अनुमंडल स्तरीय सरहुल पर्व धूमधाम व् हर्षोल्लास के साथ संपन्न

आदिवासी समाज द्वारा सांस्कृतिक और प्राकृतिक की सुरक्षा-योगेन्द्र

ममता सिन्हा/तेनुघाट (बोकारो)। बोकारो जिला के हद में तेनुघाट पंचायत भवन के समीप 14 अप्रैल को अनुमंडल स्तरीय सरहुल पर्व धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यहां बतौर मुख्य अतिथि ओबीसी पिछड़ा अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद महतो शामिल हुए।

सरहुल पूजा के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे गोमियां के पूर्व विधायक सह ओबीसी पिछड़ा के अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद महतो ने कहा कि सरहुल पूजा प्रकृति की पूजा है, जो नव वर्ष में प्रवेश के बाद ईश्वर से प्रार्थना कर सभी परिवारों के सदस्यों और घर में खुशहाली हो और सब परिवार खुशहाल रहे इसकी कामना की जाती है।

उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज द्वारा सांस्कृतिक और प्राकृतिक का सुरक्षा मूल रूप से किया जाता रहा है। कहीं कोई संदेह नहीं है कि प्रकृति और संस्कृति रक्षा आदिवासी समाज के द्वारा संरक्षित की गई है।

इस अवसर पर उन्होंने बताया कि संस्कृति और सभ्यता यदि संरक्षित है तो उसमें कहीं ना कहीं आदिवासी समाज के भाई बंधु की बहुत बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने सरहुल पर्व के अवसर पर सभी रहिवासियों को बधाई और शुभकामना दिया।

इस खास मौके पर जिला परिषद पूर्व उपाध्यक्ष राधानाथ सोरेन, पेटरवार प्रखंड बीस सूत्री अध्यक्ष मुकेश महतो, प्रकाश महतो, अरविंद मुर्मू, चांपी पंचायत के पूर्व मुखिया श्रीराम हेंब्रम, पूर्व पंचायत समिति सदस्य सुख लाल मुर्मू, सीताराम मुर्मू, बाबू चंद सोरेन, कालेश्वर सोरेन, दिलीप सोरेन, मिथुन सोरेन, लालजी टुड्डू, पंकज नायक, शालिग्राम प्रसाद, राजन नायक सहित कई गणमान्य रहिवासी उपस्थित थे।

वहीं इससे पूर्व आदिवासी संथालों का पूजा स्थल में पूजा अर्चना पारंपरिक रूप से संथालों के पुजारी नायके द्वारा बहा (फूल) चढ़ाकर और नायके ने सभी को माथे में फूल लगाकर सबों को आशीर्वाद देकर सबको बहा पर्व का शुभकामनाएं दिया। इसके बाद सांस्कृतिक नृत्य, ढोल, नगाड़ा के माध्यम से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।

ज्ञात हो कि, आदिवासियों का यह सबसे बड़ा प्रकृति पर्व बसंत ऋतु में तीन से चार दिनों तक मनाए जाने वाला प्रमुख पर्व है। यह मुख्यत: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होता है और पूर्णिमा को समाप्त होती है। वसंत ऋतु में अपनी पुरानी पत्तीयों को गिराकर टहनियों पर नई नई पत्तीयां लगती है जिसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है।

आदिवासियों में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता हैं यथा बहा, सरहुल आदि। ऐसी मान्यता है कि सालो के वृक्षों में जनजातियों के देवता बोंगा निवास करते हैं। सरहुल अर्थात सर – साल हूल -क्रांति का भी प्रतीक माना जाता है। वही इस अवसर पर ढोल नगाड़ों के साथ आदिवासी नृत्य के साथ सभी ने इसका आनंद उठाया। साथ ही बच्चों ने भी मेला का पूरा आनंद उठाया।

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