*कुछ देर के लिए ही सही, बात हो गयी*
*ये इत्तेफाक है की, मुलाक़ात हो गयी।*
संजय कुमार/समस्तीपुर (बिहार)। मशहूर शायर व् महान शक्सियत कैफ अहमद कैफी (Kaiph Ahamad Kaiphi) हमलोगों के बीच नहीं रहे। जब ये खबर 16 मई की संध्या को मिला, तो यकीन मानिए कि हमें ये यकीन करने में बहुत समय लग गया, की मशहूर शायर एवं रेल से जुड़े एक महान शख्सियत ने हमलोगों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है।
कैफी साहब समस्तीपुर रेल मंडल (Samastipur Rail Mandal) में वरिष्ठ मंडल वित्त प्रबंधक के तौर पर अपनी सेवाएँ देते रहे हैं। हमे ये पता नहीं कि वे सेवानिवृत हो गए थे अथवा नहीं। उनका रेल आवास रेलवे गंडक कॉलोनी में था एवं उनके आवास के थोड़े बगल में ही हमारी एक दुकान भी थी। कम्प्यूटर वर्क संबंधित अपने किसी भी कार्य के लिए वे पहले मुझे ही खोजते थे। कई दफा मैंने उनके साथ अपने संस्थान पर चाय पी थी। काफी मृदुभाषी एवं महान शख्सियत के धनी कैफी साहब का ऐसे अचानक से चले जाने की खबर से शहर के अमन पसंद काफी मर्माहत है। उनकी यह फोटो 18 नवंबर 2018 की है। इसी दिन समस्तीपुर के मथुरापुर स्थित मौलाना मजरूल हक शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय के सभाकक्ष में एक मुशायरा कार्यक्रम एवं प्रांतीय रंगारंग कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जिसमें संस्था के अध्यक्ष अबू तमीम, बिहार राज्य राजभाषा विभाग के निदेशक इम्तियाज़ अहमद, समस्तीपुर विधायक अखतरुल इस्लाम शाहीन, मंडल रेल कार्मिक अधिकारी बीके राय के साथ कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। इसी कार्यक्रम में हमारे कैफ अहमद कैफी द्वारा लिखित उर्दू काव्य “नवाए कैफे” का विमोचन किया गया था। रेल परिवार को अपनी सेवाएँ देते रहने के दौरान कैफी साहब ने इस पद्य काव्य संकलन के माध्यम से उर्दू जगत को एक महान रचना भेंट की, जो भविष्य में उर्दू भाषा के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। इसी कार्यक्रम के अंत में कैफी साहब ने अपनी ही पुस्तक “नवाए कैफ” की चंद पंक्तियाँ गुनगुनायी थी, जो आज बहुत याद आ रही है-
*कुछ देर के लिए ही सही, बात हो गयी*
*ये इत्तेफाक है की, मुलाक़ात हो गयी।*
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