महायज्ञ के छठे दिन भ्रात्रि प्रेम की प्रस्तुति

रामायण में भाई के लिए त्याग और महाभारत में भाइयों में आपसी टकराव-शांडिल्य

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। चित्रकूट से पधारे कथावाचक उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने श्रीराम कथा के छठे दिन 4 फरवरी को कहा कि भरत चरित्र सुनने से घर घर में होने वाले झगड़ों पर विराम लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि रामायण और महाभारत में यही अंतर है कि रामायण में एक भाई ने दूसरे के लिए त्याग किया। वहीं महाभारत में दो भाई कौरव और पांडव आपस मे लड़ पड़े। जिससे सैकड़ो हजारों महिलाएं विधवा हो गयी।

श्रीराम की वन लीला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वन में श्रीराम को पिता के रूप में जटायु मिले और माता के रूप में शबरी। सीताजी की रक्षा के लिए जटायु ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। यही भारतीय संस्कृति है। जहां एक पक्षी भी भारत के लाज की रक्षा करने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देता है।

जटायु से शिक्षा लेकर हम सबको भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जटायु के उद्धार कर्म से भगवान् इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी गोद में उठाया और जटायु के शरीर का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया। आगे चलकर श्रीराम शबरी से मिले और उनको माता कहकर पुकारा।

शबरी भीलनी थीं, लेकिन श्रीराम ने उन्हें माता का दर्जा देते हुए कहा कि मैं जाति से अधिक भक्ति का संबंध मानता हूँ। ब्रह्मा जी भी यदि भक्ति से शून्य हों, तो वे प्रभु को प्रिय नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आजकल जातियों के नाम पर जो लोग उन्माद फैला रहे हैं, उन्हें शबरी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।

माता शबरी ने जीवन भर श्रीराम की प्रतीक्षा की। गुरु की वाणी पर उनके भरोसे को देखकर श्रीराम गदगद हो गए। उनके जूठे बेरों को खाकर उन्हें धन्य धन्य कर दिया।

उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने कहा कि हिन्दू समाज को तोड़ने का प्रयास करने वाले तब तक सफल नहीं हो सकेंगे, जबत्तक शबरी और जटायु जैसे महापुरुषों की कथाएं गाई जाती रहेंगी। रामचन्द्र जी ने सुग्रीव को मित्र बनाया और बाली का वध कर दिया। लोग झूठ बोलते हैं कि बाली के सामने जाने पर सबका बल आधा हो जाता था। ये कोरी बकवास है। राम जी परमात्मा हैं। उनका बल आधा हो ही नहीं सकता।

उन्होंने बताया कि आगे चलकर बानरों को सीताजी का पता लगाने के लिए भेजा गया। हनुमान् जी ने समुद्र लांघकर सीताजी का पता लगाया, और लंका को जला डाला। रावण ने पूछा कि तुमने मेरी लंका में आग क्यों लगाई? हनुमान जी ने कहा कि तुमने भी अनेक गांवों और नगरों में आग लगाई।

निर्दोषों की हत्याएं की। इसलिये आज तुम्हारी लंका जल रही है। उन्होंने कहा कि जो दूसरों के घर उजाड़ता है, एक दिन उसका भी घर अवश्य उजड़ता है। दूसरों की खुशी को देखकर ईर्ष्या करने से कोई लाभ नहीं है। जब हम किसी का भला नहीं कर सकते, तो फिर किसी का बुरा करने का हमें कोई अधिकार भी नहीं है।

उन्होंने कहा कि रावण ने जीवन भर दूसरों को रुलाने का काम किया। रावण सबको रुलाता रहा। श्रीराम सबको हंसाते रहे। यही कारण है कि रावण का नाश हो गया और उसके कुल में उसके लिए कोई रोने वाला भी न रहा। विभीषण जी जैसे साधू पुरुष का अपमान कर रावण ने अपनी मौत को आमंत्रित किया। संतों का सम्मान होना चाहिए।

संतों का अपमान करने वाले को रामायण में अभागा कहा गया है। कथा के बीच मे एक से बढ़कर एक मधुर भजन प्रस्तुत किए गए। विश्राम में आरती और महाप्रसाद का वितरण किया गया।

इस अवसर पर गोमियां के पूर्व विधायक छत्रु राम महतो, इंटक नेता श्यामल सरकार, महेंद्र कुमार विश्वकर्मा, वीरेंद्र सिंह, बोकारो थर्मल के थाना प्रभारी शैलेश चौहान, कथारा ओपी प्रभारी प्रिंस कुमार सिंह, स्वांग के परियोजना पदाधिकारी डीके गुप्ता, समाजसेवी राजेश अग्रवाल उर्फ राजू भाई, हरिश्चंद्र यादव, प्रो. एस एन मंडल, राजेश पांडेय, भाजपा नेता विनय सिंह, सुशील सिंह, रामचंद्र यादव, आदि।

यज्ञ समिति के सचिव अजय कुमार सिंह, वेदब्यास चौबे, चंद्रशेखर प्रसाद, एम एन सिंह, इंद्रजीत सिंह, मथुरा सिंह यादव, तापेश्वर चौहान, गोबिंद यादव, देवाशीष आस, बिंदु चंद हेंब्रम सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु गण उपस्थित थे।

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