ए. के. जायसवाल/पेटरवार (बोकारो)। यह् सर्वविदित है कि, जिसने भी अहं किया उसका विनाश निश्चित है। हिरणाकश्यपू की बहन होलिका ने ब्रह्मा से मिले वरदान पर अहं किया और उस अहंकार रूपी अग्नि में खुद जल मरी।
होलिका की तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा ने उसे बरदान दिया था कि वह आग से कभी नहीं जलेगी।वरदान पाकर किसी को भी दुसरो की भलाई की सोंचनी चाहिए, न कि किसी की बुराई की। रामायण मे भी स्पस्ट लिखा है कि पर हित सरस धरम नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई’। अर्थात दूसरे की बुराई के बारे मे सोंचे, खुद दुःख भोगें।
दैत्यराज हिरणाकश्यपू की बहन होलिका ने भाई के आदेश पर भतीजे प्रह्लाद को लेकर उसे जलाने व खुद को बचने के उदेश्य से जलती चिता मे बैठ गई। इसका परिणाम बिल्कुल विपरीत हुआ। प्रभु भक्त प्रह्लाद आग से बच निकला तथा होलिका जलकर राख हो गई।
इसी को लेकर फाल्गुन पूर्णिमा की रात हर साल पूरे देश मे होलिका दहन कर दूसरे दिन हम एक दूसरे को रंग, अवीर, गुलाल लगाकर खुशियां मनाते आ रहे हैँ। इसे आज समाज को आत्मसात भी करने की जरूरत है, कि मन मे पाप उत्पन्न होने से क्या परिणाम होता है। अहंकार को समाप्त करने का प्रतीक है होलिका दहन। सभी को पावन पर्व होली की ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाएं।
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