साभार/नई दिल्ली। अगर देश के विभिन्न शिक्षा बोर्ड्स ग्रेस मार्क की परंपरा खत्म करने को राजी हो जाते हैं तो अंडरग्रैजुएट कोर्सों में दाखिले के लिए कटऑफ में गिरावट आ सकती है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय राज्य बोर्डों द्वारा दिए जाने वाले ग्रेस मार्क्स को खत्म करने की योजना बना रहा है।
क्या हैं ग्रेस मार्क्स?
देश के कुछ बोर्ड्स छात्रों को उन विषयों में बढ़ाकर मार्क्स दिए जाते हैं, जिसके बारे में यह समझा जाता है कि उसमें पूछे गए कुछ सवाल कठिन थे। इसे ग्रेस मार्क्स कहते हैं और इसे बोर्ड्स की ‘मॉडरेशन’ पॉलिसी के नाम से जाना जाता है।
इसको यूं समझ सकते हैं कि जैसे किसी छात्र ने किसी विषय में 70 नंबर हासिल किया और बोर्ड को लगता है कि पेपर कठिन था, तो उसे 15 नंबर अतिरिक्त दे दिए। इस तरह कुल मिलाकर उसका प्राप्तांक 85 हो गया। मॉडरेशन पॉलिसी के तहत कठिन सवालों के लिए छात्रों को 15 फीसदी तक ग्रेस मार्क्स दिए जाते हैं।
जुलाई 2016 में हमारे सहयोगी अखबार टीओआई ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि 12वीं के गणित के पेपर में सीबीएसई ने छात्रों को अतिरिक्त मार्क्स के तौर पर 16 नंबर दिए थे और दिल्ली सेट के सवालों के लिए 15 मार्क्स दिए थे। यानी जिन छात्रों के मैथ्स में असल नंबर 77 थे, ग्रेस मार्क्स के साथ उनके नंबर 93 हो गए।
मौजूदा समय में किसी क्वेस्चन पेपर के कठिन होने की शिकायत मिलने पर सीबीएसई एक्सपर्ट का एक पैनल गठित करता है। यह पैनल सवालों का अध्ययन करता है और सिफारिश करता है कि प्रत्येक परीक्षार्थी को कितना अतिरिक्त मार्क्स दिया जाए।
दिसंबर 2016 में सीबीएसई ने सुझाव दिया था कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) की मदद से सभी राज्य बोर्डों को ग्रेस मार्क्स को खत्म करने को लेकर राजी किया जा सकता है। सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगर कोई एक बोर्ड इस परंपरा को खत्म करता है तो अंडरग्रैजुएट दाखिले में उसके छात्रों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए सभी राज्य के बोर्डों को इसके लिए राजी करना जरूरी है।
एक वरिष्ठ एचआरडी अधिकारी के मुताबिक, ‘मंत्रालय ने 24 अप्रैल को सभी राज्य के शिक्षा सचिवों और राज्य बोर्डों के चेयरपर्सन की मीटिंग बुलाई है और उम्मीद है कि वहां इस मामले को उठाया जाएगा। सीबीएसई के सुझावों पर इस मीटिंग में गौर किया जाएगा और हम कोशिश करेंगे कि इस मामले में एकराय बने।’
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