बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ झा थे अन्वेषी प्रकृति के विज्ञानी-विधायक

प्रहरी संवाददाता/कसमार (बोकारो)। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डाॅ एके झा अन्वेषी प्रकृति के विज्ञानी थे। अपनी मातृभाषा खोरठा की तरह ही उनका अर्जित भाषाई अधिकार हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि पर था। जैसे बिना मौसम विज्ञान की पढ़ाई पढ़े वे एक दक्ष और अनुभवी मौसम विज्ञानी थे, वैसे ही वह खोरठा भाषा के स्वध्यायी वैज्ञानिक थे। उक्त बात की जानकारी गोमियां विधायक डॉक्टर लंबोदर महतो ने पत्रकारों को दी।

विधायक डॉक्टर महतो ने कहा की खोरठा भाषा के व्याकरणिक रूप को बनाने-निखारने का महती कार्य हो या कि खोरठा साहित्य के इतिहास को रचने का, भाषा-साहित्य के सभी मोर्चों पर डॉ झा ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह पूरी प्रतिबद्धता के साथ किया।

इसके लिए घर-परिवार में अप्रिय तो रहे ही, सार्वजनिक जीवन में भी स्पष्टवादिता और मुखरता के चलते लोगों के आंख की किरकिरी बने। यही नहीं झारखंड के सांस्कृतिक आंदोलन में भी उन्हें राजधानी स्थित कई स्वनामधन्य लोगों से जूझना पड़ा, जो यह मानते थे कि कुड़मालि, पंचपरगनिया और खोरठा जैसी भाषाओं का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

उन्होंने कहा कि बिहार के विद्वानों का नजरिया झारखंड की देशज भाषाओं को लेकर था कि ये सब बिहारी भाषा की उपबोलियां हैं। वैसी ही मान्यता रांची स्थित कुछ विद्वानों की भी थी। वे सब घोषित कर रहे थे कि कुड़मालि, पंचपरगनिया और खोरठा भाषाएं नागपुरी की ही उपबोलियां हैं।

कुड़मालि के बलवंत मेहता, पंचपरगनिया के डाॅ करम चंद्र अहीर और खोरठा के डाॅ. एके झा ने इस ‘दिकू’ मानसिकता का पुरजोर विरोध किया और अपने-अपने समुदाय की भाषाई आकांक्षा को आंतरिक संघर्ष के जरिए स्थापित करने में सफल रहे।

विधायक ने कहा कि इस आंतरिक दोस्ताना संघर्ष के बावजूद डाॅ झा साझा सांस्कृतिक विरासत और आंदोलन के प्रबल हिमायती थे। उन्होंने अपने भाषणों और लेखों में झारखंडी संस्कृति के साझेपन को बार-बार एक संकल्प की तरह दोहराया है।

समग्र सदानी भाषाओं में वे एकरूपता देखते थे। झारखंड के गैर-आदिवासी चारों सदानी भाषाओं को वह मूलतः एक ही भाषा मानते थे। देशज भाषाओं की इस आंतरिक एकरूपता के पक्ष में उनके पास अकाट्य तर्क थे। अपनी मातृभाषा खोरठा की जन्मजात पक्षधरता के बावजूद एक भाषा और समाज विज्ञानी के रूप में वे कत्तई मोहांध नहीं थे। वे भाषाओं के डायनामिक्स को अच्छी तरह से समझते थे।

इसीलिए बार-बार सदानी भाषाओं की एकता पर बल देते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि खोरठा, कुड़मालि, पंचपरगनियां और नागपुरी एक ही भाषा के क्षेत्रीय रूप हैं। तभी वे पूरे दमखम और विश्वास के साथ यह संभावना व्यक्त करने में भी नहीं हिचकते थे कि अंततः एक दिन इन सभी भाषाओं को एक हो जाना है।

इस संभावना और विश्वास को डाॅ झा ने ‘खोरठा साहित सदानि ब्याकरण’ पुस्तक में विस्तार से लिखा है। खोरठा, कुड़मालि, पंचपरगनियां और नागपुरी भाषाओं के सामान्य व्याकरणिक एकरूपता को दर्शाते हुए उन्होंने अपनी बात पूरी वैज्ञानिकता के साथ रखी है।

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