कुँड़ुख भाषा का तेरहवां राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न

एस.पी.सक्सेना/ रांची (झारखंड)। कुँड़ुख लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया नई दिल्ली के तत्वाधान में कुँडुख भाषा का तेरहवा राष्ट्रीय सम्मेलन चेन्नई में संपन्न आयोजित किया गया। सम्मेलन में झारखंड, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, चेन्नई, असाम, दिल्ली, अंडमान निकोबार आदि राज्यों से लगभग 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

सम्मेलन में भिखू तिर्की के द्वारा लिखित पुस्तक ख़ोड़चका आरा खुज्जका कुँड़ुख़ डंडी पुस्तक सोसायटी द्वारा प्रकाशित कुँड़ुख़ बओत, शोध पत्रिका कुड़ुख़ डहरे का लोकार्पण किया गया। सम्मेलन का शुभारंभ अना आदी कुँड़ुख़ विनती से हुआ। चेन्नई के सुमन कुमार कुजूर सम्मेलन के मुख्य अतिथि ने कहा कि हर हाल में कुँड़ुख़ भाषा और साहित्य का विकास बहुत जरूरी है। घर परिवार से भाषा को व्यवहार में लाना होगा। बाजार, कार्यालय में कुँड़ुख़ भाषा को प्रयोग में लाना होगा। सोसायटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उषा रानी ने कहा कि कुँड़ुख़ भाषा उराँव जनजातियों की मात्री भाषा है।

इसलिए मां का परम कर्तव्य बनता है बच्चों को कुँड़ुख़ भाषा के प्रति जागरूक करना होगा और बच्चों को अपनी मातृभाषा से ही बात करना होगा।लिखने में हीजे और बोलने में उच्चारण का बहुत महत्व है। चाहे कोई भी लिपि हो। डॉक्टर हरि उराँव ने कहा कि साहित्य जगत में साहित्य लाने के लिए उन सभी विधाओं को ध्यान में रखते हुए कुँड़ुख़ साहित्य के क्षेत्र में रचना करने की आवश्यकता है। उन्होंने सोसाइटी की इतिहास और उद्वेश्यो पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान प्रस्तुत किया। अशोक कुमार बाखला ने अभी तक सोसायटी के द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा विस्तार से प्रस्तुत किया।

डॉ करमा उरांव ने कहा कि विश्व पटल पर कुँड़ुख़ भाषा का स्थान निरूपित करते हुए इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। सोसायटी के तत्वाधान में 2018 का साहित्य सम्मान झारखंड के भिखु तिर्की को दिया गया। सम्मेलन को 6 सत्रों में बांटा गया था। अखिल भारतीय तमिल संगम के महासचिव व तमिल के तुलसी कहे जाने वाले डॉक्टर एम. गोविंदराजन ने तमिल भाषा और कुँड़ुख़ भाषा के विषय पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भाषा स्वयंभू है इसीलिए किसी भी भाषा का विकास के लिए भाषा भेदो को दूर करना होगा,क्योंकि भाषा बहता नीर है।

यहां कुँड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव किया गया। जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष उषा रानी मींज, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रोफेसर महेश भगत, सचिव शबोर एक्का, कोषाध्यक्ष जोसेबियुस एक्का व कुँड़ुख़ डहरे शोध पत्रिका के राष्ट्रीय संपादक हरि उराँव का चयन किया गया। इसके अलावे झारखंड चैप्टर के चीफ विरेंद्र उराँव, पश्चिम बंगाल चैप्टर चीफ जवाल बघवार, बिहार से गोरखनाथ तिर्की, उड़ीसा से आशीष फ्रैंकलीन तिर्की, कोलकाता से सुशीला लकड़ा, दिल्ली से शिलास कुजूर, छत्तीसगढ़ से शिवभरोस बेक, असम से डेबिड बाड़ा, मध्य प्रदेश से निकोलस टोप्पो, महाराष्ट्र से सुशील कुजूर, चेन्नई से समीर अनूप मिंज और अंडमान निकोबार से फबियानुस टोप्पो को सर्वसम्मति से चैप्पटर चीफ चुना गया।

तीन दिवसीय 13 वाँ राष्ट्रीय कुँडु़ख़ सम्मेलन में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए जो इस प्रकार है:-

कुँड़ुख़ भाषा का 14वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन झारखंड में और अंतर्राष्ट्रीय कुँड़ुख़ सम्मेलन 15-16 दिसंबर 18 को भूटान में करने का निर्णय लिया गया। इसी तरह कुँड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 26 मई 2019 को रांची में करने निर्णय लिया गया। कुँड़ुख़ भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए शीतकालीन सत्र से पहले कुँड़ुख़ भाषा भाषी सांसद विधायकों का दिल्ली में सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया।

इसके अलावे कुँड़ुख़ निबंध साहित्य की रचना, कुँड़ुख़ पुस्तक की समीक्षात्मक बैठक, बच्चों के लिए चित्र आधारित पुस्तक का प्रकाशन और कुँड़ुख़ भाषा का ट्रेनिंग प्रोग्राम, नेतृत्व क्षमता का विकास, कुँड़ुख़ भाषा के क्षेत्र में जनजागृति जैसे कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया गया। सम्मेलन में मुख्य रूप से दिल्ली से दर्शील खाखा, अशोक कुमार बाखला, नागौर इक्का, शीला स्कूलजू, झारखंड से डॉक्टर करमा उरांव, डॉ हरि उराँव, प्रोफेसर महेश भगत, विरेंद्र उराँव, अरुण अमित तिग्गा, विकास उरांव, राधिका उरांव, उड़ीसा से पुष्पा, महाराष्ट्र से सुशील कुजूर, मध्य प्रदेश से 18, छत्तीसगढ़ से उषा रानी कुजुर आदि मुख्य रूप से शामिल थे।

 


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