सभी के सहयोग से हीं खदान क्षेत्र का विस्तार संभव-एस. के. सिंह
एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के बड़वाबेड़ा के विस्थापितो एवं एकेकेओसीपी प्रबंधन के बीच 29 अप्रैल को देर संध्या आयोजित वार्ता बिना निर्णय का विफल रहा। प्रबंधन जहां खदान विस्तारिकरण तथा ट्रांसपोर्टिंग मार्ग को लेकर अपनी बात पर अड़ा रहा, वहीं विस्थापित मुआवजा शिफ्टिंग और नियोजन को लेकर अडिग है। इसे लेकर अंततः बात नहीं बन पाई और वार्ता विफल रहा।
एकेकेओसीपी खास महल कार्यालय सभागार में आयोजित द्वीपक्षीय वार्ता के क्रम में सर्वाधिक प्रभावित बड़वाबेड़ा दरगाह मोहल्ला के विस्थापितों का कहना था कि उन्होंने अपनी जमीन आदि सब राष्ट्रहित को देखते हुए प्रबंधन को सौंप दिया है। प्रबंधन द्वारा उन्हें पूर्व में आश्वासन दिया गया था कि यहां से विस्थापित होने के पश्चात उन्हें उपयोगी स्थान पर शिफ्टिंग कराया जाएगा। साथ ही घर आदि निर्माण का मुआवजा भुगतान भी किया जाएगा।
बावजूद इसके प्रबंधन लगातार केवल आश्वासन पर आश्वासन देती रही। प्रबंधन न तो अब तक एक भी विस्थापित को शिफ्ट कर पाई है और न ही मुआवजा का भुगतान दे पाई है। बावजूद इसके प्रबंधन खदान विस्तारिकरण को लेकर जिद पर अड़ी है। हाल यह हो गया है कि दरगाह मोहल्ला के विस्थापित जाए तो किधर?
बताया जाता है कि उक्त मोहल्ला का सौ मीटर दायरे में प्रबंधन द्वारा खदान का उत्खनन किया जा रहा है। दूसरी ओर प्रबंधन द्वारा रेलवे साइडिंग से धड़ल्ले से कोयला डिस्पैच में लगी है, जिसके कारण दोनों तरफ से उड़ते वायु प्रदूषण तथा धूल कण से मोहल्ला वासी विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। विस्थापितों का कहना है कि प्रबंधन उन्हें जितना जल्दी दूसरी जगह बनाकर आश्रय स्थल तथा उनके मकान का उचित मुआवजा देगी, इसके बाद ही वे यहां से हटेंगे अन्यथा जिस स्थिति में है उसमें चाहे जो हो जाए वे डटे रहेंगे।
वार्ता में प्रबंधन द्वारा कहा गया कि वर्ष 2019 में झारखंड सरकार के द्वारा यह नियमावली बनाया गया है कि उपयोग होने वाले स्थल का मुआवजा की राशि का किस्त राज्य सरकार को दिया जाए तथा इसके समानांतर राशि विस्थापितों को भुगतान किया जाए। प्रबंधन इसमें सहमत नहीं है। ऐसे में प्रबंधन और राज्य सरकार के नियमावली के चक्की में विस्थापित पीसें जा रहे हैं।
विस्थापितों का दोष यह है कि वे कई पीढियां से यहां रहते रहे हैं। वार्ता के क्रम में यह बात सामने आई कि बड़वाबेड़ा में विस्थापितों के दावा भूमि का अधिकांश भाग वन अधिकार क्षेत्र में आता है। शेष अधिग्रहित भूमि के एवज में प्रबंधन द्वारा नियोजन दिया गया है। विस्थापित इससे इंकार करते हुए जांच की मांग कर रहे हैं।
विस्थापितों की यह भी मांग थी कि प्रबंधन बड़वाबेड़ा के दरगाह मोहल्ला से जारंगडीह रेलवे गेट तक काफी जर्जर हो चुके मार्ग को यथाशीघ्र मरम्मती करे, अन्यथा विस्थापित सड़क जाम कर देंगे। वार्ता में प्रबंधन की ओर से परियोजना पदाधिकारी एसके सिंह, प्रबंधक सुमेधा नंदन, विक्रय पदाधिकारी दीपक कुमार, उप प्रबंधक असैनिक अनुपम प्रकाश जबकि विस्थापितों में मो. हकीम मो. रिजवान, अब्दुल सत्तार, राजाऊल, मुस्तफा, शहादत, मनौवर, सादिक, हैदर अली, अशफाक, मो. क़ासिम, खुर्शीद, मो. असगर, इस्लाम, इरशाद, एजाज, अब्दुल रहीम आदि शामिल थे।
इस अवसर पर परियोजना पदाधिकारी एस. के. सिंह ने कहा कि सभी की सहमति व् सहयोग से हीं खदान का विस्तार तथा कोयला उत्पादन संभव है। उन्होंने कहा कि परियोजना स्तर से विस्थापितों से लगातार वार्ता कर समस्या समाधान का प्रयास किया जा रहा है। उन्हें विश्वास है कि समस्या का हल मिल बैठकर अवश्य होगा।
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