मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य समाज में अपनापन, भाईचारा, शांति और अहिंसा
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। धरती पर मानवता को बचाने के लिए सभी को जाति – पंथ के दायरे से ऊपर उठ कर यह नारा बुलंद करना होगा कि मानव चाहे जिस रंग या नस्ल के हों, जिस जाति या धर्म के हों, सभी एक हैं और मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य समाज में अपनापन, भाईचारा, शांति, अहिंसा और सभी प्रकार की विषमताओं को दूर कर सद्भाव से भरी एक आदर्श जीवन शैली का निर्माण करना है।
उक्त बातें सारण जिला के निकटवर्ती वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर नगर स्थित बाबू शिवजी राय मेमोरियल लाइब्रेरी में बीते 21 अप्रैल की देर शाम आयोजित मानवतावाद की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए गए। गोष्ठी का आयोजन सामाजिक कार्यकर्ता स्मृति शेष बाबू शिवजी राय की चौदहवीं पुण्यतिथि के अवसर पर किया गया।
प्रारंभ में लाइब्रेरी के सचिव एवं रंगकर्मी कुमार वीर भूषण द्वारा अतिथियों एवं वक्ताओं के स्वागत भाषण से किया गया। जिसमें साहित्य, शिक्षा, राजनीति, सामाजिक कार्य, रंगमंच, कानून और ललित कला के अनेक विद्वानों ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर ललित कला के समीक्षक, लेखक और शोध मार्गदर्शक सुमन कुमार सिंह और दिल्ली के ललित कला के कलाकार विपिन कुमार को बाबू शिवजी राय स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया।
सेमीनार की अध्यक्षता लाइब्रेरी के उपाध्यक्ष लेखक और पत्रकार सुरेंद्र मानपुरी ने की। शिक्षक उमेश निराला ने विषय प्रवेश कराते हुए मानवतावाद के सिद्धान्त और उपयोगिता की बात रखी। लाइब्रेरी के उपाध्यक्ष मुकेश रंजन ने कहा कि मानवतावाद के विकास के लिए युवाओं को जागरूक करना होगा और मानवतावाद को कोर्स में स्थान दिलाना होगा। कवि डॉ नंदेश्वर प्रसाद सिंह ने मानवतावाद पर अपनी एक कविता का पाठ किया।
अधिवक्ता और साहित्यकार विजय कुमार ‘विनीत’ ने भी मानवतावाद पर अपने विचारों को रखा। शोध मार्गदर्शक एवं कवि डॉ अरुण ‘निराला’ ने अकादमिक वक्तव्य दिया और कहा कि मानवतावाद का अर्थ मन के विकास से है। मन द्वेष से मुक्ति और जगत के सभी चर – अचर के कल्याण की चाहत रखता है, लेकिन इसके प्रतिकूल कार्य करने वाले संगठन ही आज मुकाम पर है।
वरिष्ठ रंग निर्देशक क्षितिज प्रकाश का मानना है कि छद्म राष्ट्रवाद और तत्काल भौतिक सुख मानवतावाद के मार्ग में खड़ा है। दलित सेना के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम कुमार दाहा ने कहा कि मानवतावाद पर एक पुनर्जागरण की आवश्यकता है और समाज के सचेत वर्गो को अभियान चलाना होगा। छात्र विवेक मिश्रा ने रेखांकित किया कि आज की मीडिया, आज के धार्मिक – मजहबी संत, मौलवी पादरी आदि भी मानवतावाद के लिए काम नहीं कर राजनीति और सत्ता के आसपास ही बात कर मानवतावाद को क्षति पहुंचा रहे है।
दिल्ली से आए मुख्य अतिथि ललित कला के मर्मज्ञ सुमन कुमार सिंह ने कहा कि भारत दुनिया में मानववाद के जनक के रूप में जाना जाता था, लेकिन आज हमारा राष्ट्रीय चरित्र ही इसके विरुद्ध हो गया है। यह चिंता का विषय है। कहा कि मानवतावाद को केंद्र में रख कर एक अभियान की आवश्यकता है।
अध्यक्षीय संबोधन में पत्रकार सुरेन्द्र मानपुरी ने कहा कि यह ठीक है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गिरावट आ रही है, लेकिन इससे निराश होने की जरूरत नहीं है। हर काली रात की एक सुबह अवश्य होती है। मानव इतिहास के प्रायः सभी काल खंडों में विषम परिस्थितियों से जूझ कर मानव को अपना अस्तित्व बचाना पड़ा है। परिस्थितियों से जूझने का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। आवश्यकता है कि हम एक दूसरे को गले लगाएं। हर गिरते हुए को थामें और हर दुखी को प्यार दें।
कार्यक्रम में अतिथि विपिन कुमार, गायक नवल किशोर सुमन, गायिका विवेका चौधरी, शिक्षक राजेश परासर, रंगकर्मी दीनबंधु, मुस्कान राज, सुष्मिता भारती, अंजू चौबे, अधिवक्ता आशिकी कुमारी, राजेश कुमार बक्शी, हरिशंकर प्रसाद सुमन, भास्कर झा, अनीश सिंह, गांधी राय, रूपा कुमारी ने अपनी बातें रखी। रश्मि चौधरी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत संस्थापक कुमार वीर भूषण और धन्यवाद ज्ञापन कर्नल कुमार ने किया।
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