एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान के समीप स्थित कालिदास रंगालय में 2 फरवरी को 38वाँ पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव का आगाज किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन पूर्व मंत्री सह अध्यक्ष पाटलिपुत्र नाट्य श्याम रजक, अपर मुख्य सचिव कला, संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार सरकार हरजोत कौर, निदेशक संस्कृति कार्य कला एवं युवा विभाग बिहार सरकार रूबी ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व मंत्री श्याम रजक ने की।
इस अवसर पर शिवनंदन प्रसाद हर्षवर्धन स्मृति सम्मान आगरा (उत्तर प्रदेश) के डॉ राहुल राज कुलश्रेष्ठ, नित्याचार्य गौतम घोष स्मृति सम्मान कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के अर्ध्य दासगुप्ता, नाटककार अरुण सिंह स्मृति सम्मान प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के अमितेश कुमार, पाटलिपुत्र अवार्ड खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) के डॉ योगेंद्र चौबे तथा लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के अनिल कुमार रस्तोगी को दिया गया।
उक्त जानकारी देते हुए महोत्सव के मीडिया प्रभारी व् कलाकार मनीष महीवाल ने बताया कि पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव उद्घाटन के अवसर पर कला संस्कृति विभाग की प्रमुख सचिव हरजोत कौर ने कहा कि रंगमंच हम सबको एक समानता की सीख देता है। रंगमंच पर हम सब बराबर होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को खुद बचा कर रखना है। हमें उस पर गर्व भी करना चाहिए।
हम अमेरिका से या बाकी दूसरे देशों से बाकी चीजों में आगे निकल सकते हैं, लेकिन संस्कृति के मामले में हमेशा से हम संपन्न है। हमेशा से समृद्ध हैं और आगे भी रहेंगे। इसके लिए नई पीढ़ी को आगे बढ़कर कार्य करना होगा।
महीवाल ने बताया कि पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव की पहली मंचीय नाट्य प्रस्तुति गांधी गाथा जिसे विहान ड्रामा वर्कस, भोपाल (मध्य-प्रदेश) द्वारा की गई। जिसके लेखक व निर्देशक सौरभ अनन्त थे।
प्रस्तुत कथासार के अनुसार महात्मा गाँधी अर्थात एक विराट व्यक्तित्व। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में गाँधीजी ही एकमात्र ऐसे नेता रहें, जिन्होंने पूरे देश को एक सूत्र में पिरो दिया था।
उन्होंने सत्य और अहिंसा के दम पर दमनकारी ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंका। उनकी आवाज़ समूचे देश के जन-जन के लिए स्वतंत्रता का मंत्र बन गई थी। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, उत्कृष्ट कोटि के चिंतक और विचारक भी थे। मानव जीवन को आत्मनिर्भर, विमुक्त और आनंदित रहने के लिए वे सतत् क्रियाशील रहे।
वर्तमान भारत की बुनियाद में गाँधीजी के विचार आज भी स्पंदित हो रहे हैं। बताया गया कि गाँधी गाथा एक ऐसी संगीतमय प्रस्तुति है, जिसमें गाँधीजी के बचपन से उनके महानिर्वाण तक की जीवन यात्रा संजोई गई है। यह प्रस्तुति किस्सागोई भी है। संगीत रूपक भी।
मंच पर उपस्थित कलाकार गाँधीजी की जीवन यात्रा कथा रूप में सुनाते भी हैं। उस यात्रा को गीतों में भी प्रस्तुत करते हैं तथा विभिन्न चरित्रों का अभिनय भी करते हैं। इसलिए यह नाटक से ज्यादा एक प्रयोग है। जिस पर गाँधी का भी उतना ही विश्वास रहा है, जितना हमारा है। दरअसल, यह प्रस्तुति बापू के महान उत्सर्ग के प्रति हमारी भावांजलि है।
मंच पर नाट्य कलाकार श्वेता केतकर, तेजस्विता अनन्त, ईशा गोस्वामी, ग्रेसी गोस्वामी, हेमन्त देवलेकर, अंकित पारोचे, शुभम कटियार, अंश जोशी, हर्ष झा, रुद्राक्ष भायरे, स्नेह विश्वकर्मा, निरंजन कार्तिक, जबकि नेपथ्य में जाह्नवी प्रदीप, अनुभव दुबे, कैलाश राजू, दीपक यादव, नीरज परमार, गीत संगीत संयोजन हेमन्त देवलेकर, वस्त्र परिकल्पना व रूप सज्जा श्वेता केतकर ने बखूबी निभाया।
महीवाल ने बताया कि यह महोत्सव लगातार गीत, संगीत, नृत्य एवं नाटक के साथ आगामी 6 फरवरी तक जारी रहेगा।
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