सोनपुर में 9 मार्च को थावे विद्यापीठ का एक दिवसीय राष्ट्रीय विशेष अधिवेशन
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर स्थित लोक सेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत विष्णु दास उदासीन उर्फ मौनी बाबा ने 6 मार्च को एक भेंट में कहा कि आश्रम के कला दीर्घा में आगामी 9 मार्च को कला, साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए समर्पित थावे विद्या पीठ के बैनर तले आयोजित होने वाला एक दिवसीय राष्ट्रीय विशेष अधिवेशन सह फूलों की होली का आयोजन किया गया है। कहा कि उक्त अधिवेशन समसामयिक एवं वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि आज शरीर और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक केमिकल युक्त रंगों के स्थान पर फूलों की होली को अपनाने की जरुरत है। सोनपुर स्थित लोकसेवा आश्रम में इस परंपरा की शुरुआत इस वर्ष की होली से होने जा रहा है।
उन्होंने कहा कि वसन्तोत्सव होली जिसमें भिन्न-भिन्न रंगों से होली खेलते हुए आमजन एक-दूसरे को रंगों से ऐसा रंगीन बना देते हैं कि उसका चेहरा बेतुका और वैभवहीन हो जाता है, जिससे पहचान भी कठिन हो जाती है। उन्होंने कहा कि सदियों से यह रंगों का त्यौहार अति वैभव पूर्ण एवं उल्लासमय रूप में मनाया जाता रहा है, पर अब इसमें कई प्रकार की कुरीतियों का समावेश होता जा रहा है।
कहा कि रंगों की मार अभद्र हो गयी हैं। बनावटी केमिकल से बने रंग ने इस त्योहार के वैभव को श्रीहीन करना शुरु कर दिया है। उन्होंने कहा कि पहले जड़ी-बूटियों, फूलों से बने अबीर-गुलाल, कुमकुम आदि रंगों का प्रयोग या उपयोग होली में हुआ करता था, जिससे व्यक्ति का चेहरा चमकता और दमकता था। वहीं, आज का सत्यानाशी बनावटी रंग ने तो व्यक्ति का हुलिया ही बिगाड़ रहा है। यही वजह है कि समाज का एक वर्ग इस उल्लासमय पर्व से दूर रहकर कलान्त हृदय से किसी एकान्त स्थान में अपना यह पवित्र दिवस व्यतीत करने पर मजबूर हो गया है।
उन्होंने कहा कि जीवन में अक्सर सुबह से रात तक व्यक्ति काम ही काम में उलझा रहता है, जिससे इन्सान तन और मन से अशान्त हो जाता है। उस विश्रान्ति को नष्ट करने के लिए वह भिन्न-भिन्न मनोरंजनों की तलाश में रहता है। मनचाहे मनोरंजन से वह चाहे अल्पकाल के लिए ही सही, अपने मन की थकान को दूर कर निद्रा में चला जाता है। फिर सुबह उसी परम्परा में चलकर अपने दिन को लगभग इसी प्रकार बिताता है।
मौनी बाबा ने कहा कि भारतीय भाग्यवान हैं कि कालान्तर में ऋषि-मुनियों व देवों ने मनुष्यों के इस अशाांति को समझा और उसे दूर करने के लिए विभिन्न पर्वों का निर्माण कर दिया, ताकि मानव उस पर्व के दिन उल्लासमय होकर विश्रान्ति को नष्ट कर उल्लसित हो, धर्म मार्ग पर चलते हुए जीवन में उन्नति कर सके। वासन्तिक नवरात्र हो, शारदीय नवरात्र हो या रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा या दिवाली आदि पर्व। जिनमें देव पूजा आराधना करते हुए, मानव मन् विश्रान्ति से दूर चला जाता है। उन्होंने कहा कि देश में मनाये जाने वाले अनेक पर्व, मेले, नृत्य, संगीत आदि का समायोजन मानव मन को शान्ति प्रदान करते हैं।
इन पर्वों-मेलों आदि के पीछे चाहे कोई भी कथा प्रसंग हो, वह सब अनुशंसनीय ही हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि घिसी-पिटी कुरीतियों की परम्परा को तिलांजलि दे और आपस में फूलों एवं दिव्य औषधियों से ही होली खेलें। मौके पर लोकसेवा आश्रम में थावे विद्यापीठ गोपालगंज के कुल सचिव डॉ पी. एस. दयाल यति एवं विशेष अधिवेशन (हरिहरक्षेत्र) के संयोजक अधिवक्ता विश्वनाथ सिंह उपस्थित थे।
235 total views, 2 views today