जाकिर हुसैन भवन में अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद एडहॉक कमिटी की बैठक

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में कुरपनिया स्थित मिल्लत क्लब के सामने डॉ जाकिर हुसैन भवन में 23 दिसंबर को अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद बोकारो जिला एडहॉक कमिटी की एक मीटिंग की गयी। अध्यक्षता एडहॉक कमिटी के जिलाध्यक्ष अफजल अनीस ने की।

जानकारी के अनुसार आयोजित एडहॉक कमिटी की बैठक में अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद झारखंड के अध्यक्ष एम. जेड. खान ने पर्यवेक्षक के रूप में अंजुमन तरक्की उर्दू धनबाद के अध्यक्ष एस.एम.ए. रिजवी को पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया था। रिजवी के उपस्थिति में अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद बोकारो जिला कमिटी का चुनाव किया गया, जिसमें सर्वसम्मति से अध्यक्ष अफजल अनीस, उपाध्यक्ष सुबोध सिंह पवार, मो. मोहिउद्दीन, महासचिव अबुल कलाम, सह सचिव सलमान अख्तर, मो. रईस आलम, प्रकाशन सचिव मास्टर मो. असलम, कोषाध्यक्ष मो. निजाम कादरी, सह कोषाध्यक्ष मिराज आलम, कार्यकारिणी सदस्य मो. शहजादा, शफी अय्यूब, नसीम अहमद, अबुल रज्जाक नदवी का चयन किया गया।

मौके पर पर्यवेक्षक रिजवी ने कहा कि उर्दू का इतिहास और विकास साहित्यिक धरोहर है, क्योंकि उर्दू का उद्भव भारतीय उप महाद्वीप में हुआ, जहां यह कई भाषाओं और संस्कृतियों के संगम से विकसित हुई। उन्होंने कहा कि उर्दू का तरजुमा खड़ी बोली है, जिसमें फारसी, अरबी, तुर्की और संस्कृत के शब्द शामिल हैं। यह भाषा 12वीं शताब्दी के आसपास दिल्ली सल्तनत और मुग़ल काल के दौरान पनपी।

उन्होंने कहा कि उर्दू को लश्करी ज़बान भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है सेना की भाषा। यह उन सैनिकों व् तब के रहिवासियों की भाषा थी, जो अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आते थे और आपस में संवाद करते थे। अध्यक्षता कर रहे अफजल अनीस ने कहा कि उर्दू किसी एक कौम की भाषा नहीं है। कहा कि उर्दू भाषा को अक्सर किसी एक कौम या विशेष समुदाय से जोड़ा जाता है, लेकिन यह धारणा ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि किसी भाषा का किसी धर्म या कौम से जुड़ना सांस्कृतिक विभाजन को बढ़ावा देता है।

उर्दू का यह गुण है कि वह भौगोलिक और सांप्रदायिक सीमाओं को पार करती है। यह कहना कि उर्दू केवल एक विशेष समुदाय की भाषा है, इसके वास्तविक स्वरूप और इतिहास के साथ अन्याय होगा। उपाध्यक्ष सुबोध सिंह पवार ने कहा कि उर्दू भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह भाषा हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य समुदायों के बीच एक सांस्कृतिक पुल का काम करती है।

कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी उर्दू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सार्वजनिक और राष्ट्रीय संवाद में उर्दू भाषा का व्यापक उपयोग किया गया। कहा कि उर्दू भाषा केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति इसे अपनाता है, जो इसकी मिठास और गहराई को समझता है।
जामा मस्जिद कुरपनिया के ईमाम हाफिज शहाबुद्दीन नदवी ने कहा कि उर्दू भाषा अपने लहजे, नज़ाकत और मिठास के लिए जानी जाती है। इसका सही उच्चारण न केवल भाषा की खूबसूरती को बढ़ाता है, बल्कि सुनने वालों पर भी गहरा असर छोड़ता है। उर्दू की सही अदायगी, उसकी महक और रूह को महसूस करने का जरिया है।

यहां अबुल कलाम खान, मो. उमैर, अब्दुल रज्जाक नदवी ने भी अपने विचार साझा किए। मौके पर बदरे आलम, मो. जसीम, डॉ अबरारुल हक, मो. जावेद अंसारी, लल्लू शेख, मो. बलाल अंसारी, मो. गुलाम, मो. ओसामा, हबीबुर रहमान, मो. पीर मोहम्मद, मास्टर असलम, मुन्ना सिंह, मो. इनतेसार अहमद, मो. अय्यूब, मो. उस्मान, सरफराज हुसैन, अतहर आदम, मो. रईस आलम, मो. नेहाल, मो. मेराज, उस्मान कादरी, मो. इनामुल हक आदि गणमान्य उपस्थित थे।
कार्यक्रम को सफल बनाने में शामी अनीस, वक्कार, मो. सैफ आलम की सक्रिय भूमिका रही। जबकि संचालन मास्टर असलम ने किया।

 42 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *