रैली में जुटे सैकड़ो माले नेता सहित लाखो कॉमरेड साथी
एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में 15 फदव को भाकपा माले द्वारा विशाल रैली का आयोजन किया गया। रैली में सैकड़ो माले नेता सहित लाखो लाखो की संख्या में भाकपा माले के कॉमरेड साथी अपने हांथो में लाल झंडा लेकर शामिल हुए।
माले द्वारा लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ रैली में भाकपा (माले) महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य कार्तिक पाल और केंद्रीय कमिटी सदस्य सन्तोष सहर के साथ गांधी मैदान पहुंचे। वहां पहुंचते ही माले नेताओं ने मंच की बाईं ओर बनाई गई शहीद वेदी पर पुष्पांजलि की।
शहीद वेदी को चारों तरफ पिछले वर्षों दिवंगत हुए पार्टी नेताओं – बिहार के पूर्व राज्य सचिव कॉ रामजतन शर्मा व कॉ पवन शर्मा, तमिलनाडु राज्य सचिव कॉ एनके नटराजन, समकालीन लोकयुद्ध के पूर्व सम्पादक कॉ बीबी पांडेय, बिहार के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कॉ रामदेव वर्मा और कॉ प्रो. अरविंद कुमार सिंह की तस्वीरों को भी लगाया गया था। डी एरिया समेत पूरे मैदान को झंडों से सजाया गया था।
आयोजित रैली में बिहार के सीमांचल जिलों पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज से बीते 14 फरवरी की रात से ही कॉमरेड साथियों के आने का तांता लगा रहा। इनमें महिलाओं की भी काफी संख्या शामिल थी। तीर-धनुष के साथ परंपरागत वेश भूषा में हजारों की तादाद में वे गांधी मैदान पहुंचे थे।
इस अवसर पर भाकपा (माले) महासचिव कॉ भट्टचार्य ने आगामी 25 फरवरी को पूर्णिया में होनेवाली महागठबंधन की रैली में भारी तादाद में शामिल होने की अपील की।
रैली मंच पर 10 बजे से ही सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो गए थे। इसमें आंध्र प्रदेश, प.बंगाल, असम, कार्बी आंग लांग, झारखंड और बिहार की सांस्कृतिक टीमों ने गीत व नृत्य प्रस्तुत किए। रैली में शामिल होने दूर-दराज से लाखो की संख्या में कॉमरेड साथी आये थे।
भाकपा (माले) केंद्रीय कमेटी के सदस्य बलिन्द्र सैकिया, हिरावल पटना के संतोष झा व अनिल अंशुमन ने यहां कार्यक्रम पेश किया।
इस संबंध में जानकारी देते हुए रैली में शामिल भाकपा माले समस्तीपुर जिला कमिटी सदस्य कॉ सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि मंच के ठीक सामने सिर पर सफेद टोपियां लगाए बैठे उत्प्रेरक संघ के सैकड़ों सदस्य अलग से दिखाई दे रहे थे।
भाकपा (माले) के युवा विधायक सन्दीप सौरभ ने जब रोजगार के सवाल पर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया तो उन्होंने जोरदार नारा लगाया। रैली में आशा, रसोइया, स्कीम वर्करों, पटना के ई रिक्शा चालकों व फुटपाथ दुकानदारों की भी इस बार व्यापक भागीदारी दिखी।
कॉ सिंह ने बताया कि गया के वरिष्ठ अधिवक्ता फैयाज हाली और कैमूर जिले के पूर्व मुख्यिा सतीश यादव ने रैली में मंच से भाकपा-माले की सदस्यता ग्रहण करने की घोषणा की। माले महासचिव भट्टाचार्य ने उनसे हाथ मिलाकर पार्टी में उनका स्वागत किया।
इस अवसर पर भाकपा-माले महासचिव कॉ भट्टाचार्य ने जब पार्टी के पूर्व महासचिव कॉ विनोद मिश्र के चर्चित कथन – हम फिर मिलेंगे साथियों संघर्ष के मैदानों में से अपने वक्तव्य की शुरूआत की, तो कई मिनटों तक गांधी मैदान लाल सलाम और शहीदों के सपनों का भारत बनाने के नारे के साथ गुंजता रहा।
उन्होंने बताया कि रैली के मंच पर माक्र्सवादी समन्वय समिति के कॉ हलधर महतो, लाल निशान पार्टी (लेनिनवादी) के भीमराव बंसोड व विजय कुलकर्णी, सोशलिस्ट पार्टी आफ बांग्लादेश के बजरूल रसिक फिरोज व सैफुल हक (महासचिव, विप्लवी वर्कर्स पार्टी बांग्लादेश), आस्ट्रेलिया के सोशलिस्ट एलाएंस के सैमुअल वेनराइट आदि उपस्थित थे।
रैली के राजनीतिक प्रस्ताव
रैली में कहा गया कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चहेते अडानी पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने उस कड़वे सच को बेनकाब किया है, जिसे पूरा देश देख और समझ रहा था।
कहा गया कि भाजपा को देश की सत्ता में बनाए रखने के लिए काॅरपोरेटों ने पहले पानी की तरह पैसा बहाया। बदले में भाजपा एक के बाद एक नीतिगत बदलाव कर देश के कीमती प्राकृतिक संसाधनों तथा रेल, सेल, बैंक, बीमा सहित सार्वजनिक क्षेत्रों को उनके हवाले करती गई।
यही वजह है कि 2014 में पूंजीपतियों की ग्लोबल लिस्ट में 609वें पोजिशन पर खड़ा अडानी ग्रुप हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के आने के पहले तक भयानक धोखाधड़ी कर तीसरे नंबर पर पहुंच गया था। कहा गया कि अडानी के पतन के बाद आम शेयरधारकों की चिंता व उनकी जवाबदेही लेेने से बचते हुए पीएम मोदी ने चुप्पी साध रखी है।
गांधी मैदान की यह रैली इस बात का उद्घोष है कि इस देश में अब मोदी-अडानी गठजोड़ नहीं चलेगा। रैली के माध्यम से हम अडानी ग्रुप पर कार्रवाई करने तथा विपक्ष द्वारा जेपीसी जांच की उठाई गई मांग का समर्थन करते हैं।
कहा गया कि एक ओर चरम काॅरपोरेट लूट तो दूसरी ओर राज्य संरक्षित हिंसा व दमन के जरिए लोकतंत्र व संविधान को कुचल देने की हर रोज नई साजिशें जारी हैं और ‘देश’ के नाम पर ‘देश की जनता’ के ही बड़े हिस्से को निशाना बनाया जा रहा है। दरअसल, काॅरपोरेट लूट व फासीवादी हमला एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं।
केन्द्र और कई राज्यों में सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा-आरएसएस द्वारा शासन के समूचे तंत्र व संस्थाओं को अपनी मजबूत जकड़ में ले लेने की यह फासीवादी प्रवृत्ति लगातार बढ़ती ही जा रही है।
वक्ताओं द्वारा कहा गया कि भारतीय मार्का फासीवाद के इस उभार को रोकना आज सभी लोकतंत्र व देशभक्त नागरिकों की साझा चिंता का सबब बन गया है। बिहार की सत्ता से भाजपा की बेदखली एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन भाजपा-आरएसएस जैसी ताकतों को राज व समाज दोनों जगह से बेदखल करना होगा।
यह रैली फासीवादी गिरोहों को मुकम्मल तौर पर पीछे धकेलने तथा देश के संविधान में घोषित प्रतिबद्धताओं – संप्रभुता, लोकतंत्र, समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र – की रक्षा के लिए संघर्ष को तेज करने का संकल्प लेती है। साथ हीं आगामी वर्ष 2024 के आम चुनाव में देश की सत्ता से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करती है।
वक्ता साथियों द्वारा कहा गया कि वैश्विक असमानता रिपोर्ट ने देश में बढ़ती गरीबी व असामनता की खाई को एक बार फिर से उजागर किया है। मोदी राज में ग्लोबल हंगर सूचकांक में भी भारत सबसे दयनीय देशों की सूची में शामिल हो गया है।
महंगाई, बेरोजगारी व कर्ज के दबाव में सामूहिक आत्महत्याओं का सिलसिला हर जगह तेज हुआ है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा घोर अराजकता व बदहाली की चरम अवस्था तक पहुंचती जा रही है। इन ज्वलंत सवालों की जगह मोदी सरकार के मंत्री और संघ-भाजपा के नेता सांप्रदायिक विभाजन की मुहिम चला रहे हैं।
इसके खिलाफ उठने वाली आवाजों का दमन कर रहे हैं। यह रैली नफरत और दमन की लगातार जारी इस मुहिम की घोर निंदा करते हुए देश में बढ़ती कमरतोड़ महंगाई पर रोक लगाने, बेरोजगारी दूर करने तथा शिक्षा और स्वास्थ्य के सवालों पर जनांदोलन तेज करने का आह्वान करती है।
कहा गया कि हाल के केंद्रीय बजट में भारत में बढ़ती असमानता को दूर करने के लिए काॅरपोरटों पर टैक्स बढ़ाने व वेल्थ टैक्स लगाने तथा आम रहिवासियों को राहत देने के बदले मनरेगा सहित सामाजिक सुरक्षा मदों और उर्वरकों पर जारी सब्सिडी में की गई भारी कटौती महंगाई-बेरोजगारी की मार झेल रही देश की जनता के साथ एक और क्रूर मजाक है। यह रैली बजट 2023 के प्रति अपने आक्रोश को जाहिर करते हुए आम जनता के लिए राहत के उपायों के प्रावधान की मांग करती है।
वक्ताओं ने कहा कि रैली उच्चतम न्यायालय द्वारा उच्च जातियों के लिए 10 प्रतिशत इडब्लूएस आरक्षण और मोदी सरकार द्वारा खुले दिल से किये गये इसके अनुमोदन का पुरजोर विरोध करती है। यह संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ है। दूसरी ओर दलितों-पिछड़ों के आरक्षण में लगातार कटौती किसी न किसी रूप में लगातार जारी है।
आज की रैली असंवैधानिक 10 प्रतिशत इडब्लूएस आरक्षण को रद्द करने तथा दलितों-पिछड़ो के आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग करती है। गांधी मैदान की रैली मोदी राज के पिछले 8 वर्षों के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में कई तरह के कठोर कानूनों के तहत और फर्जी तरीके से अभियुक्त बनाये गये, जेल में डाल दिये गये सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की अविलंब रिहाई की मांग करती है।
कहा गया कि भाजपा बिहार में विगत कई वर्ष सरकार में रही है और उसने सरकारी संस्थानों व नीतियों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। भाजपाई फासीवादी शासन की संस्कृति का बिहार के शासन तंत्र पर जबरदस्त असर अब भी है।
भाजपाई बुलडोजर की तर्ज पर दलितों के घरों को बिना नोटिस उजाड़ देना, आंदोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज करना और गिरफ्तार करना जैसी भाजपाई संस्कृति अब भी जारी है। यह रैली राज्य सरकार से ऐसे मामलों पर तत्काल रोक लगाने, दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करने और बिना वैकल्पिक व्यवस्था के गरीबों को नहीं उजाड़ने की सरकारी घोषणा को जमीन पर लागू करने की अपनी मांग फिर से दुहराती है।
कहा गया कि भाजपा एवं आरएसएस के इशारे पर एनआइए बिहार में लगातार मुस्लिम समुदाय के लोगों को प्रताड़ित व अपमानित करने के काम में लगी हुई है। रैली बिहार की महागठबंधन की सरकार से एनआइए की ऐसी असंवैधानिक कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग करती है।
रैली में वक्ताओं ने कहा कि बिहार में कई गुना ज्यादा राशि वाला बिजली बिल भुगतान न करने की वजह से सैकड़ों दलित-गरीब बस्तियों के घरों का बिजली कनेक्शन काटे जाने और उपभोक्ताओं पर मुकदमा दर्ज करने की घटनायें लगातार सामने आ रही है। यह रैली राज्य सरकार से इस पर अविलंब रोक लगाने, राज्य की बिजली कंपनियों पर नकेल कसने और उनके निगरानी की व्यवस्था कायम करने की मांग करती है।
कहा गया कि राज्य में महिलाओं एवं दलितों के ऊपर लगातार बढ़ रही हिंसा की घटनाएं बेहद चिंताजनक है। गरीबों पर हमला करनेवाले भाजपा संरक्षित गिरोहों को स्थानीय शासन प्रशासन का सह भी हासिल है।
यह रैली राज्य सरकार से दलित-गरीबों और महिलाओं पर हिंसा व हमले की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाने, दोषियों पर कार्रवाई करने तथा भाजपा संरक्षित-अपराधी गिरोहों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मांग करती है।
यह रैली आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को जीने लायक मासिक मानदेय देने के प्रति मोदी सरकार की उदासीनता और विश्वासघात की पुरजोर निंदा करती है। कोरोना काल में उत्कृष्ट भूमिका के बावजूद हालिया बजट में किसी तरह का बजटीय प्रावधान का नहीं होना सरकार के मजदूर विरोधी रवैया को एक बार फिर से जाहिर करता है।
रैली केंद्र सरकार से मांग करती है कि देश के लाखों स्कीम वर्कर्स जिसमें नब्बे फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं, को न्यूनतम 21 हजार मासिक मानदेय और सेवा के नियमितिकरण के न्यायोचित मांग को अविलंब पूरा करे।
इसके साथ ही बिहार सरकार द्वारा राज्य में कार्यरत इन स्कीम वर्कर्स के प्रति बरती जा रही उपेक्षापूर्ण नीति के प्रति यह रैली नाराजगी जाहिर करती है और महागठबंधन के घोषणा पत्र के आलोक में तमाम स्कीम वर्कर्स को राहत देने, ताकि इस भीषण महंगाई में स्कीम वर्कर्स अपने परिवारों का भरण-पोषण कर सके की मांग करती है।
वक्ताओं द्वारा कहा गया कि यह रैली विश्वविद्यालयों और प्लस टू विद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों के समायोजन, लंबित शिक्षक बहाली को अविलंब शुरू करने, बहाली की प्रक्रिया को पारदर्शी व सुगम बनाने तथा विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक माहौल को ठीक करने व सत्र के नियमितीकरण, आदि।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के साथ-साथ संबद्ध महाविद्यालयों में दशकों से कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को अतिथि शिक्षक को मिलने वाली न्यूनतम राशि देने की गारंटी की मांग करती है, ताकि साक्षर भारत के सपने को पूरा किया जा सके।
शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देने वाली नई शिक्षा नीति को वापस लेने, समान स्कूल प्रणाली लागू करने तथा सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने, शिक्षा विभाग के तहत जारी स्कीमों में कार्यरत कर्मियों को सम्मानजनक वेतन व नियमितीकरण, शिक्षा विभाग में बरसों तक अपनी सेवा देने वाले हजारों शिक्षा प्रेरकों की पुनबर्हाली की मांग करती है।
कहा गया कि यह रैली एमएसपी पर केंद्र सरकार के विश्वासघात और खाद उपलब्धता सुनिश्चत करने में उसकी विफलता की तीखी निंदा करते हुए एमएसपी आधारित सभी फसलों की खरीद की गारंटी को लेकर मुकम्मल कानून बनाने की मांग करती है।
रैली बिहार में एपीएमसी एक्ट की पुनबर्हाली की मांग को फिर से दुहराती है तथा अन्य राज्यों की भांति किसानों को कृषि कार्यों के लिए फ्री बिजली देने की मांग करती है। यह रैली टाडा और शराबबंदी कानून के तहत जेल में बंद लोगों की रिहाई और भाकपा-माले नेताओं व विधायकों पर आंदोलनों के दौरान दर्ज किए गए फर्जी मुकदमों को वापस लेने की मांग करती है।
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