एस. पी. सकक्स/रांची (झारखंड)। केंद्र द्वारा जातिगत जनगणना की घोषणा एक स्वागतयोग्य और ऐतिहासिक कदम है। यह पहल बाबासाहेब आंबेडकर, महात्मा ज्योतिराव फुले और कांशीराम जैसे समाज सुधारकों के सामाजिक समानता के सपने को साकार करने की दिशा में ठोस प्रयास है।
उपरोक्त बाते एक मई को आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने कही। उन्होंने कहा कि यह जनगणना न केवल सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को उजागर करेगी, बल्कि नीति निर्माण, संसाधन वितरण और आरक्षण की नीतियों को और अधिक प्रभावी बनाने में भी सहायक होगी।
कहा कि हम इस कदम का समर्थन करते हैं और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण शुरुआत मानते हैं। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना का महत्व,
जातिगत जनगणना के आंकड़े अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों की वास्तविक स्थिति को सामने लाएंगे।
यह शिक्षा, रोजगार, और सरकारी योजनाओं में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने में मदद करेगा। साथ ही, यह उन समुदायों की पहचान करेगा जो अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित हैं, जिससे लक्षित नीतियां बनाई जा सकेंगी। नायक ने कहा कि हम इस अवसर पर उन क्षेत्रीय दलों और नेताओं, जैसे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, और सामाजिक संगठनों, जैसे बामसेफ (वामन मेश्राम के नेतृत्व में) को श्रेय देते हैं, जिन्होंने दशकों तक इस मांग को जीवित रखा।
कहा कि बिहार में वर्ष 2023 के जातिगत सर्वेक्षण ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय पटल पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं और संगठनों की जमीनी लड़ाई ने सरकार को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस इस विषय पर अवसरवादी राजनीति की, हमें यह कहना पड़ता है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की इस मुद्दे पर अवसरवादी और ढुलमुल रवैया रही है।
दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने अपनी सत्ता और वोट बैंक की राजनीति के आधार पर इस मुद्दे को बार-बार टाला और केवल तब समर्थन किया जब राजनीतिक दबाव असहनीय हो गया।
नायक ने बीजेपी पर दोहरी नीति अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी ने वर्ष 2010 में विपक्ष में रहते हुए जातिगत जनगणना का समर्थन किया, जब सुषमा स्वराज और गोपीनाथ मुंडे ने संसद में इसकी वकालत की।
लेकिन वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद, बीजेपी ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। वर्ष 2018 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने वर्ष 2021 की जनगणना में ओबीसी डेटा शामिल करने का वादा किया, लेकिन यह वादा खोखला साबित हुआ।
उन्होंने कहा कि कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बी.वाई. विजेंद्र ने वर्ष 2023 में इसे हिंदुओं को बांटने की साजिश करार दिया, जो बीजेपी के सवर्ण केंद्रित हिंदुत्व एजेंडे को दर्शाता है। उन्होंने कांग्रेस पर इस मुद्दे पर निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने वर्ष 2004 से 2014 तक के अपने शासनकाल में इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।
वर्ष 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (एसइसीसी) कराई, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। विशेषज्ञों ने डेटा में त्रुटियों की बात कही, लेकिन कांग्रेस ने इसे सुधारने की कोई कोशिश नहीं की। वर्ष 2018 से राहुल गांधी ने इसे अपने एजेंडे में शामिल किया, लेकिन यह केवल बीजेपी को घेरने की रणनीति थी।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल किया, लेकिन यह सवाल उठता है कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने इस दिशा में ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? नायक ने कहा कि दोनों पार्टियों ने इस मुद्दे को केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया। कहा कि क्षेत्रीय दलों और सामाजिक संगठनों के दबाव के बिना शायद यह घोषणा कभी न होती।
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