एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना के प्रेमचंद रंगशाला में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से रंगसृष्टि पटना की नवीनतम प्रस्तुति भिखारी ठाकुर लिखित नाटक बेटी वियोग का 24 जनवरी को मंचन किया गया।
उक्त जानकारी देते हुए कलाकार साझा संघ सचिव मनीष महीवाल मनीष महीवाल ने बताया कि उक्त नाटक की प्रस्तुति सनत कुमार के निर्देशन में आयोजित किया गया। महीवाल ने बताया कि नाटक बेटी वियोग के मंचन के शुरूआत में कलाकारों का पूरा समूह मंच पर उपस्थित होकर पंच के कई सवालों के साथ प्रवेश करता है, जिसमें आग्रह किया जाता है कि रंगकमीयों और कला समीक्षकों को नाटक देखकर समीक्षा करनी चाहिए। इसी नसीहत के साथ नाटक आगे बढ़ता है।
प्रस्तुत नाटक में पिछड़े इलाके का एक किसान चटक जो आर्थिक रूप से कमजोर है। वह अपनी बेटी की शादी करना चाहता है, पर उसके पास दहेज देने के लिए कुछ भी नहीं है। उस किसान (वटक) का जमीन भी गीरवी है। पिछड़े क्षेत्रों के गाँवों में जब बहुत उम्र होने के बाद किसी धनी व्यक्ति के पुत्र की शादी किसी कारण से नहीं होती थी तो वह अपने जाति या किसी अन्य जाति के किसी गरीब, जरूरतमंद और लाचार व्यक्ति की पुत्री खरीदकर व्याह रचाता था, ताकि उसका वंश-परंपरा चल सके।
ऐसी शादियों में अक्सर उम्र की दृष्टि से बेमेल व्याह होते थे। ऐसी शादीयों में लड़के वाले लड़की वाले को रूपया देते थे। लड़की वाले अपनी लड़की बेचते थे। नाटक में गाँव के एक पंड़ित दोलो की मदद से जवार (जिला) के ही एक गाँव बकलोलपुर में दोलो जाकर झंटुल नामक एक धनी बिमार बुढे व्यक्ति से बातचीत की। जिसका व्याह किसी कारण पहले नहीं हो सका था। किसान चटक पंड़ित का प्रस्ताव मान लेता है।
चटक ने सोलह सौ रूपया में जो आज दस लाख के बराबर होगा पर अपनी पुत्री को बेचने का सौदा कर लिया। चटक ने उस राशी में से दो सौ रूपया पंड़ित को देने का वादा किया। उपातो दुल्हा को देख कर खुब बिल्खी रोई, किन्तु परम्परा के अनुसार वह विदा होकर ससुरार चली गई। भारी मन और उद्वेग से वह ससुराल चली जाती है।
दुल्हन को परम्परा के अनुसार विदाई कर दिया जाता है। जब वह ससुराल जाती है तो उसे मालुम होता है कि उसका पति सुहाग का सुख भी नहीं दे पाएगा।
उसके सब्र का बांध टूट जाता है और भाग कर नईहर (मायके) आ जाती है। नव विवाहिता रो रो कर माता-पिता और समाज को दोषी करार देती है। वह धार्मिक नैतिकता और परम्परा की दुहाई देकर उसे अपने पति के साथ जाने को है। लड़की को हर हाल में अपने पति के साथ ही जाना होगा, चाहे वह बिमार हो या न हो। समाज का यह भयानक चेहरा भी सामने आता है। समाज जब तक जागता है बहुत देर हो चुका होता है। लड़की फांसी लगाकर जान दे देती है। इस दृश्य से चटक और उसकी पत्नी की नीद्रा टूटती है।
नाटक में पति, पत्नी सभी से निहोरा करते है कि लड़की की शादी ऐसा जगह करें की वह हमेंशा खुश रहे। इस प्रस्तुति को दर्शकों ने खुब सराहा।प्रस्तुत नाटक में भाग लेने वाले कलाकारो में किसान चटक सत्यम मिश्र, चटक की पत्नी तनु प्रिया, नव विवाहिता लड़की रूपम कुमारी, सखी वर्षा कुमारी, गोतिया अमन कुमार, बूढा दुल्हा पंकज कुमार रॉय, दुल्हा का पिता धर्मेन्द्र कुमार, पंड़ित सनत कुमार, पंच अमित अकेला, समाजी सोनु, आदित्य, मुकेश,आदि।
नीतु, आरूषि, अमृता, गायिका, संगीत संयोजन सागरिका वर्मा,
हारमोनियम रोहित यंद्रा, ठोलक एवं तबला स्पर्श मिश्रा, नगाडा, झाल एवं खंजरी गोरख पांडेय, राकेश चौधरी, प्रोडक्शन कंट्रोलर नेहाल कुमार सिंह निर्मल, नृत्य संयोजन धर्मेन्द्र कुमार, कार्याक्रम संयोजक कुणाल कुमार, उदघोषक कुमार रविकांत एवं नेहाल, परिकल्पना एवं निर्देशन सनत कुमार का है।
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