साभार/ मुंबई। किसी वारदात के बाद जांच एजेंसियां अमूमन संदिग्धों का चेहरा सीसीटीवी फुटेज में देखती है, पर पिछले महीने परेल में हुई 1 करोड़ 33 लाख की लूट की गुत्थी मुंबई क्राइम ब्रांच ने चेहरे से नहीं, सीसीटीवी में कैद वारदात के ‘टाइमिंग’ से सुलझाई। इस केस में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। डीसीपी दिलीप सावंत ने बताया कि हमें आरोपियों के पास से 1 करोड़ 15 लाख की जूलरी मिल भी गई है।
27 अक्टूबर को लोअर परेल में एक कूरियर कंपनी के कर्मचारी मुकेश रामपाल को लूट लिया गया था। इस कर्मचारी का काम अलग-अलग जगह से जगह से जूलरी इकट्ठा करना और फिर उसे देश में अलग-अलग शहरों में भेजना होता है। वारदात वाले दिन उसने छह जगह से जूलरी ली। बाद में जब वह सातवीं जगह जूलरी का एक और पैकेट लेने जा रहा था, तब उसे घेर लिया गया। उसकी आंखों में मिर्ची पाउडर डाला गया और फिर उसका बैग काटकर आरोपी भाग गए। एसीपी नेताजी भोपले, सीनियर इंस्पेक्टर संजय निकुंबे और मोहसिन पठान को मामले की जांच सौंपी गई।
जांच टीम ने नोट किया कि जिस जगह पर वारदात हुई, वहां कोई सीसीटीवी नहीं है। उसी से साफ हो गया कि आरोपियों ने वारदात से पहले इस बात की पड़ताल की होगी कि वारदात वहां करनी है, जहां कोई सीसीटीवी कैमरा न हो। लेकिन जांच अधिकारी जब वारदात स्थल से थोड़ा आगे बढ़े, तब उन्हें 50 मीटर की दूरी पर एक कैमरे में वारदात की कुछ धुंधली हलचल दिखी। इस धुंधले सीसीटीवी फुटेज में आरोपियों को चेहरा तो दिख नहीं रहा था, पर जिस तरह से कूरियर कर्मचारी मुकेश को एक ने पकड़ रखा था और दूसरा उसका जूलरी का बैग काट रहा था, उससे यह साफ हो गया है कि इस कर्मचारी ने खुद लुटने का ड्रामा तो नहीं ही किया था।
इसके बाद कूरियर कर्मचारी से पूछा गया कि वह कहां से आया था और उसे कहां जाना था? इसी में जांच टीम को पता चला कि उसने जूलरी का आखिरी पैकेट जिस जगह से उठाया था और जहां वारदात हुई, वहां से पैदल रास्ता दस मिनट का है। क्राइम ब्रांच को वारदात स्थल से 50 मीटर दूरी वाले सीसीटीवी फुटेज में वारदात का एकदम फिक्स टाइम मिल गया था। जांच अधिकारियों ने उसके बाद सेल टॉवर के जरिए उस टाइम पर ‘कैद’ हुए सभी मोबाइल नंबरों के डिटेल निकाले। इन नंबरों में एक नंबर का लोकेशन दस मिनट पहले उस जगह का भी मिला, जहां कूरियर कर्मचारी ने आखिरी पैकेट उस दिन लिया था। यह नंबर 36 साल के सुरेश डोके का था, जो इस लूटकांड का टिपर है।
डोके जब शक के घेरे में आया, तो पुलिस ने उसके मोबाइल का सीडीआर निकाला। उसमें महेंद्रर चौधरी, सतीश सानप और विलास पवार के नाम आए। जब वारदात के दिन की इनकी लोकेशन निकाली गई, तो सभी की वारदात स्थल के पास की ही लोकेशन मिली। इसके बाद पुलिसकर्मी अशोक राणे, भास्कर गायकवाड और वैभव गिरकर ने ट्रैप लगाया और सभी आरोपी एक-एक कर गिरफ्तार कर लिए गए।
पूछताछ में सभी आरोपियों ने बताया कि वे वारदात से दस दिन पहले से कूरियर कर्मचारी मुकेश पर नजर रखे हुए थे। टिपर सुरेश डोके हॉल मार्क के कामकाज से जुड़ी उस फर्म में काम करता था, जहां जूलरी की शुद्धता की जांच होती है। उसे पता था कि मुकेश कहां-कहां से जूलरी के पैकेट रोज लेता है, इसलिए उसने अपने साथी विलास पवार को इसकी जानकारी दी। विलास ने फिर अपने दोस्तों महेंद्र चौधरी और सतीश सानप को तैयार किया और इसके बाद ही इस वारदात को अंजाम दिया गया। आरोपियों ने कानून से बचने के सारे एहतियात बरते, लेकिन सीसीटीवी में कैद वारदात के टाइम ने उनकी पूरी पोल खोल दी।
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