वुडको एमडी ने अम्बेडकर जयंती पर भी कार्यालय दिवस का जारी किया आदेश
एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार शहरी अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (बुडको) के एमडी द्वारा 12 अप्रैल को जारी कार्यालय आदेश के बाद कार्यरत कामगारों का पारा हाई है। कर्मचारी इस कार्यालय आदेश को अपने अधिकारों का उल्लंघन और अंबेडकर जयंती के प्रति अनादर के रूप से देख रहे है।
कामगारों के अनुसार बिहार शहरी अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (बुडको) के प्रबंध निदेशक अनिमेष कुमार द्वारा जारी कार्यालय आदेश पत्रांक-52 ज्ञापांक-1136 कानूनी उल्लंघन, प्रशासनिक अतिक्रमण और सामाजिक असंवेदनशीलता को जन्म देती है।
एमडी द्वारा जारी कार्यालय आदेश में सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से बीते 13 अप्रैल तथा 14 अप्रैल को कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। जबकि 13 अप्रैल को रविवारीय छुट्टी तथा 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती की छुट्टी पूर्व घोषित है। कहा गया कि यह आदेश कई श्रम कानूनों और सरकारी मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होता है, जिनमें राजपत्रित छुट्टियों की अवहेलना है। कहा गया कि अंबेडकर जयंती पूरे भारत में एक राजपत्रित अवकाश है।
इसका विशेष संवैधानिक और सांस्कृतिक महत्व है। बिना किसी सार्वजनिक आपातकाल या कानूनी प्रावधान के कर्मचारियों को इस दिन काम करने के लिए मजबूर करना, नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 के अनुसार वैधानिक अवकाश अधिकारों को कमजोर करता है।
कामगारों के अनुसार यह श्रम कल्याण कानूनों का उल्लंघन है। इस तरह का निर्देश कारखाना अधिनियम 1948, बिहार सेवा संहिता और अन्य श्रम विनियमों के प्रावधानों का खंडन करता है, जो छुट्टी के दिन काम करने के लिए प्रतिपूरक प्रावधानों और कर्मचारी की सहमति को अनिवार्य बनाते हैं।
कहा गया कि डॉ बी.आर. अंबेडकर न केवल भारतीय संविधान के निर्माता, बल्कि देश के करोड़ो दलितों और पिछड़े समुदायों के लिए सम्मान के प्रतीक भी हैं। अंबेडकर जयंती पर सरकारी कर्मचारियों को काम करने के लिए मजबूर करना नेतृत्व के असंवेदनशील और संभावित रूप से पूर्वाग्रही रवैये को दर्शाता है। आरोप सामने आए हैं कि यह निर्णय पिछड़े और हाशिये पर पड़े समुदायों की भावनाओं की जानबूझकर अवहेलना करते हुए लिया गया हो सकता है, जिससे एमडी के पूर्वाग्रह और इरादे पर सवाल उठता है। यह न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों का प्रतीकात्मक अपमान भी है।
कामगारों द्वारा कहा गया कि यह आवश्यक है कि मीडिया इस मुद्दे को प्रकाश में लाए, ताकि पारदर्शिता, जवाबदेही और कर्मचारियों के वैध और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। आज सार्वजनिक चिंता के इस मामले पर एकबार फिर समाज व् देश को विचार करने की जरूरत है।
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