अवध किशोर शर्मा/सोनपुर (सारण)। बिहार के सुप्रसिद्ध भजन गायक डॉ दीपक मिश्रा ने हे दु:ख भंजन मारुति नंदन सुनलो मेरी पुकार, पवन सुत विनती बारम्बार भजन से भक्ति की सरिता में भक्तों को खूब डुबकी लगायी। उन्होंने हनुमानजी को अष्टसिद्धि एवं नवनिधि का दाता बताते हुए कहा कि जगत जननी सीता मैया से अशोक वाटिका में वरदान स्वरुप उन्हें यही मिला था।
डॉ मिश्रा सारण जिला के हद में श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम दिव्यदेश में आयोजित 24वें श्री ब्रह्मोत्सव सह श्रीलक्ष्मी नारायण यज्ञ के पांचवें दिन बीते 4 फरवरी की रात्रिकालीन बेला में आयोजित भजन श्रृंखला की अपनी अंतिम प्रस्तुति दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि सियाराम जी के काज संवारे अर्थात दुख निवारण करनेवाले हनुमानजी जी ही है। अपरम्पार है शक्ति तुम्हारी, तुम पर रीझे अवधबिहारी। भक्तिभाव से ध्याऊं तोहे, कर दु:खों से पार पवनसुत विनती बारम्बार। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम भी अपने इस निर्मल हृदय भक्त के अधीन हो गए थे।
हनुमान जैसा सेवक होना कठिन है। भगवान के एक से बढ़कर एक काम किए पर हनुमान जी ने कभी किसी से गर्व पूर्वक नही कहा कि उन्होंने यह काम किया। यही कारण है कि भगवान श्रीराम को भी कहना पड़ा कि किस मिट्टी के बने हो हनुमान, अहंकार छू तक नही सका।श्रीराम ने कहा हे हनुमान तुमने तो मुझे अपना ऋणी बना लिया। ऐसा था हनुमान जी का चरित्र।
सीता स्वयंवर का सांगोपांग वर्णन करते हुए भजन सम्राट डॉ दीपक मिश्रा ने सीता स्वयंवर प्रकरण पर कहा कि बक्सर से जनकपुर सीता स्वयंवर में अपने गुरु विश्वामित्र के साथ श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ जनकपुर पहुंचे। मिथिला की सुंदरता देख लक्ष्मण जी चकित रह गए। उन्होंने इसके लिए गुरुजी से आज्ञा लेकर लक्ष्मण संग मिथिला नगरी भ्रमण पर निकले।
इससे पहले भगवान ने भाई लक्ष्मण को सचेत कर दिया कि नजरें उठा के मत चलना। नजरें झुका के चलना।मिथलानियों ने देखा तो इनके रुप-सौंदर्य को देख पागल सी हो गई।एक सखी दूसरे से कहती है कि कहां से आए हैं तो दूसरी जवाब देती है कि अवध नगरिया से आए हैं दोनों भाई।भोलेपन से लक्ष्मण जी श्रीराम जी से बोलते है कि ऐ कैसे जान गए कि अयोध्या से आए हैं।
अवध नगरिया से अइले दोनों भइया सुनो हो सजनी। इहे होइहें लक्ष्मण राम सुनो हो सजनी। लक्ष्मण जी ने कहा कि भैया! ये तो हम दोनों का नाम भी जानती हैं। तीसरी सखी जिसे पता है कि अयोध्या से बक्सर और वहां से सीता स्वयंवर की जानकारी मिलने पर दोनों भाई जनकपुर आए हैं कहती है कि सीता के बियाह सुनी अइले दोनों संगवा सुनो हो सजनी।
देखन लागे चितचोर सुनो हो सजनी। धनुष भंग, सीता स्वयंबर, जयमाला, मटकोर, सिंदूरदान एवं बिदाई प्रसंग को सुनकर श्रोता-दर्शक भावविभोर हो उठे।
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