एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। 37वाँ पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के अवसर पर 5 फरवरी को दो नाटक का एक साथ मंचन किया गया। उक्त जानकारी कलाकार साझा संघ के सचिव मनीष महीवाल ने दी।
महीवाल ने बताया कि प्रांगण द्वारा आयोजित पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के चौथे दिन 5 फरवरी को संस्कार भारती नाट्य केंद्र आगरा उत्तर प्रदेश की प्रस्तुति नाटककार हरी भाई बड़गांवकर तथा निर्देशक चन्द्रशेखर बहावर द्वारा गधे की बारात का मंचन किया गया।
महीवाल के अनुसार कथासार में वर्ग विभाजन एवं शोषित समाज के हृदय का दर्द जैसे न समाप्त होने वाला घाव है। सामाजिक ताना-बाना और राजनीतिक दुष्चक्र इसमें घी का ही काम करते रहे हैं। इसलिए कभी-कभी शुद्ध अंतःकरण से किया गया प्रयास भी विफल होता रहा है और खाई को पाट नहीं पाया है।
समस्या और विकराल होती चली गयी है। सरकारें आती हैं और चली जाती हैं, किंतु वर्गीय खाई नहीं पाट सकीं। इसी विषय-वस्तु को मनोरंजक शिल्प में नाटक में दिखाने की कोशिश की गयी है। इसके लिए भगवान इंद्र द्वारा शापित चित्रसेन की पौराणिक कथा का सहारा लिया गया है।
नाटक में बताया गया है कि चित्रसेन मृत्युलोक में गधा बनकर अवतरित होता है। राजनैतिक ताने बाने के कारण राजकुमारी प्रियदर्शनी से उसका विवाह होता है। प्रस्तुत नाटक में कल्लू पंकज शर्मा, गंगी निमिषा जैन, राजा चंद्रशेखर बहावर, दीवान राहुल शर्मा, आदि।
बृहस्पति मोंटी, राजकुमारी दिव्यता, इंद्र अरुण भारद्वाज, चित्रसेन दिव्यांश मिश्रा, जासूस/डोंडी वाला ओम गुप्ता, द्वारपाल करण यादव प्रमुख भूमिका में है। नाटक का संगीत दीपक जैन और पुनीत कपूर ने दी है।
महीवाल के अनुसार नुक्कड़ नाटक एच एम टी पटना की प्रस्तुति अंधेर नगरी के लेखक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र निर्देशक सुरेश कुमार हज्जु है। महीवाल ने बताया कि अंधेरी नगरी नाटक का कथासार यह है कि
अंधेरी नगरी आधुनिक नाटक के अद्वितीय सूत्रधार ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द’ की कालजयी कृति है।
इस नाटिका के माध्यम से नाटककार ने तत्कालीन देश में व्याप्त गोरी सरकार के अनीतिपूर्ण शासन पर कटाक्ष किया था, परंतु सृजन के इतने वर्षों बाद भी अंधेरी नगरी अभी तक ताजा और प्रासंगिक है।
नाटक में अपने दो चेलों गोवर्धनदास और नारायणदास के साथ गुरूजी पहुँचते हैं एक ऐसे देश में जिसका नाम था अंधेरी नगरी और उस राज्य को चलाता था चौपट राजा जहाँ भाजी भी बिकती थी टके सेर और टके सेर ही बिकता था मीठा खाजा। गुरूजी के मना करने के बाद भी गोवर्धन रूक जाता है अंधेरी नगरी में।
इधर गिर जाती है एक दीवार और दबकर मर जाती है एक अदद बकरी। मामला पेश होता है चौपट राजा के दरबार में। मुकदमा दर-मुकदमा आगे बढ़ते-बढ़ते पकड़ लिया जाता है गोवर्धन दास को। उसे मिलता है मृत्युदंड। बेचारा गोवर्धन पुकारता है अपने गुरूजी को।
गुरूजी आते हैं और सुझाते हैं एक ऐसी अनोखी तरकीब कि सदा के लिए मिल जाता है और राजा खुद को फाँसी पर चढ़ जाता है।
इस नाटक के पात्र मेंरा जा – गोपी कुमार, मंत्री-रोहित मेहता, सिपाही सुजाता कुमारी, सिपाही नेहा कुमारी. गुरुजी सिमरन कुमारी, गोवर्धन दास-विवेक कुमार, नारायण दास मुस्कान कुमारी, बकरीवाली रिंकी कुमारी/नेहा कुमारी, मछली वाली मुस्कान कुमारी, सिमरन कुमारी, नेहा कुमारी, चना वाला-विवेक कुमार, आदि।
कबाब वाला – गोपी कुमार, चुड़न वाला-विवके कुमार, सपेरा रोहित मेहता, साँप – हर्ष कुमार तथा बादल कुमार, शशि कुमार। सहयोगी कलाकार साजन कुमार, शशी कुमार, हर्ष कुमार, रिया कुमारी, शिवम कुमार, शिबू कुमार, कुमार गौरव सिन्हा, आदित्य कुमार ठाकुर, आदि।
आयुष कुमार, नितिश कुमार, आशिक कुमार, अंकित कुमार, बादल कुमार, आदित्य राज, रौनक कुमार, आर्यन कुमार आदि है। नाटक में संगीत – राजु मिश्रा, हारमोनियम- रोहित चन्द्रा/चंदन उगना, नाल-स्पर्श मिश्रा/चंदन घोष आदि है।
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