अंधविश्वास और अफवाह के खिलाफ समाज को होना होगा जागरूक-सुरेंद्र मानपुरी
अवध किशोर शर्मा/सोनपुर (सारण)। वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र मानपुरी की कानून जगत में लोकख्याति प्राप्त पुस्तक भीड़ हिंसा में लोकतंत्र को भीड़ तंत्र में बदलने से बचाव का उपाय भी है तो भीड़ हिंसा से कानून के राज पर निरंतर होते आघात का बारीकी से क्रमवार वर्णन एवं हृदयविदारक चित्रण के साथ आधुनिक समाज के लिए चेतावनी भी है।
मानवीय संवेदनाओं से रहित आदिम समाज की बर्बरतापूर्ण कार्यों से वर्तमान समय की ‘भीड़ हिंसा’ की तारतम्यता को जोड़ कर देखना इस पुस्तक की विशिष्टता एवं लेखक की दूरदर्शिता को भी दर्शाता है।
इसी पुस्तक के संदर्भ में 8 जनवरी को “भीड़ हिंसा” के लेखक सुरेन्द्र मानपुरी से बातचीत के क्रम में उन्होंने उक्त पुस्तक की थीम बताते हुए कहा कि आज कल विश्व की समस्या बन चुकी है अंधविश्वास, अफवाह एवं भीड़ हिंसा।
अजनवी व असहाय को बच्चा चोर और किसी बूढ़ी मां को डायन बताकर मारने-पीटने एवं हत्या कर देने की घटना राष्ट्रीय चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि मेरी पुस्तक ‘भीड़ हिंसा’ समाज को कबीलाई संस्कृति की ओर लौटने से सतर्क कर रही है।
देश का संविधान और कानून भीड़ को जज की भूमिका निभाने और सजा देने का अधिकार नही देता। उन्होंने कहा कि धरती पर अब भी अंधविश्वास का ब्लैकहोल कायम है। अपराध नियंत्रण का आखिरी उपाय केवल दंड नही, बल्कि उसके समानांतर नैतिक शिक्षा इंसान को सभ्य और अहिंसक बनाने के तौर-तरीके को विकसित किया जाना भी है।
लेखक मानपुरी ने कहा कि आचार्य शान्ति देव की पुस्तक ‘बोधिचर्यावतार’ ने भी इसी बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि ‘भयंकर से भयंकर अन्याय को जीतने की शक्ति मैत्री में होती है।’ महाकवि नीरज की वाणी से ‘प्यार विन मनुष्य दुश्चरित्र है’ में भी यही दृष्टि काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में अनुशासन का टूटना समाज के लिए घातक है। देशहित के खिलाफ है। एक देश में दो विधान अलगाववादी तत्त्वों को उभरने और आवाज उठाने का मौका देती है।
भीड़ हिंसा के लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी विभूतिनारायण राय के आलेख के ” त्वरित न्याय का बढ़ता अन्याय” के इन पंक्तियों से स्वयं सहमत हैं कि भीड़ द्वारा किसी चोर या चोर होने की आशंका में किसी को पीट-पीट कर मार डालने की प्रवृति का विस्तार ही पुलिस इनकाउंटर है।पुलिस इनकाउंटर का मतलब है कि पुलिस जज एवं जल्लाद दोनों का खुद रोल निभा रही है।
इस पुस्तक में पुलिस अनुसंधान के गलत तौर-तरीकों के कारण भी अपराधी मुक्त हो जाते हैं और निर्दोष जेल में डाल दिए जा रहे हैं, जबकि न्याय का नैसर्गिक सिद्धांत है कि सौ दोषी भले ही छूट जाए पर एक भी निर्दोष को जेल में डाला जाना स्वयं में एक बड़ा अपराध है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि पुलिस का अनुसंधान वैज्ञानिक तौर-तरीकों से लैस नही है। अनुसंधान करनेवाले पहुंच और प्रभाव में आ जाते हैं।
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