रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। मानसून की बेरुखी और समय पर वर्षा नहीं होने से बोकारो जिला के हद में कसमार प्रखंड के किसान काफी चिंतित है।
क्षेत्र के किसानों का दुखी होना वाजिब है, क्योंकि आषाढ़ महीना चल रहा है। यह वक्त धान फसल के लिए खेत तैयार करने का समय होता है। कहीं कहीं तो रोपाई भी प्रारंभ हो जाया करती है। पर इस वर्ष की परिस्थिति कुछ विपरीत नजर आ रही है। एक तो झारखंड में मानसून देरी से पहुंचा। चलो देर से ही सही पर मानसून बरसे तो सही। इसके कमजोर पड़ जाने से समुचित वर्षा नहीं हो रही है। जिससे क्षेत्र के किसान परेशान हाल हैं।
ज्ञात हो कि, देश के आधे से अधिक राज्य अति वृष्टि के कारण बाढ़ के दुष्परिणाम झेलने को विवश हैं, पर झारखंड की प्यास अब तक नहीं बुझ पाई है। यहां के तालाब, कुएं सूखे के सूखे पड़े हुए हैं। साथ ही भूमिगत जल स्तर में कोई बढ़ोतरी नहीं होने से बोरिंग से भी जल मिलना कठिन हो रहा है।
इधर कसमार प्रखंड पर नजर डालें तो मानसून की बेरुखी के कारण एकबार भी वर्षा जोरदार नहीं हुई है। क्षेत्र के किसान नकुल महतो, हीरालाल महतो, सुधाकर महतो, राजेंद्र महतो, अनिल महतो, कैलाश महतो, फ़लाली महतो, अशोक कुमार महतो, बीरबल महतो, सुभाष महतो, फूलचंद महतो, निमाय चंद्र वर्मा, कैलाश महतो, सरयू महतो, आदि।
घूमन महतो, चन्द्ररू महतो, सरदु महतो, कैलाश महतो, सृष्टि घासी, सुबोध घासी, अगनु रजवार, विजय राजवार, संतोष राजभर, मनीष कुमार, जगदीश प्रजापति, शंकर प्रजापति, चुनु महतो, बीरबल महतो, चमन महतो, उमा करमाली, दूहुमा करमाली इत्यादि ने कहा कि खेत में धान के बिचड़ा डाले लगभग 25 दिन हो गए हैं।
अधिकतर हाइब्रिड धान अभी डाले जाते हैं। इस धान से तैयार बिचड़े अधिक से अधिक एक माह तक खेत में बोने पड़ते हैं, तभी धान की पैदावार अच्छी होती है। परंतु पानी की कमी से न तो बिचड़े तैयार हुए, ना रोपाई के लिए खेत।
क्षेत्र के किसानो द्वारा बताए इस बात से पता चलता है कि इस बार धान की फसल के लिए समय निकलता जा रहा है। यही रवैया और कुछ दिन रहा तो क्षेत्र में सुखा पड़ना निश्चित है। उधर सिचाई की पूर्ण व्यवस्था नहीं होने के कारण कसमार प्रखंड के किसान काफ़ी चिंतित है। जबकि क़ृषि प्रधान प्रखंड होने के बावजूद भी यहाँ के किसानों को मानसून पर ही निर्भर रहना पड़ता है। उचित सिंचाई व्यवस्था नहीं होने के चलते ही किसान चिंतित है।
कसमार प्रखंड में कुछ नदियों को भी चैक डेम बना, लेकिन ठेकेदारी प्रथा और अधिकारी के मनमानी से चैक डेम कामयाब नहीं हो पाया, जबकि अरबो रुपये पानी के व्यवस्था के लिए खर्च किया गया, लेकिन सारा पैसा मानो पानी में बह गया।
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