आश्रम के मौनी बाबा ने रखा घोड़ा का नाम चेतक, चाल देख लट्टू हो रहे दर्शक
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में शास्त्रीय नृत्य एवं संगीत के लिए विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के लोकसेवा आश्रम को एक भक्त ने नोकरा नस्ल का घोड़ा खरीद कर दान में दिया है। इस घोड़े की कीमत 85 हजार रुपए बताया जा रहा है। यह घोड़ा देखने में लाजवाब व शानदार ही नहीं बल्कि दौड़ में भी जांबाज है।
एकदम दूधिया रंग के इस घोड़े को झारखंड की राजधानी रांची के प्रसिद्ध संवेदक अनिल कुमार सिंह गौतम ने खरीद कर आश्रम में दान दी है। गौतम मूलतः सोनपुर थाने के सबलपुर बभनटोली के रहिवासी हैं। उक्त घोड़े का नामकरण चेतक स्वयं लोकसेवा आश्रम के व्यवस्थापक एवं बिहार प्रदेश उदासीन महामंडल के अध्यक्ष संत बाबा विष्णु दास उदासीन ने किया है। वे बताते हैं कि बाबा भारती के घोड़े की तरह इसकी चाल है। जो भी इसे देखता है वह उसकी चाल पर लट्टू हो जाता है।
आश्रम के कानूनी सलाहकार अधिवक्ता विश्वनाथ सिंह बताते हैं कि जिस तरह राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यह आश्रम है, उसी तरह
सेवा – सत्संग की दृष्टि से तीर्थ यात्रियों के लिए इस आश्रम का द्वार खुला रहता है। मेला भर जरूरतमंदों को भंडारा कराया जाता है। बताया कि इस आश्रम की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहां की गोशाला में गाय भी है, तो अश्वशाला में घोड़ा भी है।
गाय और घोड़ा रखने की परम्परा मौनी बाबा की देन है। भगवान को आश्रम की गायों का दूध ही अर्पित किया जाता है। दान में दिए गए इस घोड़ा की उम्र तीन से छह माह के बीच की है। विक्रेता ने उम्र महज तीन माह बताई है, परन्तु विशेषज्ञ 5 से 6 छह माह उम्र का अनुमान व्यक्त करते हैं। उन्होंने बताया कि इस घोड़ा को 85 हजार रूपए में खरीद कर झारखंड की राजधानी रांची के सम्मानित संवेदक एवं आश्रम के स्तंभ अनिल कुमार सिंह गौतम ने दान किया है।
बड़ी मुश्किल से हुई इस घोड़ा की खरीदारी
अधिवक्ता विश्वनाथ सिंह ने 23 नवंबर को बताया कि यूपी से बिक्री के लिए आए इस घोड़े को खरीदने के लिए कई व्यापारी कई दिनों से मंडरा रहे थे। यूपी के एक संत और उनके साथ आए एक मुखिया की इस पर दृष्टि थी। उनकी विक्रेता से खरीद – बिक्री की बात भी चल रही थी। पर मांग अधिक होने की वजह से बात नहीं बन रही थी। इसी बीच आश्रम भक्त अनिल सिंह गौतम को जानकारी मिली। उस घोड़े की खूबी और खासियत का उन्होंने पता लगाया। उन्होंने व्यापारी द्वारा मांगी गयी रकम पर ही उस घोड़ा को खरीद लिया और आश्रम में आकर मौनी बाबा को दान कर दिया।
बताया जाता है कि जब इस बात का पता यूपी के उक्त संत और मुखिया को चली तो वे आश्रम पहुंचकर खरीदे गए मूल्य पर घोड़ा बेंचने का बाबा से आग्रह किया। बाबा ने आगंतुकों का स्वागत किया पर चेतक को बेंचने से इनकार कर दिया।
उक्त घोड़ा के संबंध में अनिल सिंह गौतम ने बताया कि यह घोड़ा नोकरा नस्ल की है। नोकरा नस्ल के घोड़े के बारे में कहा जाता है कि उसके आने से घर में सुख-संपत्ति और समृद्धि आती है। सुख-संपत्ति और समृद्धि के मामले में प्रथम स्थान गो माता की है और दूसरा गणेश जी के प्रतिरूप हाथी की।
लेकिन पशुओं में नोकरा नस्ल के घोड़े को पालना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि जिसके दरवाजे पर यह घोड़ा रहता है, वहां सुख -समृद्धि और संपत्ति का वास होता है। तुलसी, समी, पीपल वृक्षों के रहने से जिस तरह नकारात्मकता का क्षरण होता है, ठीक उसी तरह नोकरा नस्ल के घोड़े पालने से नकारात्मकता नजदीक नहीं आ पाता। स्वयं मौनी बाबा बताते हैं कि इस नस्ल का घोड़ा सज्जन – साधुजनों के पास ज्यादा दिखाई पड़ता है।
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