बांध पंचायत में प्यासा सावन-आस

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। यह खबर कुछ अटपटा जरुर है कि जब बोकारो जिला के हद में बेरमो कोयलांचल के कथारा में स्थित शिवशक्ति सिनेमा हॉल बंद हुए लगभग दो दशक हो चुका है, तब फिल्म प्यासा सावन कैसे और क्योंकर चल रहा है? पर यह हकीकत है, रील नहीं बल्कि रियल लाइफ में।

इस परिपेक्ष्य में 16 जुलाई को गोमियां प्रखंड के बांध कॉलोनी निवासी तथा झारखंड आंदोलनकारी संतोष कुमार आस ने एक भेंट में बताया कि बांध पंचायत के बांध वस्ती, कमल टोला, मोहली बांध, बांध कॉलोनी, दूधमटिया, भूड़कुड़वा और पलानी गांव के दस हजार से अधिक घनी आबादी के रहिवासी झारखंड सरकार पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा चलाये जा रहे जलापूर्ति योजना के पानी पर आश्रित है।

उन्होंने बताया कि बांध कॉलोनी में सीसीएल के बंद पचास हजार क्षमता वाले जलमिनार के बगल में झारखंड सरकार का एक लाख लीटर से अधिक क्षमता वाला जल मीनार से विगत पांच वर्षो से जलापूर्ति की जा रही है। इसका कनेक्शन लगने के बाद सीसीएल ने कॉलोनी में जलापूर्ति से मुंह मोड़ ली है।

आस ने बताया कि बिगत दो वर्षो से हर छह माह में कभी मोटर खराब, कभी जलापूर्ति कामगारों का हड़ताल तो कभी जलमिनार में बालू घुस जाने के बहाने हर त्योहारों में एक से डेढ़ माह जलापूर्ति ठप्प रहता है। उन्होंने बताया कि सावन के पावन महीने में शिवालयों में भक्तों की भीड़ जलाभिषेक को लेकर उमड़ रही है, वहीं यहां के रहिवासियों को नहाने, धोने अथवा जल चढ़ाने की बात तो दूर एक एक बूंद पानी के लिए रहिवासी पानी पानी हो रहे हैं।

उन्होंने बताया कि यहां के सभी कुआँ सुख चुका हैं। चापाकल बेकार है। मानसून की बर्षा नहीं होने के कारण तालाब भी सुख गया है। संपन्न और नौकरी पेशा वाले तो एक से डेढ़ हजार तक में टैंकर खरीदकर जल का इस्तेमाल कर ले रहे हैं। वहीं गरीब और दिहाड़ी मजदूरों की हालत बदहाल है।

आस ने बताया कि इसे लेकर जब गांव की महिलाओं ने बीते दिनों स्थानीय मुखिया का घेराव की तो इस मामले से मुखिया ने भी पल्ला झाड़ ली। इसके बाद इस मुद्दे को लेकर रहिवासियों ने गोमियां बीडीओ को ज्ञापन सौंपा। इसके बाद भी सरजमी पर कोई कार्रवाई नहीं देखने को मिला।

आस के अनुसार सीसीएल कथारा क्षेत्रीय प्रबंधन भी इस मसले को लेकर उदासीन रवैया अपना रही है। जनप्रतिनिधि भी खामोश हैं। लाचार प्यासी जनता जाए तो जाये कहां? अब बांध पंचायत की जनता आसमान की ओर टकटकी लगाये है कि शायद मौसम मेहरबानी दिखा दे।

अब वे खुले आकाश के स्क्रीन पर प्यासा सावन देख रहे हैं, कि कहीं उनके लिए बूंद बूंद पानी की व्यवस्था संभव हो सके। क्योंकि जमीन वाले सक्षम यहां के रहिवासियों से रूठ चुके हैं। अब देखना है कि वास्तव में यहां सावन प्यासा रह जायेगा अथवा…..?

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