रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। बोकारो जिला के हद में कसमार प्रखंड के जंगली क्षेत्र में रहने वालों की मुसीबत बढ़ चुकी है, क्योंकि जंगली हाथी का आतंक फिर से चालू हो गया है। ऐसे में आसपास के ग्रामीण रहिवासी जंगली हाथियों के आतंक से पस्त दिख रहे है। वहीं वन विभाग की टीम रहिवासियों की रक्षा करने में विफल रहा है।
बताया जाता है कि हाथी का आतंक कसमार प्रखंड के हद में गुमनजारा, हीसीम, केदला, तेरीयोनाला के जंगलों में बरकरार है। ग्रामीणों के अनुसार लगभग 6 की संख्या में इन क्षेत्रों में हांथी विचरण करते देखा गया है।
रात होते ही गांव में प्रवेश कर हाथी का आतंक शुरू हो जाता है। हाथी भगाओ अभियान पूरी तरह सक्रिय नहीं होने के कारण हाथी का दल गांव में प्रवेश कर जा रहा है। हाथी का गांव में प्रवेश करने का मुख्य कारण भोजन के जुगाड़ के लिए होता है। गांववालो की नींद हराम हो गई है।
सूत्रों के मुताबिक हाल हीं में हाथी का दो बच्चा का जन्म जंगल क्षेत्र में हुआ था। उन बच्चों की निगरानी के लिए हाथी को जंगल में मजबूरन रहना पड़ रहा है। रातों को गांव में भोजन के लिए उन्हें आना पड़ रहा है। बीते 12 अप्रैल की रात्रि को हाथी का करीब 5-6 का झुंड हीसीम गांव में प्रवेश कर गया। गांववालो को इसकी भनक मिलते ही हाथी को भगाने के लिए मशाल जलाकर ख़देड़ा गया।
हाथी भागने के क्रम में खुद ही बाद में लगा गेहूं का फसल को खाकर कुछ नुकसान भी पहुंचा कर पाड़ी के जंगल में प्रवेश कर गया। जानकारों का मानना है कि हाथी का दल बंगाल के जंगल से भटका हुआ है। अपने भोजन के लिए गांव में पहुंचना एक कारण है।
हाथी का मुख्य भोजन बास का पत्ता है, लेकिन जंगलों से बास की अंधाधुंध कटाई से हाथी को मजबूरन गांव में प्रवेश करना पड़ रहा है। अभी भी हाथी को रोकने के लिए बांस की कटाई पर रोक लगाने की आवश्यकता है। अगर बांस कटाई पर रोक लग जाए तो हाथी का गांव में प्रवेश कभी नहीं हो सकता है।
हाथी का जिन गांवों में आतंक व्याप्त है वे गांव है जुमरा पाड़ी, भूऱसाटांड़, चोड़ा, देसवल सुदी, कोतोगड़ा, पिरगुल, रघुनाथपुर, भवानीपुर, लोधकीयारी, मेढा, चैनपुर, हड़साली, मेरोमारा, कर्मा, खीजरा, मनीपुर आदि। वन विभाग को इस मामले में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
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