एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। झारखंड की राजधानी रांची की पहचान एचईसी प्रशासन अतिक्रमण हटाने की नीति में पारदर्शिता लाए। प्रशासन सिर्फ गरीबो को ही उजाड़ने की नीति बंद करे। एक आंख मे काजल और एक आंख मे शुरमा वाली नीति चलने नही दिया जायेगा।
उपरोक्त बाते 24 अप्रैल को आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने कही। वे रांची के हेवी इंजिनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी) से अतिक्रमण हटाने के नाम पर क्षेत्र के गरीब गुरबा को तंग करने पर अपनी प्रतिक्रिया मे कहा।
नायक ने कहा कि चाहे गरीब हों या अमीर, सबके खिलाफ समान कार्रवाई होनी चाहिए। कहा कि एचईसी रांची की जमीन पर कई दशकों से गरीब गुरबे बसे हैं, जिनमें से अधिकांश गरीब और मजदूर वर्ग के हैं। ये अक्सर अनौपचारिक बस्तियों या झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। दूसरी ओर, कुछ प्रभावशाली जैसे स्थानीय दबंग, व्यापारी या रसूखदार ने भी एचईसी की जमीन पर बड़े निर्माण (जैसे दुकानें, गोदाम, या स्थायी मकान) बना ली है। ऐसे मे सिर्फ गरीब गुरबा को ही अतिक्रमण के नाम पर हटाना सामाजिक न्याय नही है।
नायक ने साफ शब्दो मे कहा कि आयेदिन यह देखा गया है कि गरीब बस्तियों को प्राथमिकता के साथ अतिक्रमण के नाम पर निशाना बनाया जाता है, जबकि बड़े और प्रभावशाली को कार्रवाई से मुक्त रखा जाता है। गरीबों की झुग्गियों को तोड़ा जाता रहा है, लेकिन बड़े अतिक्रमणकारियों, दबंगों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। उन्होंने कहा कि जिनके पास राजनीतिक या आर्थिक रसूख है उनका बाल बांका भी नही किया जाता है। इसका अब विरोध होगा।
नायक ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। यदि एचईसी या प्रशासन चुनिंदा रूप से केवल गरीबों का अतिक्रमण हटाता है और प्रभावशाली अतिक्रमणकारियों को छोड़ देता है, तो यह कानून के समान अनुपालन में भेदभाव ही माना जाएगा। भारतीय दंड संहिता और भूमि अतिक्रमण अधिनियम के तहत सभी अतिक्रमणकारियों पर समान कार्रवाई होना चाहिए। यदि मजबूत अतिक्रमणकारियों को छूट दी जाती है, तो यह कानून के दुरुपयोग को दर्शाता है, जिसे अब बर्दाश्त नही किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि गरीब जो एचईसी की जमीन पर दशकों से रह रहे हैं, अक्सर उनके पास कोई वैकल्पिक आवास या आजीविका का साधन नहीं होता। उनकी झुग्गियों को तोड़ना उन्हें बेघर और आजीविका से वंचित करना सही नही है। कहा कि गरीब जो आजादी के समय से या दशकों से एचईसी की जमीन पर रह रहे हैं, उन्हें अतिक्रमणकारी मानना अन्यायपूर्ण है। उनके लिए वैकल्पिक पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना हटाना मानवीय संकट पैदा करता है।
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