मंदिर में अपनी पत्नी और पुत्र के साथ विराजमान हैं गणाध्यक्ष
प्रहरी संवाददाता/मुंबई। महाराष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़े गणेशोत्सव की धूम मुंबई सहित विदेशों में भी धूम है। देश की आर्थिक राजधानी महानगर मुंबई में दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के दौरान एक तरफ जहां देश भर के श्रद्धालु गणपति बप्पा “गणाध्यक्ष” का दर्शन करने मुंबई आते हैं, वहीं दूसरी तरफ मुंबई, ठाणे और भायंदर के ऐसे गणेश भक्त हैं जो सैकड़ों की तादाद में इस महापर्व पर हर साल राजस्थान के सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर किले में स्थापित त्रिनेत्र गणेश के दर्शन के लिए जाते हैं।
यह सिलसिला साल 1995 से जारी है जब सर्व प्रथम स्टॉक मार्केट के सब-ब्रोकर और गणेश भगवान के अनन्य भक्त प्रमोद हरलालका ने त्रिनेत्र गणपति का दर्शन किया। शुरुआत में उनके साथ कुछ गिने चुने भक्त थे, पर जैसे जैसे कारवां आगे बढ़ा, विनायक के भक्तों की तादाद में लगातार इजाफा होता चला गया।
विगत कुछ वर्षों से लोग ग्रुप बनाकर सपरिवार भी जाने लगे। इस हर साल की तरह इस साल भी प्रमोद हरलालका की अगुवाई में इस वर्ष भी 110 गणेश भक्तों का जत्था रणथंभौर पहुंचा और वहां के किले के सबसे ऊपरी प्राचीर में बिराजे त्रिनेत्र गणपति का दर्शन किया।
इस कड़ी में दिलचप्स बात यह है कि रणथंभौर के मंदिर में गणेशजी, अपनी पत्नी रिद्धि और सिद्धि साथ में पुत्र शुभ और लाभ के साथ विराजमान हैं और वहां के श्री गणेश के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है तथा मकान बनाने का संकल्प भी अवश्य पूरा होता है। ऐसा प्रमोद हरलालका का कहना है।
ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर का भी किया दर्शन
यात्रा के सूत्रधार प्रमोद हरलालका ने बताया कि इस साल त्रिनेत्र के गणपति के दर्शन के उपरांत जत्था मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर और उज्जैन स्थित महाकालेश्वर जाकर उनका दर्शन किया। जत्था 21 नवम्बर को जयपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस से रवाना हुआ और अवंतिका एक्सप्रेस से 25 सितंबर को सुबह मुंबई लौट आया।
सफेद, लाल रंग और पीले के अंगवस्त्र में गणेश भक्तों का काफिला जहां से गुजरा, वहां का पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। इस यात्रा में दूसरी बार शामिल हुए विजय शुक्ला ने हरलालका का धन्यवाद देते हुए बताया कि इतने बड़े जत्थे का इतना बड़े पैमाने पर जिस तरह से अरेंजमेंट किया जाता है, वह काबिल-ए-तारीफ है।
मकान की इच्छा पूर्ति करते हैं त्रिनेत्र गणेश
हरलालका ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि त्रिनेत्र गणेश के दर्शन से मकान प्राप्ति की अभिलाषा पूरी होती है. विश्व धरोहर में शामिल त्रिनेत्रधारी गणेश मंदिर रणथंभौर दुर्ग के भीतर बना हुआ है और यह भारत का एकमात्र गणेशजी का मंदिर है जहां वे अपनी पत्नी रिद्धि, सिद्धि और पुत्र शुभ लाभ के साथ विराजमान हैं।
रणथम्भौर दुर्ग में विराजे रणतभंवर के लाडले त्रिनेत्र गणेश के मेले की बात ही कुछ निराली है जहां यह मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है और गणेश चतुर्थी के मौके पर भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहाँ पर दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां माँगते हैं, जिन्हें भगवान त्रिनेत्र गणेश पूरी करते हैं।
प्रमोद हरलालका- यात्रा के सूत्रधार
29 साल पहले जब मैंने अकेले यह यात्रा शुरू की थी तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह कारवां इतना बड़ा हो जायेगा. धीरे धीरे लोग साथ आने लगे और भक्तों की तादाद 150 तक भी पहुंच गई है. इस धार्मिक यात्रा से भक्तों को उनकी मन्नत पूरी होने के साथ साथ आध्यात्मिक अनुभूति भी प्राप्त होती है, सैकड़ों लोगों को एक साथ जयकारे लगाते हुए, भक्ति के गीत गाते हुए देखकर अच्छा लगता है।
इस यात्रा में मैं पिछले कई सालों से शामिल हो रहा हूँ। पहले अकेला जाता था, पर अब सपरिवार जाने लगा हूँ। मेरे जैसे कई लोगों को परिवार के साथ भी समय बिताने का वक्त मिल जाता है। हर साल यह यात्रा कई अविस्मरणीय यादें दे जाती हैं। इस जत्थे का हिस्सा बनकर अपने आपको मैं भाग्यशाली समझता हूँ।
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।
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