गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र के 24 बिहार विधान परिषद चुनाव परिणाम ने भाजपा (BJP) जदयू गठबन्धन को इस बार झटके पर झटका देने वाला साबित हो रहा है।
जानकारी के अनुसार बिहार की बाहुबली जाति कहे जानेवाला भुमिहार बहुल पटना, सांसद ललन सिंह के मुंगेर, गिरिराज सिंह के बेगुसराय सहित चंपारण, सारण आदि क्षेत्रो से जीते गैर एनडीए प्रत्यासी।
अगले लोक सभा और विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिय खतरे की घण्टी साबित होगा। जदयू भाजपा के लिये भूमिहारो की उपेक्षा बनेगी इसके हार का कारण। अगर बोचहा भाजपा हारती है तो आगे के लिये आरजेडी का रास्ता आसान होगा।
यह एक कटु सत्य है कि बिहार की राजनीति जातीय गोलबंदी के इर्द गिर्द घूमती है। सन 1990 के पूर्व बिहार की राजनीति पर सवर्णो का कब्जा था, लेकिन बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने पिछड़ी जातियों को गोलबंद करना शुरू किया। सन 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हुए।
लालू ने पिछड़ो ओर दलितों को आवाज दी, लेकिन सत्ता पर बने रहने के लिये लालू यादव ने अगड़ी जातियों को पिछड़ी जातियो के बीच एक शोषक के रूप में पेश किया। जिससे पिछड़ी जातियों और अग्री जातियो के बीच घ्रणा की एक नई सोच पनपी।
लालू यादव ने भुरा बाल साफ करो का नारा दिया। इन सब वजहों से मध्य बिहार में भूमिहारो के खिलाफ खूनी जंग छिड़ गया। पिछड़ी जाति के लोगो ने बाड़ा ग्राम के 42 भूमिहार युवा, मर्द, औरत, बच्चे को जिंदा जला दिया। इस घटना के बाद मध्य बिहार में भूमिहारो की रक्षा के लिये रणवीर सेना का गठन हुआ। पूरा मध्य बिहार रक्त रंजित हो गया।
वर्ष 1991 में हुए उपचुनाव में ललितेश्वर प्रसाद शाही के पुत्र हेमन्त शाही वैशाली विधान सभा से विधायक चुने गए। हेमन्त शाही एक युवा और दबंग नेता थे।
बाड़ा नरसंहार की घटना को लेकर हेमन्त शाही लालू का विरोध करने लगे, जिस वजह से राष्ट्रीय (National) जनता दल के नेताओं ने हेमन्त शाही को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगे। 28 मार्च 1992 को वैशाली जिला (Vaishali district) के हद में गोरौल अंचल कार्यालय में अंचलाधिकारी के कक्ष में हेमन्त शाही को गोली मारी गई।
इस घटना में हेमन्त शाही के सुरक्षा कर्मी की गोली से 3 हत्यारे भी मारे गए।हेमन्त शाही को इलाज के लिये मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) ले जाया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना में मारे गए हत्यारो को बिहार के मुख्यमंत्री (Chief minister) लालु यादव द्वरा शहीद बताते हुए उसके श्राद्ध कर्म में शामिल हुये और मालार्पण भी किया।
सन 1990 से लेकर 2005 तक बिहार में आरजेडी (RJD) के लालू यादव की सरकार रही। इन 15 वर्षों के लालू राबड़ी के शासन काल मे मध्य बिहार पुरी तरह रक्त रंजित रहा। इस काल मे भूमिहारो ने बहुत कुछ खोया। सन 1999 के सेनारी गांव में 34 भूमिहार युवाओं का नरसंहार हुआ। फिर भी भूमिहारो ने अपना संघर्ष नही छोड़ा ।
भूमिहारो की यादवो के साथ कोई जाति दुश्मनी नही रही, लेकिन लालू यादव ने भूमिहारो को जो दर्द दिया उसे समाज आज भी नही भूल पाया है। कुछ युवा जो उस काल की घटना नही जानते हैं, वर्तमान में राजद के युवा नेतृत्व की ओर देख रहे हैं।15 वर्ष के प्रदर्शन के बाद लालू राज 2005 में खत्म हुआ। भुमिहार समाज ने राजद से जो दूरी बनाए वह आज भी कायम है।
ध्यान देने योग्य बात है कि वर्ष 2005 से भुमिहार समाज एनडीए का पक्का वोटर रहा है। लेकिन नीतिश कुमार भी सन 1990 वाले अगरे पिछड़ी वाली राजनीति की उपज है। गत 15 वर्षों से एनडीए को लालू विरोध के नाम पर समर्थन देते रहने की वजह से भुमिहार समाज राजनीतिक रूप से कमजोर हुआ है।
एनडीए की नीति की वजह से मुजफ्फरपुर, चंपारण, जहानाबाद और सारण के भुमिहार बहुल क्षेत्रो में भुमिहार समाज राजनैतिक रूप से कमजोर हुए हैं। एनडीए के नेता जंगल राज की वापसी का भय दिख कर इस समाज का शोषण कर रहे है।
इस वर्ष बिहार विधान परिषद के स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र से जिन 24 सीट पर चुनाव हुआ, उसमे एक नई बात देखने को मिली। पहली बार राजद ने 24 में से 5 सीट भुमिहार समाज को दी। जिनमे 3 सीट पर भुमिहार समाज के लोग विजयी हुए।
सारण से निर्दलीय सच्चिदानंद राय विजयी हुए, तो वही बेगुसराय से गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र से भूमिहार प्रत्याशी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल किया।
यानी भूमिहार समाज ने एनडीए प्रत्याशी को छोड़कर पटना, मुंगेर, बेगुसराय, चंपारण, सारण से राजद या निर्दलीय प्रत्याशी को जिताया, जो साफ संकेत है कि भुमिहार समाज अब राजद को अछूत नही मानता। यह बिहार में राजनैतिक परिवर्तन का संकेत है।
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