर खेत मे पानी पहुंचाने की दिशा मे ठोस रणनीति बनाए। हमारे किसान इतना आलू पैदा कर देगें कि आलू पैदावार में झारखंड आत्मनिर्भर हो ही जायेगा और दुसरे राज्य मे भी आलू निर्यात कर यहां के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो जायेंगे।
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