फिरोज आलम/जैनामोड़ (बोकारो)। इंटरनेट की दुनियां में तेजी से स्थापित हो चुके वर्सेटाइल सिंगर दिवाकर कुमार वर्मा को विश्वस्तरीय संगठन ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस ने हाल ही में अपना प्रतिष्ठित सम्मान महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया। यह सम्मान पाकर वर्मा काफी हर्षित हैं।
अपनी खुशी को अभिव्यक्त करते हुए दिवाकर कुमार वर्मा कहते हैं कि हमें सम्मान, मेडल और मोमेंटो तो बहुत मिला है। हर सम्मान मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा है। लेकिन महादेवी वर्मा समृति सम्मान पाकर मैं अपने आपको विशेष तौर पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इसका कारण है कि ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेस (जीकेसी) ने विश्व भर से चयनित कर सिर्फ 35 विशिष्ट जनों को ही यह सम्मान दिया है।
खास बात है कि दिवाकर वर्मा को सर्वपल्ली राधाकृषणन सम्मान, अखंड भारत गौरव सम्मान, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा सम्मान, स्वर कोकिला लता सम्मान सहित कई महत्वपूर्ण सम्मान मिल चुके हैं।
वर्मा बिहार के सीतामढ़ी जिले के स्थाई निवासी हैं।
एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई बड़ी कंपनियों में बड़े बड़े पदों पर काम करने के बाद एक बड़ी कंपनी में एजीएम (परचेज) पद की नौकरी छोड़कर बिहार की राजधानी पटना वापस लौट आए और अपने 30 वर्षीय पुराने शौक गायन को अपनी उपलब्धियों में बदलने में जुट गए। इस संबंध में वर्मा कहते हैं कि आठवीं नौवीं क्लास में मुझे गायन का शौक लगा था।
तभी से मैंने गाना शुरु कर दिया था। इस क्रम में मैंने हारमोनियम, बैंजो, माउथआर्गेन, गिटार जैसे सुर वाले वाद्य यंत्रों को बजाना सीखा। यह शौक भी मुझे अपने पिता स्व. कृष्णा कुमार वर्मा से ही विरासत में मिला।
उन्होंने बताया कि मेरे पिता डिस्ट्रिक्ट स्टैटिक्स आफिसर थे। साथ ही उन्हें भी संगीत का बड़ा शौक था। वे माउथआर्गेन बहुत ही बढ़िया बजाते थे। उन्हें देख देख कर ही मैंने माउथऑर्गेन बजाना सीखा था। फिर धीरे धीरे मैं अन्य इंस्ट्रुमेंट से जुड़ा और उसे बजाना सीखा।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी दिवाकर कुमार वर्मा अपने छात्र जीवन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने शतरंज में भी बिहार यूनिवर्सिटी के शतरंज के चैंपियन रह चुके हैं। इसका श्रेय भी वो अपने पिता को देते हैं। खास बात है कि उनके पिताजी शतरंज के भी अच्छे खिलाड़ी थे। उनके सिखाये कुछ बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं।
लेकिन पढ़ाई के बाद दिवाकर वर्मा भी आम आदमी की तरह रोजी रोटी और नैकरी में लग गए। नतीजा यह रहा कि गायन और खेल का उनका यह शौक पीछे छुटता चला गया।
उन्होंने बताया कि इस बीच वर्ष 2020 में संगीत सीखाने वाला एक ऐप की जानकारी मुझे मिली और मैं उसको फॉलो करता गया। फिर मैंने रेगुलर एक तय समय पर अपने फरफार्मेंस और रियाज को फेसबुक लाइव करना शुरु कर दिया। वो कहते हैं कि इसी लाइव की वजह से वे देश विदेश के लाखों प्रसंशकों तक पहुंच बनाने में सफल रहे।
इसी लाइव शो के माध्यम से उनके दर्शक और श्रोता उन्हें एक वर्सेटाइल सिंगर के रूप में जानने और पहचानने लगे। इसी बहाने उन्हें मंच भी मिलने लगा। वो बिहार के मंच सहित दिल्ली के मंच पर भी अपनी गायन की प्रस्तुति दे चुके हैं।
अपनी प्रस्तुति के कारण वर्मा सराहे भी जाते रहे हैं। विभिन्न मंचों से वे सम्मानित भी होते रहे। वर्सेटाइल सिंगर की ख्याति उन्हें यूं ही नहीं मिली। वर्मा मुकेश के दर्द भरे तान को इस अंदाज में छेड़ते हैं कि श्रोताओं के दिल भी रो उठते हैं। वहीं किशोर कुमार की वुडलिंग करने में भी इनको महारत हासिल है।
जब ये रोमांस के सुर साधते हैं तो हॉल में बैठा हर इंसान कुछ पल के लिए रोमांटिक हो जाता है। ये खासियत है दिवाकर वर्मा की। दिवाकर मन्ना डे, मोहम्मद रफी, हेमंत कुमार, तलत महमूद, यशु दास और यहां तक कि लता मंगेश्कर के गीतों को भी उन्हीं के अंदाज में गाते हैं।
एक इंसान के गायन में इतनी सारी खूबियां … इसी वजह से इनको सुनने वाले और चाहने वालों ने इन्हें वर्सेटाइल सिंगर की उपाधि दी है।
दिवाकर कहते हैं कि मेरे गाने के इस लाइव प्रसारण का इतना असर हुआ कि मुझे भोजपुरी फिल्मों से गाने का ऑफर भी मिला। लेकिन अभी भोजपुरी फिल्मों से जुड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं है।
दिवाकर कहते हैं कि अबतक मैं अपने लिए संगीत को तलाश रहा था। यह एक पड़ाव था जो पूरा हुआ। अब मैं संगीत में खुद की तलाश कर रहा हूं। जिसमें मेरी ही आवाज होगी। मेरा खुद का ही अंदाज होगा। मेरी कोशिश होगी कि धुन भी मेरी ही हो।
वे कहते हैं कि जल्द ही मैं एक एलबम ले कर आ रहा हूं। उस एलबम में दर्शकों को संगीत का आनंद तो मिलेगा ही, साथ ही उस संगीत में दिवाकर वर्मा भी प्रसंशकों को दिखेंगे।
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