संसार में श्रीराम ही सर्वश्रेष्ठ सत्पथगामी हैं-जगद्गुरु लक्ष्मणाचार्य

भगवान श्रीराम के प्राक्ट्योत्सव पर श्रीराम चरितमानस का अखंड पाठ

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर के श्रीगजेन्द्रमोक्ष देवस्थानम् नौलखा मन्दिर में 17 अप्रैल को भगवान श्रीराम का प्राक्ट्योत्सव धूमधाम से मनाया गया। इससे पूर्व 16 अप्रैल से श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम में श्रीरामचरितमानस का अखण्ड पाठ प्रातः 9 बजे से प्रारंभ किया गया।

जानकारी के अनुसार 17 को 9 बजे रामायण का विधिवत पूर्णाहुति कर भगवान श्रीगजेन्द्र मोक्ष एवं सभी श्रीविग्रहों का महाभिषेक सहस्त्रधारा पद्मधारा शंख धाराओं से, दिव्य रसायनों तथा फलों के रसों से अभिषेक किया गया। ठीक 12 बजे दिन में श्रीराम प्राकट्य महोत्सव मनाया गया। यहां दिव्य महाआरती की गयी।

इस अवसर पर हरिहर क्षेत्र पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित कर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हुए भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव की कथा वाचन किया। स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने कहा कि नहि रामात् परो लोके विद्यते सत्पथे स्थित: अर्थात संसार में श्रीराम ही सर्वश्रेष्ठ सत्पथगामी हैं।

उन्होंने कहा कि वास्तव में श्रीराम का आचरण ही मूल सनातन धर्म है।पूर्णब्रह्म श्रीनारायण ही मर्त्यलोक में मर्यादा की स्थापना के लिए मानवावतार लिए हैं, जिन्हें श्रीराम नाम से जगत् जानता है।

कहा कि रामाभिधानो हरिरित्युवाच। पूर्णब्रह्म श्रीराम सत्परायण, सत्य प्रतिज्ञ, सत्य संकल्प, सत्पुरुष, मृदुभाषी, मधुभाषी, शिष्टभाषी, अनुशिष्ट भाषी, मिष्ट भाषी, ऋत भाषी, मित भाषी, हित भाषी, सत्य भाषी, प्रियभाषी, पूर्वभाषी तथा अपूर्वभाषी हैं।

उन्होंने कहा कि श्रीराम बहुश्रुत विद्वानों, वयोवृद्धों तथा ब्राह्मणों को अपूर्व आदर देनेवाले हैं। बहुश्रुतानां वृद्धानां ब्राह्मणानामुपासिता। श्रीराम चरितमानस एक ऐसा दिव्य ग्रन्थ है, जिसका कोई भी पात्र श्रीराम का विरोधी नहीं है।

स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने कहा कि देखा जाय तो रावण भी रामजी का भक्त ही है, क्योंकि वह श्रीजानकी जी को माता मानता है। मन महुँ चरन बन्दि सुख माना। मारीच भी श्रीरामजी का प्रेमी है। अन्तर तासु प्रेम पहिचाना। श्रीराम चरितमानस का अध्ययन करने पर जितने भी पात्र हैं, वे सभी श्रीराम से प्रेम करते हैं। देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा। प्रकट भए सब जलचर बृन्दा।

तिन्हकी ओट न देखिअ बारी। मगन भए सब रूप निहारी।
यहां का वर्णन तो अतिशय अपूर्व है। मार्ग में चिदचिद्विशिष्ट ब्रह्म आनन्द-कन्द-कौशलचन्द्र श्रीराम का दर्शन सर्प, विच्छू आदि भी करने के लिए अत्यन्त त्वरा के साथ प्रतिक्षा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि श्रीराम के दिव्य दर्शन होते ही हिंसक जीव अहिंसक हो गये। विषधर पीयूष धर बन गये। जिन्हहिं निरखि मग साँपिन बीछी। तजहिं विषम विष तामस तीछी।

खर, दूषण, रावण आदि राक्षस, कोल, भील, किरात, बन्दर, भालू, साँप, बिच्छू, जलचर, नभचर जितने भी जीव हैं, सभी श्रीराम से प्रेम करते हैं। सनत्कुमार और ब्रह्मज्ञानी महाराजा जनक की श्रीराम भक्ति तो विश्वविश्रुत हैं ही। श्रीशुकदेव जी कहते हैं कि परीक्षित् भगवान् श्रीराम का चरित्र वर्णन महान तत्त्वदर्शी ऋषियों ने किया है, जो लोक प्रसिद्ध है। जिसे तुमने अनेकों बार सुना भी है। श्रुतं हि वर्णितं त्वया सीतापतेर्मुर्हु:।

लक्ष्मणाचार्य महाराज ने कहा कि भगवान् श्रीराम का चरित्र का वर्णन जितना विस्तार से ऋषियों के द्वारा हुआ, वैसा चरित्र वर्णन अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता है। श्रीराम पूरणकाम केशव कृष्ण, विष्णु सनातनम्। वपु प्राण-प्राण प्रणम्य पावन पद्मनाभ नमाम्यहम्। इस प्रकार अन्त में भजन संकीर्तन, प्रसाद वितरण एवं महाभण्डारा का आयोजन किया गया।

उक्त अवसर पर स्थानीय एवं श्रद्धावान दर्जनों रहिवासियों के साथ दिलीप झा, विनय चौबे, रमाकांत सिंह, भोला सिंह, अमरनाथ सिंह, फूल देवी झा, कान्ति देवी, रानी, रुपा, ममता देवी आदि श्रद्धालूगण उपस्थित थे।

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