बोकारो के विभिन्न थानों से होकर गुजरती है सैकड़ों कोयला लदी साइकिलें

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। झारखंड के बोकारो जिले में जिधर भी नजर जाता है अवैध कोयले की ढूलाई बदस्तूर देखा जा रहा है। मानो बोकारो जिला अवैध कारोबारियों का शरणस्थली बन गया है।

जानकारी के अनुसार बोकारो जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों से रोज़ाना सैकड़ों कोयला लदी साइकिलें गुजरती हैं। यह नज़ारा अब आम हो चुका है, लेकिन इसके पीछे का खेल बहुत बड़ा है। साइकिलों पर लदे कोयले की यह तस्करी सिर्फ छोटे स्तर पर नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नेटवर्क के तहत होती है, जिसमें कई प्रभावशाली सफेदपोस भी शामिल हो सकते हैं।

कैसे होती है तस्करी

बोकारो और आसपास के क्षेत्रों में अवैध कोयला खनन कोई नई बात नहीं है। साइकिलों के जरिये तस्करी का यह तरीका वर्षों से चला आ रहा है। अवैध रूप से निकाला गया कोयला साइकिलों पर लादकर कुछ खास जगहों तक पहुँचाया जाता है। फिर वहाँ से इन कोयलों को ट्रकों, ऑटो और अन्य माध्यमों से बड़े व्यापारियों और फैक्ट्रियों तक भेज दिया जाता है। यह पूरा खेल पुलिस और प्रशासन की नज़रों के सामने चलता है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ छोटे स्तर पर ही शिकंजा कसा जाता है।

थानों के सामने से गुजरती हैं साइकिलें, फिर भी चुप्पी!

बोकारो जिला के हद में बेरमो, चंद्रपुरा, नावाडीह, पेटरवार, कसमार, गोमिया और चास जैसे क्षेत्रों में इस तरह की गतिविधियाँ आम है। इन क्षेत्रों से होकर रोज़ाना हजारों की संख्या में साइकिल सवार कोयला ढोते देखे जा सकते हैं। ये साइकिलें थानों और पुलिस चौकियों के पास से होकर गुजरती हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिलती। सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस वाकई इससे अनजान है, या फिर जानबूझकर अनदेखी कर रही है?

छोटे तस्करों पर कार्रवाई, बड़े ओहदेदार बच जाते हैं

ज्ञात हो कि, जब भी पुलिस कोई कार्रवाई करती है, तो वह सिर्फ छोटे स्तर के कोयला चोरी या साइकिल सवारो तक ही सीमित रहती है। असल मास्टरमाइंड और बड़े व्यापारी तथा ओहदेदार हमेशा बच जाते हैं। पुलिस कभी-कभी चेकिंग के नाम पर कुछ साइकिलें ज़ब्त कर लेती है या फिर छोटे तस्करों को पकड़ लेती है, लेकिन यह दिखावे के अलावा कुछ नहीं होता। कोयला का अवैध धंधा मोटर साइकिल, पिकअप वाहन, टैक्टर से किया जा रहा है।

सब कोयला बंगाल, वाराणसी तथा डेहरी ऑन सोन गलत कागजात पर भेजा जाता है। इस रूट के संबंधित थाना को पासिंग के नाम पर चढ़ावा दिया जाता है। वही जिस थाना क्षेत्र से कोयला लोड कर भेजा जाता है, उस थाना वाले को मोटी रकम अवैध धंधा करने वाले को देना पड़ता है। जिसके चलते अवैध धंधा कोई ऐसा दिन नहीं कि चलता नहीं हो। इससे अवैध कोयला कारोबारी का मनोबल इतना बढ़ गया है कि अगर कोई इसके विरुद्ध बोल दिया तो उसकी खैर नहीं।

गरीबों की मजबूरी या संगठित अपराध?

कोयला ढोने वाले अधिकतर गरीब तबके से आते हैं। उनमें से कई मजदूर, बेरोजगार युवा या स्थानीय ग्रामीण होते हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए इस धंधे में शामिल हो जाते हैं। लेकिन यह सिर्फ एक छोटा हिस्सा है। इसके पीछे बड़े व्यापारियों और संगठित अपराधियों का पूरा नेटवर्क काम करता है, जो इस अवैध कोयले को फैक्ट्रियों और अन्य राज्यों तक पहुँचाने में जुटे हैं।

क्या है समाधान?

प्रशासन को चाहिए कि वह सिर्फ छोटे तस्करों पर कार्रवाई करने के बजाय बड़े कारोबारियों और इस पूरे नेटवर्क के मास्टरमाइंड तक पहुँचे। कोयला चोरी रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्रों में सख्त निगरानी और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए। साथ हीं अवैध व्यापार से जुड़े स्थानीय गरीबों को वैकल्पिक रोजगार के अवसर दिए जाएं, ताकि वे इस अवैध धंधे में न फँसे। इसके अलावा कोयला लदी साइकिलों की आवाजाही पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाए। थानों की जवाबदेही तय की जाए।

अगर प्रशासन ने सख्त कदम नहीं उठाए, तो यह अवैध कारोबार यूँ ही फलता-फूलता रहेगा और छोटे तस्करों की आड़ में बड़े अपराधी बचते रहेंगे। अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या पुलिस और प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से लेगा, या फिर चुपचाप तमाशा देखता रहेगा?

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