क्रांति पुत्रों की जन्मस्थली रहा है सोनपुर का सबलपुर दियारा

शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी ने अंग्रेजों का कर दिया था जीना हराम

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। स्वतंत्रता संग्राम के समय क्रांति की भूमि रही सारण जिला के हद में गंगा गंडक संगम तीर्थ सबलपुर की पवित्र भूमि ने अपने दौर में एक से बढ़कर एक क्रांति पुत्रों को जन्म दिया। इनमें शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी का नाम अग्रगण्य है।बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में देश की स्वतंत्रता के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने के रामवृक्ष ब्रह्मचारी के संकल्प ने क्रांतिवीरों में नवजीवन का उत्साह और उमंग भर दिया।

गांव और मुहल्ला पहले से ही क्रांतिकारियों को पनाह देने का प्रमुख केंद्र बन गया था, जिसके कारण उन्हें अपने ग्रामीण साथियों से कोई भय नहीं था, क्योंकि बभनटोली का लगभग हर घर क्रांतिकारी विचारधारा से ओत प्रोत था। उक्त गांव अंग्रेजों को अपने देश से निकालने के लिए हर संभव क्रांतिकारियों को मदद कर रहा था।

ज्ञात हो कि, सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड का सबलपुर दियारा पूर्व में पटना सदर का भू-भाग था।भाजपा और जदयू सरकार के प्रथम कार्यकाल में हस्तांतरित होकर यह सोनपुर अंचल का भाग बन गया। इधर इसका पटना से सटे गंगा नदी के भूभाग वाले इलाके को पटना जिले में ले लिया गया है। वर्तमान में सबलपुर दियारे में चार पंचायत हैं। इन्हीं में सबलपुर मध्यवर्ती पंचायत के बभनटोली में इस अमर सेनानी शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी नामक पुष्प खिला था।

अपने युवावस्था के आरम्भिक दौर में ही उन्होंने क्रांति की मशाल अपने हाथ में थाम ली थी। सन् 1930 के दिसंबर माह में उन्होंने काशी नगरी में ही भारतीय क्रांति दल की सदस्यता ले ली थी। यहीं पर उन्होंने देश को गुलामी की दासता से मुक्त कराने के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया। तब से उनके नाम के साथ ब्रह्मचारी जुट गया।ब्रह्मचारी जब काशी से घर वापस लौटे तो उन्हें खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पहले से ही उनका टोला और मोहल्ला स्वतंत्रता के लिए अपनी लड़ाई शुरु कर चुका था।

जिसमें स्वतंत्रता सेनानी स्व. राम जिनिस सिंह, स्व. ब्रह्मदेव सिंह, स्व.रामसागर सिंह, स्व.राम स्वरुप सिंह, स्व.रामसेवक सिंह, स्व. दरबारी सिंह, स्व.राम खुशी सिंह, स्व. हरनंदन सिंह, स्व.भागवत सिंह, स्व.रामाशीष सिंह, स्व.शिवजी सिंह, स्व.सिंहेश्वर सिंह, स्व.रामधारी सिंह, मटुकधारी सिंह, स्व.यमुना राय, स्व.देवकीनंदन राय, रामकिशोर सिंह, बतरौली, स्व.रामसेवक सिंह आदि अठाइस अग्रणी आजादी के दीवाने थे। इन्हें सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन सम्मान से सम्मानित भी किया था।

 शहीद रामवृक्ष की पहजबली संलिप्तता उजागर हुई

जानकारी के अनुसार सन् 1934 के 5 जुलाई को पटना के खाजेकला घाट (पटना सिटी) में क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के क्रम में खाजेकला बम विस्फोट काण्ड हुआ। तब क्रांतिकारी युवक रामवृक्ष ब्रह्मचारी पहली बार अपने सहयोगियों सहित गिरफ्तार कर लिये गए। उस समय पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया। उस समय के अखबारों ने इस गिरफ्तारी की खबर और खाजेकला बम विस्फोट को कवरेज देकर छापा था।

जेल से छूटने पर उन्होंने अपना ध्यानअंग्रेजपरस्त नवाबों, जमींदारों की ओर केन्द्रित किया। जमींदारों, नवाबों के अत्याचार से हतप्रभ किसानों को मौजूदा हालात में ऐसे ही एक जांबाज क्रांतिवीर की जरूरत थी, जो उनकी समस्याओं को लेकर सरकार के समक्ष उसी के अंदाज में बात रख सके। क्रांतिवीर ब्रह्मचारी ने किसानों के खून पसीने की कमाई को हड़प कर अंग्रेजों की जड़ को मजबूत करने में तल्लीन उन नवाबों, जमींदारों का समूल नाश करने का संकल्प लिया।

इतिहासकार के. के. दत्त की पुस्तक में ब्रह्मचारी को आतंकवादी समाजवादी के रुप में है चित्रण

इतिहास भाग-2 के पृष्ठ 312 में प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ के. के. दत्त ने लिखा है कि फरवरी 1939 में राहुल सांकृत्यायन ने छपरा (अब सीवान) जिलान्तर्गत अमवारी नामक स्थान में बकाश्त सत्याग्रह शुरू किया। इसके लिए अन्य 16 व्यक्तियों के साथ 24 फरवरी को सांकृत्यायन को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें छः महीने की सजा दी गई। सांकृत्यायन ने जेल में भूख हड़ताल शुरू की। किसान नेताओं को राजनैतिक बन्दी घोषित किये जाने एवं अन्य सुविधाओं के लिए उन्होंने भूख हड़ताल की।

उनकी मांग के समर्थन में रामवृक्ष ब्रह्मचारी ने भी 77 दिनों तक भूख हड़ताल की। उसी पुस्तक के भाग 3 के परिशिष्ट ‘क’ में राजबंदियों की जिलावार सूची में सारण जिले के क्रमांक 6 में रामवृक्ष सिंह ब्रह्मचारी को आतंकवादी सामाजवादी के रूप में गिरफ्तार कर तीसरी श्रेणी में रखे जाने की चर्चा है।

इसी भाग के परिशिष्ट ‘ख’ में वर्णित है कि अगस्त क्रांति के सिलसिले में भरत रक्षा अधिनियम 26 (1) ख के अन्तर्गत नजरबंद किये गये व्यक्तियों की सरकार द्वारा सारण जिले की अधिकृत सूची के अनुसार रामवृक्ष सिंह ब्रह्मचारी क्रमांक 6 आदेश संख्या 98 तिथि 10.08.42 के अनुसार 10.08.42 को गिरफ्तार किये गये और पटना कैंप जेल में उन्हें रखा गया। पुनः उन्हें फुलवारीशरीफ और हजारीबाग भेजा गया, जहां अगस्त 1945 में उनका देहांत हो गया।

स्वामी सहजानंद की पुस्तक,”मेरा जीवन संघर्ष में है शहीद ब्रह्मचारी का वर्णन

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक मेरा जीवन संघर्ष के 523-24वें पृष्ठों पर लिखा है- अमवारी की बात तो राहुल सांकृत्यायन के उपवास को लेकर काफी प्रसिद्ध हुई। वे दो बार जेल गये और प्रतिज्ञा के अनुसार उपवास किया। पहली बार सरकार (कांग्रेसी) किसान बन्दियों को राजबन्दी मानने को तैयार भी हो गई थी। केवल राजबंदी की परिभाषा में उसे दिक्कत थी।

वह भी करीब-करीब हल हो चुकी थी। मगर राजबन्दियों के लिए न सिर्फ हमारे 8-10 प्रमुख कर्मियों ने प्राणों की बाजी लगा दी, हमने प्रांत भर में घोर आन्दोलन किया। अखिल भारतीय किसान सभा ने भी उसमें हमारा साथ दिया, मगर सरकार टस से मस न हुई।

उन्होंने कहा है कि उस आन्दोलन से हमने बहुत कुछ सीखा। उसमें कांग्रेसी नेताओं की मनोवृत्ति की पूरी झांकी हमें मिली। यही क्या कम था? अमवारी के सत्याग्रह से ही इसका श्रीगणेश हुआ और प्रान्त में यह बात फैली। अमवारी में रामवृक्ष ब्रह्मचारी ने जो स्त्री-पुरूषों का अपूर्व संगठन किया और वहाँ से पैदल 14 मील सीवान तक जुलूस का जो सुन्दर प्रबंध किया। जिसमें स्त्रियां भी लाल कपड़ों में थी।

सिवान शहर में हमने उस जुलूस का जो महत्त्व देखा और उसने लोगो पर जो असर किया वह सभी बातें चिरस्मरणीय रहेंगे। जब वहां ब्रह्मचारी को आधी रात के बाद पुलिस पकड़ने आई, तो औरतों ने घेर कर ऐसा रोका कि पुलिस दंग रह गयी। पीछे समझाने पर कठिनता से हटी। ब्रह्मचारी जी तो इस्पात के बने हैं।

सहजानंद ने कहा है कि ब्रह्मचारी किसान बन्दियों को लेकर पूरे नब्बे दिनों तक भूखे रहे। उनकी मृत्यु 30 अगस्त 1945 को हो गयी। न सिर्फ उनके गांव सबलपुर, बल्कि किसान आन्दोलन को और खासकर मुझे उन जैसा साथी पाने का गर्व है। कार्यानन्द, यदुनंदन, राहुल जैसे मेरे गिने चुने साथियों में हैं। वह बेशक जैसे मुंगेर के लिए कार्यानन्द और गया के लिए जो यदुनन्दन हैं उसी तरह सारण (छपरा) के लिए राहुल हैं। उन्हें वैसा ही साथी मिला है।

वर्ष 1953 के 6 अप्रैल को प्रसिद्ध साहित्यकार और क्रांतिकारी ने सबलपुर बभनटोली स्थित शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी पुस्तकालय का निरीक्षण करते हुए लिखा था कि इस पुस्तकालय को देख कर पुरानी स्मृतियां ताजा हो गई। यह पुस्तकालय शहीद प्रवर ब्रह्मचारी की स्मृति में स्थापित किया गया है। ब्रह्मचारी को मैं बहुत दिनों से जानता था। वह एक निर्भीक और साहसी देश भक्त थे और देश के लिए सर्वदा प्राण न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते थे। हजारीबाग जेल में उनकी मृत्यु हुई जहां मैं बहुत दिनों तक उनके साथ था।

मरणोपरांत शहीद ब्रह्मचारी को मिला सर्वोच्च सम्मान

विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी के नाम बीते वर्ष 2022 के नवंबर माह में दिघवारा प्रखंड के मलखाचक गांव में आयोजित स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समारोह में स्वयं अपने हाथों से सम्मानित किया। सम्मान शील्ड एवं सम्मान पत्र शहीद ब्रह्मचारी का भतीजा देवनाथ शर्मा ने आरएसएस के सर संघ चालक से ग्रहण किया।

पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता व राजनेता महेन्द्र प्रताप, वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र कुमार सिंह आदि की अगुवाई में इस सम्मान समारोह का ऐतिहासिक आयोजन किया गया था। इस मौके पर बिहार के कई शहीद सहित करीब साढ़े तीन सौ से अधिक स्वतंत्रता सेनानी और उनके आश्रित सम्मानित किए गए थे, जिनमें 50 वैशाली जिला के थे।

सम्मानित होनेवालों में जगत प्रहरी के सारण जिला प्रतिनिधि के पिता स्वतंत्रता सेनानी स्व. ब्रह्मदेव सिंह का भी नाम शामिल हैं, जिन्हें बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने सम्मानित किया था। इस मौके पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री व् भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी, पूर्व भाजपा विधायक विनय कुमार सिंह, पूर्व मंत्री डॉ महाचंद्र प्रसाद सिंह और महाराजगंज के भाजपा सांसद और पूर्व मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रीवाल भी उपस्थित थे।

 

 148 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *