मुंबई। हर साल की तरह इस वर्ष भी मुहर्रम के अवसर पर सुन्नी कादरी मस्जिद में दस दिनों का वास (तकरीर) पूरा हुआ। बांद्र पूर्व के राजूनगर, ज्ञानेश्वर नगर में स्थित इस मस्जिद में हर साल मुहर्रम के मौके पर इस्लाम की बारीकियों को धर्म गुरूओं (मौलाना) द्वारा तकरीर में बयां की जाती है। ताकि लोग इस माह की अहमियत को समझ सकें।
गौरतलब है कि सुन्नी कादरी मस्जिद में वास के दौरान मौलाना ने बताया कि मुहर्रम इस्लामिक साल यानी हिजरी संवत का पहला महीना है। इसके साथ ही इस्लामिक कैलेंडर के नए साल की शुरूआत होती है। इस महीने को शहादत के महीने के तौर पर जाना जाता है। क्योंकि इसी महीने में इमाम हुसैन ने धर्म और इंसानियत की हिफाजत के लिए अपनी शहादत दी थी।
इस महीने के शुरूआती दस दिनों को आशूरा भी कहा जाता है। इन दिनों हुसैन की शहादत की याद में मातम और शोक मनाया जाता है। इस्लाम के पवित्र माने जाने वाले महीने रमजान की तरह ही इसमें भी रोजा रखे जाते हैं, लेकिन ये रोजे अनिवार्य नहीं होते हैं। मुहर्रम के दौरान जंग में दी गई शहादत को याद किया जाता है। हालांकि कुछ जगह ताजिया बनाकर इमाम हुसैन के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है।
बांद्रा पूर्व के मस्जिद में अपनी तकरीर के दौरान मौलाना ने बताया कि इस माह को इस्लाम के चार महीनों में शुमार किया गया है। इस माह के सात से दस तारीख की काफी अहमियत है। इसे मुंबई सहित पूरे देश में त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इस माह में रोजा रखने की खास अहमियत का बयान आया है। इस्लाम के चार महीनों में मोहर्रम माह को रखा गया है। इस माह की 7 से 10 यानी तीन दिनों को खास मुकाम हासिल है।
9 मुहर्रम की इबादत का बड़ा मर्तबा है, इस दिन की इबादत का बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत मोहम्मद के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत मोहम्मद ने कहा है कि 9 मुहर्रम का रोजा रखना अफजल है। इस्लाम की बारीकियों को समझने व लोगों तक पहुंचाने के लिए सुन्नी कादरी मस्जिद के अध्यक्ष इरफान शेख व सचिव मसीहुद्दीन खान द्वारा हर साल मोहर्रम के महीने में मजलिस वास का आयोजन कराया जाता है। इस मस्जिद से जुड़े नईम इदरीसी, शेख अहमद, इकबाल शेख, कोनैन इदरीसी आदि लोग इस आयोजन में भरपूर सहयोग देते हैं।
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