परियोजना प्रभावितों के लिए नर्क है माहुल
विशेष संवाददाता/ मुंबई। भोपाल की राह पर चल पड़ी चेंबूर (Chembur) की दर्जनों केमिकल्स एवं गैस कंपनियां के कारण माहूलवासियों पर खतरनाक बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है। इससे माहूल का म्हाडा कॉलोनी (Mahul Mhada Colony) गैस चेंबर बन गया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां की जनता अब माहूल के फ्लैटों में रहने के बजाय अपनी खोली में जाना चाहते हैं। इसके लिए माहूल के लोगों ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से स्वास्थ्य एवं जीवन का हवाला देते हुए इस नर्क से बाहर निकालने की गुहार लगाई है।
हालांकि इन इमारतों के निर्माण के समय बीपीसीएल प्रबंधन द्वारा तत्कालीन सरकार को सुरक्षा का हवाला देते हुए परियोजना को रोकने का संकेत भी दिया था। इसके लिए बीपीसीएल प्रबंधन द्वारा मुंबई हाईकोर्ट, राज्य एवं केंद्रीय गृह मंत्रालय का दरवाजा भी खट-खटाया गया। बावजूद इसके नेता और बिल्डरों ने बहती गंगा में हाथ धोया और मुंबईकरों को नर्क में धकेल दिया।
गौरतलब है कि वर्ष 2003 में आघाड़ी सरकार के दौर में माहूल के म्हाडा कालोनी का निर्माण शुरू हुआ था। उस समय भारत पेट्रोलियम कॉपोरेशन लिमिटिड द्वारा इस परियोजना को रोकने अथवा बंद कराने के लिए मुंबई हाईकोर्ट, राज्य एवं केंद्रीय गृह मंत्रालय का दरवाजा भी खटखटाया गया। इसके बावजूद तत्कालीन सरकार के अधिकारी, नेता और बिल्डरों ने किसी की नहीं सुनी और परियोजना को पूरा कर मुंबईकरों को नर्क में धकेल दिया।
माहूल के म्हाडा कालोनी में स्कूल, हॉस्पिटल, खेल का मैदान, जल निकासी के उचित साधन जैसी कोई सुविधा नहीं है। जिसके कारण माहूल के म्हाडा कालोनी में गंदगी का साम्राज्य है। सूत्रों की माने तो इस कालोनी को बनाने के दौरान बड़ी संख्या में मैंग्रोस को नुकसान पहुंचाया गया।
बताया जाता है कि राज्य सरकार के पीएपी योजना के तहत जबरन माहूल के म्हाडा कॉलोनी में भेजे गए लोग बेहद परेशान हैं। मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां की जनता मनपा और म्हाडा के अधिकारियों को कोस रही है। क्योंकि सात और आठ मंजिले इन इमारतों की अधिकांश लिफ्ट खराब हैं या फिर बंद हैं। इसके बावजूद मनपा के अधिकारियों ने बीमार और बुजुर्गों को चौथी और सातवीं मंजिल के फ्लैटों को आवंटित किया है। इससे लोगों की परेशानियां और भी बढ़ गई है।
जबकि इन इमारतों के निर्माण के समय ही बीपीसीएल (भारत पेट्रोलियम एंड कॉपोरेशन लिमिटिड) द्वारा सुरक्षा मानकों का हवाला देते हुए इस परियोजना को बंद या रद्द कराने की मांग की गई थी। लेकिन तत्कालीन आघाड़ी सरकार ने किसी की न सुनी और अदालतों में चल रही सुनवाई के दौरान ही आनंन-फानंन में 6, 7 और 8 मंजिली इमारतों को बनाकर तैयार कर दिया। इतना ही नही श्रेय लूटने के लिए आघाडी के मंत्रियों ने लोगों का पुनर्वसन भी कर दिया।
जबकि माहूल की म्हाडा कॉलोनी में अब भी पेयजल, रोड, नाला आदि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। इसके अलावा 6, 7 और 8 मंजिले इमारतों की अधिकांश लिफ्ट खराब है या फिर पूरी तरह से बंद है। ऐसे में इन इमारतों में रहने वाले बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए सीढ़ियों के सहारे चार या छह माला चढ़ना उतरना पहाड़ की तरह हो गया है। इनमें कई बुजुर्ग और बीमार लोग ऐसे भी हैं जो हफ्ता, पंद्रह दिनों तक नीचे नहीं उतरते, क्योंकि नीचे आने के बाद ऊपर चढ़ना उनके लिए संभव नहीं होता। यहां की सबसे बड़ी समस्या पेयजल और ड्रेनेज लाईन का है। इसके अलावा यहां गंदगी का सम्राज्य है।
सूत्रों की माने तो माहूल के म्हाडा कॉलोनी की कुल 72 इमारतों में करीब 15,500 फ्लैट्स हैं। हाल के दिनों में महापौर महाडेश्वर ने अपने दौरे के समय कहा था कि माहूल का म्हाडा कॉलोनी इंसान के रहने के लायक नहीं है। गौर करने वाली बात यह है कि अब महाराष्ट्र सरकार ने 225 वर्ग फुट की जगह 269 वर्ग फुट का घर मुंबईकरों को देने का फैसला किया है। जब कि धारावी के लोगो को 350 वर्ग फुट का घर देने पर सहमति बनी है। इस तरह मुंबई व उपनगरों के विभिन्न परियोजनाओं के प्रभावितों के साथ सरकार द्वारा सौतेला रवैया अपनाया जा रहा है।
जबकि मौजूद भाजपा सरकार का दावा है कि सबका साथ सबका विकास किया जाएगा। तो माहुल के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? बहरहाल सुरक्षा मानकों के मद्देनजर माहूल में मुंबईकरों का पुनर्वसन उचित नहीं है। क्योंकि बीपीसीएल से सटे इस कॉलोनी से कभी भी खतरा हो सकता है। इतना ही नहीं माहूल के एजिस केमिकल्स कंपनी और सिलॉर्ड केमिकल्स कंपनी की समस्याओं से जूझ रहे माहूल गांव के लोगों ने धरना प्रदर्शन भी किया लेकिन मौजूदा सरकार की नींद अभी तक नहीं खुली है। शायद सरकार किसी हादसे का इंतजार कर रही है।
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