भगवान श्रीविष्णु का ही एक नाम है गरुड़ ध्वज

देवस्थानम प्रांगण में श्रीगरुड़ ध्वजारोहण संपन्न

अवध किशोर शर्मा/सोनपुर (सारण)। श्रीगजेंद्र मोक्ष देवस्थानम दिव्यदेश प्रांगण में एक फरवरी को 24वां श्रीब्रह्मोत्सव सह श्रीलक्ष्मी नारायण यज्ञ के दूसरे दिन सर्वप्रथम गरुड़ ध्वजारोहण किया गया। ध्यान देने योग्य विषय है कि, श्री गरुड़ भगवान श्रीमन नारायण के वाहन ही नही बल्कि उनके परमभक्त भी हैं।इसीलिए भगवान श्रीविष्णु का एक नाम गरुड़ ध्वज भी है।

गरुड़ ध्वजारोहण के बाद पञ्चाङ्ग पूजन, अरणि मंथन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। पांच मिनट के भीतर इस मंथन से अग्नि देवता प्रगट हुए। इसी के साथ यज्ञ वेदी की परिक्रमा शुरु हो गई।

इस मौके पर श्रीगजेंद्र मोक्ष देवस्थानम दिव्यदेश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने कहा कि चार प्रकार की अग्नि होती है जिसमें पहला यज्ञाग्नि, दूसरा जठराग्नि, तीसरा बड़वाग्नि एवं चौथा श्मशान अग्नि। इन सभी में प्रधान यज्ञाग्नि है।अरणि मंथन के द्वारा लकड़ी से लकड़ी रगड़ने से अग्निदेव प्रकट हुए।

इसी अग्नि से यज्ञ नारायण का अनुष्ठान कार्य आरंभ किया गया। इस पवित्र अरणि मंथन को स्वयं जगद्गुरु स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने यज्ञ के यजमानों व यज्ञचार्यों के साथ पूर्ण किया। भगवान अग्निदेव की जयजयकार से सम्पूर्ण वातावरण गूंज उठा।

संसार का सबसे महत्वपूर्ण कर्म यज्ञ-स्वामी लक्ष्मणाचार्य

श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने प्रवचन में कहा कि संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण कर्म यज्ञ है। यज्ञ नही तो जन्म नही।

प्राचीन काल में जब साधन एवं सामग्री की भारी कमी थी तो उस समय भी यज्ञ हुआ करते थे। उस समय के यज्ञों में परमब्रह्म परमात्मा श्रीमन्नारायण के निमित्त वसंत ऋतु को घी बनाया जाता था। ग्रीष्म ऋतु को ईंधन/लकड़ी एवं शरदऋतु को हविष्य।

जगद्गुरु स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने सारण जिला के हद में नवलखा मन्दिर में प्रवचन के दौरान उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार से घी, लकड़ी एवं हविष्य से यज्ञ में हवन होता था। उन्होंने कहा कि गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि पर्यन्त 16 प्रकार के कर्म हैं।

सबसे प्रथम यज्ञ गर्भाधान है, जिसमें शुक्राहुतियों के द्वारा गर्भकुंड में जीव प्रवेश करता है। अंतिम चिता कुंड में यज्ञपुत शरीर का हवन किया जाता है। इस तरह जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक हवन का विशेष महत्व है।

उन्होंने कहा कि हवन नही तो जन्म नही। आम की लकड़ी एवं गाय के घी से हवन करने से 500 किलोमीटर तक का वातावरण शुद्ध हो जाता है। वातावरण में व्याप्त विषाणु-कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

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