एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। झारखंड की राजधानी रांची में बनने वाले फाइव स्टार होटल ताज का स्वागत है। कभी राजधानी की धरोहर रही थ्री स्टार होटल अशोका जो वर्षो से बंद होकर खंडहर में तब्दील हो रहा है। उस पर आपत्ति है। उसे तो बचाए झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन।
उपरोक्त बातें 25 जुलाई को आदिवासी मूलवासी जन अधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व प्रत्याशी हटिया विधानसभा क्षेत्र विजय शंकर नायक ने कही। उन्होंने कहा की कभी राजधानी की धरोहर रही एवं लाभ में चलनेवाला होटल अशोक आज बेसहारा होकर खंडहर में तब्दील हो रहा है. जिसे बचाना राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नैतिक और राजनीतिक कर्तव्य है।
नायक ने बताया कि रांची शहर एवं राजधानी की धरोहर को 29 मार्च 2018 को बंद कर दिया गया। कह कि 30 साल पुराने होटल अशोक की हालत आज बेहद खराब हो गई है। एक समय सिटी की धरोहर माने जाने वाले इस होटल की बर्बादी का आलम यह है कि अब यह खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।
होटल की दीवारों पर काई की परत जम गई है। पूरे परिसर में झाड़ियों ने अड्डा जमा लिया है। अंदर जो सामान रखे थे, वे भी धीरे-धीरे खराब हो रहे हैं। कमरों की भी स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अब इस होटल को खोलने से पहले इसका मेकओवर करना होगा।
नायक ने कहा कि एक समय यह होटल रांची की शान था। आज यह होटल 6 साल से बंद है। धीरे-धीरे होटल की बिल्डिंग बर्बाद होती जा रही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 में ही राज्य सरकार ने यह फैसला लिया था कि होटल रांची अशोक के सभी शेयर झारखंड सरकार खरीदेगी।
जिसके तहत 22 अक्टूबर 2016 को हुई कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि 100 फीसद शेयर के साथ राज्य सरकार इस होटल का मालिकाना अधिकार लेगी। बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। झारखंड टूरिस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जेटीडीसी) की इस होटल मे 51 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि बिहार टूरिज्म की 36.5 फीसदी हिस्सेदारी है और बाकी 12.5 फीसदी जेटीडीसी के पास है।
उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार ने केंद्र से रांची के प्रतिष्ठित होटल अशोक के स्वामित्व को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने का आग्रह किया था, मगर स्वामित्व का हस्तांतरण कई वर्ष से अधिक समय से लंबित है।
भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) ने 24 नवंबर 2020 को होटल में अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी 10 करोड़ रुपये में स्थानांतरित करने के लिए झारखंड पर्यटन विकास निगम (जेटीडीसी) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें से 6 करोड़ रुपये 25,000 शेयरों की खरीद के लिए और 4 करोड़ रुपये बकाया देनदारियों के लिए थे।
नायक ने बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा में कहा था की जब से हमारी सरकार सत्ता में आई है, हमारा प्रयास है कि इस होटल को राज्य सरकार के स्वामित्व में लाया जाए। पैसा जमा करने सहित सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद, हमें अभी तक होटल का स्वामित्व नहीं मिला है। सीएम सोरेन ने यह भी कहा था कि एक केंद्रीय मंत्री ने मुझसे कहा है कि वह होटल अशोक की चाबी खुद सौंपेंगे।
इसके लिए उन्हें कैबिनेट की बैठक करने की जरूरत है। ऐसा लगता है कि एक साल से अधिक समय में कैबिनेट की बैठक नहीं हुई। होटल जर्जर होता जा रहा है। पूर्व के उच्च न्यायालय डोरण्डा के पास डोरंडा में 2.7 एकड़ की प्रमुख भूमि पर निर्मित उक्त होटल ने वर्ष 1987 में आईटीडीसी और बिहार पर्यटन के बीच एक संयुक्त उद्यम के रूप में परिचालन शुरू किया था। तब रांची अविभाजित बिहार का हिस्सा था।
नवंबर 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड बनने के बाद नए राज्य को 12.5 प्रतिशत हिस्सा दिया गया, क्योंकि जिस जमीन पर होटल बना है वह झारखंड सरकार की संपत्ति अब है। आदिवासी मूलवासी जन अधिकार मंच को यह उम्मीद है कि यह होटल जो वर्ष 2018 से निष्क्रिय है. राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
होटल के कुल स्वामित्व के लिए शेष 36.5 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए पहले ही बिहार सरकार से संपर्क कर चुके हैं। मंच का यह मानना है कि सीएम सोरेन के नेतृत्व में होटल अशोका जो अपनी पहचान खो चुका है, उसकी पहचान बनेगी और जल्द से जल्द होटल अशोक को भी जीवनदान मिलेगा।
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