विजय कुमार साव/गोमियां (बोकारो)। उर्दू शिक्षकों के पद को नहीं बल्कि उर्दू भाषा ही झारखंड में मरणशील किया जा रहा है। उक्त बातें 19 जनवरी को झारखंड आंदोलनकारी इफ्तेखार महमूद ने कही।
बोकारो जिला के हद में गोमियां रहिवासी झारखंड आंदोलनकारी इफ्तेखार महमूद ने कहा कि खाली पड़े उर्दू शिक्षकों के पदों में बहाली करने के बजाय उर्दू शिक्षक के सृजित पदों को ही समाप्त करने की साजिश की जा रही है।
महमूद शिक्षा विभाग के प्रस्ताव के विरोध में झारखंड सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि मनुवादी शक्तियों के अदृश्य नियंत्रण में यह सरकार चल रही है। उन्होंने कहा कि उर्दू शिक्षकों के पद को नहीं बल्कि उर्दू भाषा को ही झारखंड में मरणशील करने का पिछले 23 सालों से शिक्षा विभाग का जो प्रयास हो रहा है, उसी का विकसित रूप है प्रमोशन नियमावली 2024 के ड्राफ्ट में उर्दू शिक्षक के पद को मरनशील घोषित करने का प्रस्ताव।
कहा कि राज्य गठन के शुरू के 9-10 साल तक उर्दू शिक्षक की कोई बहाली नहीं की गई। बाद की अवधि में अव्यवहारिक शर्तों के साथ उर्दू शिक्षक की बहाली शुरू की गई। परिणामस्वरूप अधिकांश सृजित पद खाली रह गए, जो बहाली हो पाई उन शिक्षकों को उर्दू की पढ़ाई करने से रोका जाता रहा।
महमूद ने कहा कि शिक्षा विभाग के पदाधिकारीयों द्वारा उर्दू शिक्षकों को गैर उर्दू भाषी विद्यालयों में पदस्थापित किया गया और उर्दू भाषी बच्चों के विद्यालयों, विशेष कर उर्दू विद्यालयों में गैर उर्दू शिक्षकों को पदस्थापित किया जाता रहा है।
महमूद ने कहा कि उर्दू भाषा स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा है। आजादी की लड़ाई इसी भाषा के जरिए लड़ी गई है। राज्य सरकार स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा को ही झारखंड से मिटा देना चाहती है। आश्चर्य प्रकट करते हुए उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी विद्यालयों में छात्रों को उर्दू पढ़ने नहीं दिया जाता है। उन्होंने प्रमोशन नियमावली 2024 के ड्राफ्ट से उर्दू शिक्षक पद के मरणशील करने का उल्लेखित प्रस्ताव को तुरंत विलोपित करने की मांग राज्य सरकार से किया है।
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