प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। श्रीराम चरित मानस में भरत चरित पर बेवाक विश्लेषण करते हुए पेटरवार प्रखंड के हद में अंगवाली के मैथान टुंगरी स्थित धर्म-संस्थान में आयोजित मानस महायज्ञ के सातवें दिन 18 मार्च की रात्रि प्रवचन के दौरान अयोध्या धाम से पधारी हुईं मानस माधुरी अनुराधा सरस्वती ने वैराग्य रूपी भरत का चरित्र चित्रण किया। उन्होंने प्रभु श्रीराम, सीता, लक्ष्मण के वन गमन उपरांत भाई भरत के चरित की बेवाक विश्लेषण किया।
मानस माधुरी ने कहा कि कथा में महाराज दशरथ की मृत्यु के पश्चात भरत जी को अयोध्या के लिए बुलावा भेजा गया। जिसके पश्चात भरत जी ने एक क्षण भी देरी नहीं की और अयोध्या पहुंचकर अपने पिता का अंतिम संस्कार किया।
जब राज्य संभालने की बात आई तब भरत जी ने भरी सभा में गुरुदेव से सवाल किया कि यदि मेरी माता कैकेई ने पहले वरदान में मेरे लिए राज्य मांगा था तथा दूसरे वरदान में भगवान राम के लिए 14 वर्ष का वनवास, तो फिर सभी ने इस क्रम को क्यों नहीं निभाया? वचन निभाने की बात थी तो पहले मुझे बुलाकर राजा बना दिया होता। फिर मैं देखता कि मेरे होते कौन मेरे ईश्वर को मुझसे दूर करता है।
दूसरी बात यह कि, आप सभी कह रहे हैं कि पिता जिसे राजगद्दी दे दे उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। अगर कोई चीज हमारी हो तो हम उसे स्वतंत्रता पूर्वक किसी को दे सकते हैं, क्योंकि उस पर हमारा अधिकार है। जो सत्ता आप मुझे सौंपना चाहते हैं, उस पर तो केवल मेरे परमपिता का अधिकार है। मैं उनका सेवक मात्र हूं। अतः मैं यह राजगद्दी संभालने योग्य नहीं।
मानस माधुरी ने कहा कि भ्राता भरत के अनुसार तीसरी बात मुझे राजा बनाने की चर्चा हुई तो अयोध्या में इतना बड़ा उत्पात हो गया। अमंगल हो गया। मेरी माताएं विधवा हो गई। इतना बड़ा अनर्थ हो गया। प्रजा अनाथ हो गई। केवल मेरा नाम लेने से इतना बड़ा अनर्थ हो सकता है, तो फिर विचार करें अगर मुझे आपने राजगद्दी पर बैठा दिया तो कितना बड़ा अमंगल हो सकता है।
धरती पाताल में चली जाएगी। इस धरती को तो किसी धर्मशील नरपति की आवश्यकता है। अतः मेरे जैसे अधम का चुनाव करना ठीक नहीं। इस राजगद्दी के परम अधिकारी मेरे परमपिता के बाद भगवान श्रीराम हैं और यह राजगद्दी उन्हीं को मिलनी चाहिए।
मानस माधुरी अनुराधा ने अपनी व्याख्या में बताया कि आज कल कलयुग के भाई आपस में संपत्ति हेतु लड़ाई झगडे में अपने भाई की जान तक ले लेते हैं, परंतु श्रीराम चरित मानस में भरत जी ने दुनिया के सभी भाइयों को यह संदेश दिया है कि सच्चा भाई वह नहीं होता जो भाई की संपत्ति बांट लेता है।
बल्कि सच्चा भाई वह होता है जो अपने भाई की विपत्ति बांटकर एक भाई होने का आजीवन धर्म निभाता है। अतः भरत जी सच्चे प्रेम एवं त्याग की प्रति मूर्ति है, जिन्होंने 14 वर्ष तक एक शासक की भांति नहीं बल्कि एक सेवक की भांति अनुकूलता होते हुए भी एक बैरागी का जीवन जिया और प्रजा की सेवा के लिए समर्पित रहकर बड़े भाई की आज्ञा का पालन किया।
इस अवसर पर दोपहर में अंगवाली के युवक ब्रजेश मिश्रा की ओर से यज्ञ परिसर में खिचड़ी महाप्रसाद भंडारे का आयोजन किया गया। आज मौसम अनुकूल नहीं रहने, बूंदा बूंदी वर्षा होने से महिला, पुरुष श्रोता दीर्घा कुछ खाली खाली दिखा, पर ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से श्रद्धालु घर से ही कथा का आनंद उठाते रहे।
145 total views, 1 views today