गोबिंद तक पहुंचने का मार्ग गुरु से होकर गुजरता है-संतविष्णु दास उदासीन

गुरु-शिष्य परंपरा का बोध होते ही विश्व गुरु बनेगा भारत-आचार्य राजेश तिवारी

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। बिहार प्रदेश उदासीन महामंडल के अध्यक्ष संत बाबा विष्णु दास उदासीन उर्फ मौनी बाबा के नेतृत्व में 2 जुलाई को सारण जिला के हद में सोनपुर स्थित लोक सेवा आश्रम के प्रांगण में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मौनी बाबा ने कहा कि गोबिंद (प्रभु) तक पहुंचने का मार्ग गुरु से होकर ही गुजरता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु से अच्छा कोई मार्ग दर्शक नहीं है। सृष्टि और संसार में जो कुछ भी है उसमें परमात्मा ने गुरु का स्थान सर्वोपरि माना है। गुरु की कृपा से सभी बाधाओं से मुक्ति की शक्ति प्राप्त होती है। गुरु की महिमा अपरंपार है।सद्गुरु का सदैव अपने शिष्यों पर वरदहस्त रहता है।

संत मौनी बाबा साहित्यिक संस्था युग बोध की ओर से आयोजित गुरु पूर्णिमा-व्यास पूजा विषयक संगोष्ठी सह कवि सम्मेलन को संबोधित करते हुए संतबाबा विष्णु दास उदासीन ने वैशाली जिला के हद में हाजीपुर प्रखंड के मीनापुर मंदिर के महंत संत प्रकाश गिरी एवं मुख्य अतिथि दिशा संस्था के आचार्य पं. राजेश तिवारी को अंग वस्त्र से समानित किया। समारोह की अध्यक्षता लोक सेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत मौनी बाबा एवं संचालन साहित्यकार विश्वनाथ सिंह कर रहे थे।

आरंभ में विषय प्रवेश साहित्यकार ए. के. शर्मा ने करते हुए कहा कि गुरु के चरणों से होकर ही परमात्मा तक जाने का सर्व सुलभ मार्ग है। मौके पर आचार्य राजेश तिवारी ने सभी उपस्थित गणमान्य जनों को स्वास्थ्य लाभ और ध्यान में उपयोगी नैनो पिरामिड भेंट किया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए महंत प्रकाश गिरी ने कहा कि गुरु कृपा से व्यक्ति का कल्याण संभव है।

व्यक्ति अगर स्वयं का कल्याण कर लेने की सोंचे तो गुरु की कृपा उस पर बरसती है। साथ ही गुरु का भी कल्याण हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक मात्र मानव योनि ही है जहां से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। सृष्टि के जितने भी जीव हैं वे सभी परमात्मा के अंश हैं। हमारे त्रिदेवों ने जिस त्रिगुण माया की रचना की, उस माया को हमारे त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनि भी बेध नहीं सके। उसके पार नहीं जा सके। भ्रम व माया से पार पाने में सबसे प्रबल सहायक और कोई नहीं बल्कि गुरु ही होते हैं।

उन्होंने महाभारत के दौरान युद्ध के समय कृष्ण-अर्जुन संवाद के माध्यम से गुरु कृपा से मानव कल्याण पर विशद चर्चा की। मुख्य अतिथि आचार्य पं. राजेश तिवारी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु-शिष्य के बीच ऐसे पवित्र गूढ़-अंतरंग सूत्रों की स्थापना और उन्हें दृढ़ करने के लिए आता है।

उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा मनाने वाले को ध्यान में रखना चाहिए कि गुरु व्यक्ति नहीं शक्ति होता है। उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य को अपनी दिव्य संपदा की कमाई का एक अंश देता रहता है, जिसे अनुशासन में रहकर शिष्य अपनाएं तो उसका व्यक्तित्व ऊंचा उठता है। इससे उसका भौतिक एवं आध्यात्मिक स्तर ऊंचा उठता है।

उन्होंने कहा कि भौतिक जगत में कहीं भी कुछ सकारात्मक मार्ग दर्शन हो रहा है। बस हममें वह भाव जाग्रत नहीं हो पा रहा है। जिस दिन यह भाव जाग्रत हो जाएगा, उस दिन भारत निश्चित रुप से विश्व गुरु बनकर रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि गुरु पूर्णिमा अनुशासन का पर्व है।सामान्य रुप से भी सिखाने वाले गुरु जनों का अनुशासन स्वीकार किए बिना कुशलता में निखार नहीं आ सकता।

पं तिवारी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूजन दिवस भी कहा जाता है। गुरु भी व्यास कहे जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु का मतलब वेतन भोगी नहीं। शिष्य का मतलब दाम देकर पढ़ने वाला छात्र नहीं होना चाहिए। दोनों को एक दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। मिल-जुलकर एक दूसरे की तपश्चर्या व् ज्ञान का आदान-प्रदान करते-कराते रहना चाहिए। तभी यह गुरु पर्व सिर्फ परम्परा नहीं एक आदर्श परम्परा के रूप में सदा-सर्वदा के लिए स्थापित रहेगा।

उन्होंने कहा कि गंगा का जल हमें चाहिए तो गंगोत्री को भी हमें ठीक रखना पड़ेगा। गुरु का आशीर्वाद, प्रेरणा चाहिए तो गुरु का भी ध्यान रखना पड़ेगा। हम शिष्यों के लिए शिष्य भी महान बने। इसका ध्यान गुरु को रखना पड़ेगा। ईश्वर हम दोनों का पोषण करें। हम दोनों पूर्ण शक्ति के साथ कार्यरत रहें। हम तेजस्वी विद्या को प्राप्त करें। हम कभी आपस में द्वेष न करें। सर्वदा शांति से रहें।

समारोह में गुरु पूर्णिमा पर काव्य पाठ कविवर शंकर सिंह ने किया।पटना से पहुंचे पत्रकार हृदयनारायण झा ने भी गुरु पूर्णिमा पर अपने विचार रखे। मौके पर अधिवक्ता अभय कुमार सिंह, आचार्य उमेश तिवारी, हरिमोहन यादव, राजू सिंह, विपिन कुमार सिंह आदि उपस्थित थे। अंत में क्षेत्र के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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