शरणानंद आश्रम में है देवी सरस्वती की अलौकिक प्रतिमा व् ज्ञानेश्वर शिव लिंग

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में गंगा नदी किनारे पहलेजा घाट धाम में स्वामी शक्ति शरणानंद आश्रम के प्रांगण में अवस्थित देवी सरस्वती मंदिर की ख्याति बिहार ही नहीं, बल्कि यूपी और उत्तराखंड तक फैली हुई है।

इस मंदिर के गर्भगृह में विद्या की देवी सरस्वती की आदम कद मूर्ति स्थापित है। इसी गर्भ गृह में ज्ञानेश्वर भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग भी श्रावण माह में भक्तों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। गंगा तट पर होने के कारण हजारों की संख्या में प्रतिदिन भक्तगण यहां आकर देवी सरस्वती का दर्शन और पूजन करते हैं। साथ हीं बाबा ज्ञानेश्वर शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं।

पहलेजा धाम इन दिनों शैव भक्तों का आश्रय स्थल के साथ साथ धर्म और कर्म के पुण्यतम स्थल में परिवर्तित हो चुका है। इस आश्रम और मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो इसका निर्माण हिमालयी संत और योगिराज के रुप में भारत के आध्यात्मिक जगत में लोक ख्याति प्राप्त संत शक्ति शरणानंद सरस्वती जी महाराज ने कराई थी।

संत शक्तिशरणानंद को दुनिया योगिराज चंचल बाबा, लाल बाबा के नाम से जानती है। नौडीहां (कसमर पहलेजा धाम) के स्व. पंडित रघुनाथ मिश्र के द्वारा दान की हुई जमीन पर आश्रम और सरस्वती मंदिर का निर्माण हुआ है।

ज्ञात हो कि वर्ष 1985 से 1990 के बीच इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर के गर्भगृह के ठीक सटे बजरंग बली की पंचमुखी मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर के सभी कोण में माता पार्वती सहित शिव परिवार की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है।

क्या कहते हैं मंदिर के मुख्य आचार्य पं. हरिश्चंद्र मिश्रा

इस मंदिर के मुख्य आचार्य पंडित हरिश्चंद्र मिश्र उर्फ लल्लू बाबा बताते हैं कि प्रतिदिन मंदिर में प्रातः काल एवं संध्या काल में पूरे मनोयोग से पूजा अर्चना की जाती है। सद्गुरु चंचल बाबा द्वारा स्थापित गंगा मंदिर में भी सुबह शाम उन्हीं के द्वारा पूजा संपन्न की जाती है।

इस मंदिर की व्यवस्था में समस्त मिश्रा परिवार की भागीदारी होती है, जिसमें पंडित रामानंद मिश्र के द्वारा प्रतिदिन भक्ति भाव से समस्त आगंतुक भक्त जनों के बीच भगवान की विविध कथा प्रसंगों का वर्णन और पाठ किया जाता है। इन कथा प्रसंग भावों से सबको भक्ति की डोरी से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।

अब उनकी भी चर्चा जरुरी है जिनकी मंदिर निर्माण कार्य, स्थापना, व्यवस्था इत्यादि में सहयोगात्मक भूमिका रही है। आज भी है। उनमें सेवा निवृत खनन पदाधिकारी सुरेंद्र सिंह, कर्णपुरा कसमर एवं शंभु सिंह शामिल हैं। इस मंदिर में सहयोग करने वालों में ऐसे भी गुमनाम भक्त हैं, जिन्होंने अपने नाम की ईच्छा कभी प्रकट नहीं की।

स्व. श्रीभगवान सिंह एवं स्व.ध्रुव मिश्रा भी मंदिर के सहयोगियों में थे। अब उनकी बारी है जो मंदिर एवं मंदिर में आने वाले भक्तों की सेवा में सालों भर तत्पर रहते हैं उनमें अवध किशोर मिश्रा, कुंदन मिश्रा, राजकिशोर मिश्रा, जय गोविन्द मिश्रा, रामेश्वर पांडेय, रामानंद मिश्रा, बीरबल पंडित, शंभू सिंह, सत्येन्द्र सिंहऔर लालू राय शामिल हैं।

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