सिद्धार्थ पांडेय/जमशेदपुर (झारखंड)। बिहार की राजधानी पटना में स्थित महावीर कैंसर संस्थान की चिकित्सक डॉ ऋचा चौहान ने सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए बायोमार्कर की खोज कर एक नया चमत्कार किया है। उन्होंने इसकी खोज कर जरूरतमंदो को दीर्घायु होने की दिशा में कारगर प्रयास की है।
इसी को लेकर 8 फरवरी को डॉ ऋचा चौहान ने साक्षात्कार देते बतायी कि ग्लोबोकॉन 2020 के आंकड़ों के अनुसार हर साल लगभग 1.25 लाख नए मामले और 78 हजार मौतों के साथ सर्वाइकल कैंसर हमारे रोगियों में रुग्णता और मृत्यु दर का एक महत्वपूर्ण कारण बना हुआ है।
इनमें से अधिकांश रोगी स्थानीय रूप से उन्नत अवस्था में उपस्थित होते हैं, जहाँ समवर्ती कम खुराक कीमोथेरेपी के साथ विकिरण मानक उपचार है। उन्होंने बताया कि इन रोगियों का जीवित रहना काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि रोग कीमोराडियोथेरेपी के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करता है।
डॉ ऋचा के अनुसार विभिन्न उपचार विधियों में हालिया प्रगति के बावजूद सर्वाइकल कैंसर के रोगियों की समग्र इलाज दर लगभग 60 से 70 प्रतिशत बनी हुई है। शेष 30 से 40 प्रतिशत रोगियों के लिए पूर्वानुमान खराब रहता है। विषम उपचार प्रतिक्रिया प्रत्येक रोगी की प्रोफाइलिंग की मांग करती है, इसलिए बायोमार्कर आधारित उपचार कर सभी को होर्ट का चयन व्यक्तिगत उपचार के लिए एक मजबूत उपकरण है।
हाल ही में चिकित्सकों के एक समूह ने उनकी अध्यक्षता मे इंस्टीट्यूट ऑफ बायो-इनफॉरमैटिक्स बंगलौर के डॉ प्रशांत कुमार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एक बायोमार्कर की खोज की, जो सर्वाइकल कैंसर के भोले-भाले रोगियों के इलाज में शुरुआती प्रतिक्रिया का पता लगा सकता है।
डॉ ऋचा चौहान सहित टीमइरेन जॉर्ज, पीएचडी छात्र ने संवेदनशील समूह के सापेक्ष उपचार प्रतिरोधी सर्वाइकल कैंसर रोगी में मौजूद प्रोटीन की तुलना करने के लिए उन्नत द्रव्यमान -स्पेक्ट्रोमेट्री आधारित मात्रात्मक प्रोटिओमिक्स का उपयोग किया। उन्होंने गैर-प्रत्युत्तर रोगी समूह में प्रोटीन सिंटैक्सिन-3 (एसटीएक्स 3) को अपग्रेड करने की पहचान की।
उन्होंने भविष्य कहनेवाला बायोमार्कर के रूप में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए एक बड़े स्वतंत्र कॉहोर्ट में प्रोटीन की अभिव्यक्ति को और अधिक मान्य किया। शोध अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि एसटीएक्स 3 एक बायोमार्कर के रूप में है, जो उपचार शुरू होने से पहले ही विकिरण और कीमोथेरेपी की प्रतिक्रिया की भविष्यवाणी कर सकता है।
यह खोज उपचार करने वाले ऑन्कोलॉजिस्ट को जल्द से जल्द एक वैकल्पिक चिकित्सा चुनने में सक्षम करेगी। जिससे इन रोगियों के जीवित रहने की संभावना बढ़ सकती है।
इसके अलावा यह व्यर्थ उपचार की लागत, समय और विषाक्तता को कम करके रोगियों को भी लाभान्वित करेगा। खोजे गए प्रोटीन को उन रोगियों के सफलता पूर्वक इलाज के लिए लक्षित किया जा सकता है, जो मानक उपचार प्रोटोकॉल का जवाब नहीं देते हैं।
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