पीड़ित वृद्ध मेरे अपने माँ बाप की तरह हैं-संतोष पंडा
सिद्धार्थ पांडेय/जमशेदपुर (झारखंड)। झारखंड के अति दुर्गम क्षेत्र पश्चिमी सिंहभूम जिला के हद में सारंडा में एक ऐसा अनोखा वृद्धा आश्रम अपना घर है जिसकी देखभाल क्षेत्र के समाजसेवी संतोष पंडा द्वारा किया जाता है।
जानकारी के अनुसार समाजसेवी पंडा जंगल के विभिन्न गांव के 14 वृद्ध का बेटा बनकर लगातार कई वर्षो से उनकी सेवा कर रहे हैं। पंडा
कुमडी, धरनादीरी, कलिता, किरीबुरू में अलग-अलग 14 ऐसा वृद्ध की सेवा मे लगे है, जिनका इस संसार में कोई भी परिवार का देखरेख करने वाला नहीं है। वे सभी वृद्ध, असहाय व निराश्रित का जीवन यापन कर रहे हैं। अलग-अलग गांव वालों से खबर मिलते ही पिछले 4 साल से भोजन एवं स्वास्थ्य की मदद पहुंचा रहे हैं।
इस संबंध में संतोष पंडा का कहना है कि वृद्धा अवस्था में अपना जमीन व अपना घर जैसा भी हो कोई भी उससे छोड़कर किसी भी हालत में दूर जाना नहीं चाहता। इसीलिए कोई वृद्धा अगर अकेले रहते हैं तो उन्हें स्वाभाविक रूप से दुःख और कष्ट होता है।
मेरा मानना है कि उनके जमीन और घर से उनको अलग करके वृद्धाश्रम में रखने से उन्हें ज्यादा कष्ट होती है। केवल पेट की भूख मिटाने के लिए वृद्ध अपने घर और जमीन को छोड़कर वृद्धाश्रम जाते हैं।
इसलिए सारंडा के 14 वृद्धा जो अकेले असहाय रहते थे, उनका बेटा बनकर उनको हर महीने की राशन यथा चावल, दाल, आलू, प्याज, लहसुन, नमक, हल्दी, चूड़ा, गुड़, चीनी, चाय पत्ती, साबुन, बिस्कुट आदि खाद्य पदार्थ कुछ सज्जनों से मदद मांग कर हर महीने जंगल में जाकर उनके घरों में पहुंचाने का कार्य किया जाता है।
साथ-साथ समय-समय पर उनके तबीयत खराब होने पर डॉक्टर के पास ले जाकर इलाज कराने का कार्य भी उनके द्वारा किया जाता रहा है। रहिवासियों के अनुसार समय – समय पर आवश्यकतानुसार वृद्ध व्यक्ति को अपना घर में ही रह कर सभी सुविधाएं पहुंचाने की समाजसेवी पंडा के द्वारा कार्य किया जाता है। सच्चाई यह है कि वृद्धावस्था में सभी वृद्ध को अपना घर चाहिए।
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