रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। कसमार प्रखंड के बगदा रहिवासी कला समीक्षक व् लेखक मनोज कुमार कपरदार की पुस्तक झारखंड की आदिवासी कला परंपरा को डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के अंतर्गत डिपार्टमेंट ऑफ परफाॅर्मिंग आर्ट्स ने अपने स्नातक के पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
जानकारी के अनुसार देश की नई शिक्षा नीति के तहत बने पाठ्यक्रम के अंतर्गत थर्ड सेमेस्टर की थ्योरी पेपर में कपरदार की पुस्तक को शामिल किया गया है। कपरदार ने इसे अपने जीवन की बड़ी उपलब्धि बताया है।
उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को तैयार करने में जो मेहनत की, वह अब जाकर सार्थक साबित हुई है। उन्होंने कहा कि इसके पाठ्यक्रम में शामिल होने से कला के विद्यार्थियों को झारखंड की कला- परंपराओं से अवगत होने का मौका मिलेगा।
कपरदार की इस उपलब्धि पर कसमार प्रखंड की जनता व कला प्रेमियों ने हर्ष व्यक्त किया है। रहिवासियों के अनुसार कपरदार की पूरी पुस्तक को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना बड़ी उपलब्धि है।
बता दें कि, इस पुस्तक में लेखक ने झारखंड में विकसित हो रही नयी कला (आर्ट), मंडवा कला, जनी शैली (स्ट्रा आर्ट), जनी शिकार पेंटिंग, टोटका कला जैसी कलाओं के साथ-साथ विलुप्त हो चुकी कोल भित्ति चित्र की चर्चा की है।
कपरदार की इस पुस्तक को पढ़ने से यह भ्रम टूट जाता है कि बोकारो जिला के हद में सुदूर इस क्षेत्र के रहिवासी सदा से पिछड़े रहे हैं। झारखंड की कला परंपरा को एक ही पुस्तक में मणिमाला की मोती की तरह पिरो कर लिखी गयी यह उम्दा पुस्तक हाल ही में प्रकाशित हुई है। झारखंड की कला परंपराओं पर लिखी गयी यह पहली पुस्तक सही मायने में झारखंड के कला का एक दस्तावेज है।
प्रभात प्रकाशन नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित 142 पृष्ठों की इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने झारखंड की कला शैली की रेखाओं और उखड़ती परंपराओं के संसार को जीवंत करने का प्रयास किया है।
लेखक कपरदार जमीन से जुड़े एक चिंतनशील और विचारक, लेखक और कला समीक्षक हैं, जो अपनी रचनाओं के माध्यम से झारखंड की कला संस्कृति को बनाये तथा बचाये रखने का स्वप्न देखते रहे हैं।
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