मुंबई। महाराष्ट्र के अस्पतालों में डॉक्टरों पर हमले रोकने के लिए 2010 में बने कानून के तहत सजा का पहला मामला सामने आया है। एक पब्लिक हेल्थ सेंटर (पीएचसी) में मेडिकल ऑफिसर को पीटने पर 13 लोगों को एक साल की जेल का कठोर दंड दिया गया है। इस मामले में दहानू न्यायिक मैजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी एजी कुलकर्णी ने संजय भोये और उनके 13 रिश्तेदारों को दोषी पाते हुए सजा सुनाई है।
साथ ही मेडिकल ऑफिसर को पीटने और तलासरी पीएचसी में तोड़फोड़ करने के आरोप में प्रत्येक पर 500 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। घटना 14 नवंबर 2014 की है। भोये अपनी एक रिश्तेदार मंगल कुर्कुते को पीएचसी में भर्ती कराया था लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद गुस्साए रिश्तेदारों ने पीएचसी में जमकर तोड़फोड़ की और मेडिकल ऑफिसर सचिन माणे की पिटाई कर दी।
मामले में आईपीसी और बॉम्बे पुलिस ऐक्ट के अलावा भोये और उनके 13 रिश्तेदारों के खिलाफ महाराष्ट्र पर्सन ऐंड मेडिकेयर सर्विस इंस्टिट्यूट (प्रिवेंशन ऑफ वायलेंस ऐंड डैमेज टु प्रॉपर्टी) ऐक्ट के तहत भी केस दर्ज हुआ। महाराष्ट्र पहला ऐसा राज्य है जहां इस तरह का ऐतिहासिक कानून लागू हुआ है। इसे 2010 में जेजे अस्पताल के तत्कालीन डीन टीपी लहाणे के नेतृत्व में मेडिकल प्रफेशनल और अस्पताल पर हमले रोकने के लिए बनाया गया था।
इस कानून के लागू होने के बाद तीमारदारों द्वारा हिंसा के कई मामले दर्ज हुए लेकिन तलासरी केस पहला ऐसा मामला है जिसमें दोषियों के खिलाफ पहली कार्रवाई हुई। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह एक कठिन मामला था क्योंकि इसमें मरीज के 17 रिश्तेदारों की जांच शामिल थी।
उन्होंने बताया, ‘पीएचसी में मरीज की मौत होने के बाद 30 से भी ज्यादा तीमारदारों ने इकट्ठा होकर मेडिकल ऑफिसर को मारा था। यहां तक कि उन्होंने अधिकारी को बंधक तक बना लिया था। हमने आरोपियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा किए और मैजिस्ट्रेट के सामने एक मजबूत केस पेश किया जिसमें इन्हें दोषी पाया गया।’ उन्होंने कहा कि यह फैसला मरीज के तीमारदारों के लिए एक चेतावनी है कि वह कानून को अपने हाथ में न लें।
292 total views, 1 views today