बाबूलाल मरांडी का संकल्प यात्रा और आदिवासी जनमानस

फिरोज आलम/जैनामोड़ (बोकारो)। क्या भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का संकल्प यात्रा झारखंड के आदिवासी जनमानस को आकर्षित कर सकेगा? शायद नहीं। क्योंकि आदिवासी जनमानस प्रकृति पूजक हैं।

आदिवासी सरना धर्म कोड मान्यता की मांग करता है। गिरिडीह जिला के हद में पारसनाथ पहाड़ में स्थित मरंग बुरू को जैनियों के कब्जे से पुनर्वापसी चाहता है। एकमात्र बड़ी आदिवासी संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा चाहता है।

दूसरी तरफ कुर्मी महतो को एसटी बनाने की चिंता, सीएनटी- एसपीटी कानून के बावजूद जमीन लूट की चिंता, स्थानीयता, आरक्षण तथा आदिवासी युवाओं को नियोजन की चिंता, मणिपुर में हुई दरिंदगी की चिंता आदि आदिवासी जनमानस के दिल दिमाग को झकझोर रहा है।

लगभग अधिसंख्य आदिवासी गांव-समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता, वोट को हँड़िया, दारु, चखना, रुपयों में खरीद बिक्री रोकना भी जरूरी है। परंपरा के नाम पर वंशानुगत नियुक्त अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान तथा कानून से अनभिज्ञ आदिवासी स्वशासन प्रमुखों की जगह जनतांत्रिक- संवैधानिक स्वशासन प्रमुखों की नियुक्ति जैसे समाज- सुधार की जरूरत भी आन पड़ी है।

मगर क्या बाबूलाल मरांडी का संकल्प यात्रा केवल वोट यात्रा बनकर रह जाएगा या आदिवासी समाज सुधार का मंत्र भी फूंक सकेगा ? अन्यथा आदिवासी जनमानस पहले से ही बीजेपी के प्रति सशंकित है। क्योंकि बीजेपी आदिवासी को वनवासी और सरना की जगह हिंदू का ठप्पा जबरन लगाती है। ऐसे में आदिवासी कैसे भाजपा के करीब जा सकेंगे।

लूट, झूठ और भ्रष्टाचार पर सवार झामुमो सरकार से आदिवासी जनमानस काफी निराश, हताश है। मगर क्या बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा कोई सार्थक विकल्प दे सकेगा? आदिवासी जनमानस को अपना सकेगा?

 156 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *