राष्ट्रग्रंथ घोषित किया जाये रामचरितमानस-उज्ज्वल शांडिल्य

लक्ष्मी-नारायण महायज्ञ के तीसरे दिन जुटी भारी भीड़

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में बेरमो तथा गोमियां प्रखंड के सीमांकन पर स्थित कथारा चार नंबर में 30 जनवरी से 5 फरवरी तक आयोजित श्रीलक्ष्मी-नारायण महायज्ञ एवं हनुमत प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ में लगातार श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है। महायज्ञ के तीसरे दिन एक फरवरी को आयोजित श्रीराम कथा में भारी भीड़ जुटी।

श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथावाचक उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने कहा कि रामचरितमानस को राष्ट्रग्रंथ घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि देश में कुछ गलत मानसिकता के लोग रामायण जलाने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों ने रामचरितमानस का अच्छे से अध्ययन ही नहीं किया है।

उन्होंने कहा कि रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने किसी जाति, लिंग एवं सम्प्रदाय के साथ भेदभाव नहीं किया है। अपने कर्म के आधार पर व्यक्ति महान बनता है। ब्राह्मण होने पर भी रावण अपने कुकर्मों के कारण मारा गया। वहीं, केवट अपने सत्कर्म के कारण आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

युवाओं का आह्वान करते हुए महाराज जी ने कहा कि युवाओं को अपना आदर्श बदलना चाहिए। युवा यदि श्रीराम को अपना आदर्श बनाएंगे, तो उनके जीवन में नीति, ज्ञान, मर्यादा, शालीनता जैसे दिव्य गुणों का विकास होगा। सिनेमा के चक्कर में फंसकर युवा अपना भविष्य बर्बाद न करें।

युवा वर्ग जिस जवानी को फ़िल्म, शराब और मौज मस्ती में बर्बाद कर देते हैं, उसी युवा अस्वस्था में भगत सिंह देश के लिए फांसी पर चढ़ गए। अपनी जवानी को देश और अपने आत्मकल्याण के लिए न्यौछावर कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि रामायण में 6 यज्ञों का वर्णन है – दक्ष का यज्ञ, दशरथ जी का यज्ञ, विश्वामित्र का यज्ञ, धनुष यज्ञ, रावण का यज्ञ और मेघनाद का यज्ञ। किसी को नीचा दिखाने के उद्देश्य से किया गया यज्ञ असफल हो जाता है। दक्ष ने शिव जी को नीचा दिखाने के लिए यज्ञ का आयोजन किया था, इसलिए उसका यज्ञ असफल हो गया।

बाद में जब देवताओं ने जाकर शंकर की स्तुति की, तब जाकर शिव जी प्रसन्न हुए और दक्ष को बकरे का सिर लगा दिया। उन्होंने कहा कि देवाधि देव भगवान शंकर ने तीन लोगों के सिर काटे- गणेश का, ब्रह्मा का और दक्ष प्रजापति का। इसका अर्थ यह है कि शंकर को अहंकार बिल्कुल भी प्रिय नहीं है।

कथा सुनने और सुनाने का भी यही उद्देश्य है कि हमारे जीवन से अहंकार का नाश हो जाए। अहंकारी व्यक्ति की उन्नति रुक जाती है। हमें हनुमान् जी के समान अहंकार रहित होकर ईश्वर और समाज की सेवा करनी चाहिए। हनुमान् जी ने अनेक बड़े बड़े काम किए, परन्तु कभी सफलता का श्रेय नहीं लिया।

आज लोगों में श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। आजकल हर कोई कहता है कि फलाना काम मैंने किया। हनुमान् जी ने सबकुछ करते हुए कभी ये नहीं कहा कि मैंने किया। बल्कि हनुमान् जी हमेशा कहते रहे कि सबकुछ मेरे प्रभु श्रीराम ने किया।

राम जन्म की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जब रावण का अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना की। भगवान् ने आकाशवाणी करके कहा कि मैं दशरथ के घर पर पुत्र बनकर आऊँगा। श्रीराम चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को प्रगट हुए और धरती के भार को उतारा।

राम अवतार के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जब परमात्मा छोटे से बालक के रूप में आ जाएं, जब सारे विश्व का स्वामी एक सेवक के रूप में आ जाये, उसी को अवतार कहते हैं। अवतार का अर्थ है उतरना। जब ईश्वर अपनी कक्षा से नीचे उतरते हैं, उसे ही अवतार कहते हैं। अवतार का सिद्धांत केवल सनातन धर्म में है। हमारे यहाँ ईश्वर निर्गुण भी हैं और सगुण भी।

महाराज जी ने श्रीराम जन्म के अवसर पर अनेक मधुर भजन प्रस्तुत किए गए। साथ ही दिव्य झांकी भी प्रस्तुत की गई। मौके पर कथारा चार नंबर यज्ञ समिति के सचिव अजय कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष चंद्रशेखर प्रसाद, वेदव्यास चौबे, एम एन सिंह, इंद्रजीत सिंह, हेमंत कुमार, पी के जयसवाल आदि उपस्थित थे।

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