सिद्धार्थ पांडेय/जमशेदपुर (झारखंड)। मानव कल्याण, वीरता और बलिदान के साक्षात स्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह मानव कल्याण के लिए प्रेरणास्रोत है। उक्त बाते क्षेत्र के समाजसेवी गुरुदयाल सिंह ने 29 दिसंबर को कही।
उन्होंने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय, अत्याचार और पापो को खत्म करने के लिए और गरीबों की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया।
गुरुद्वारा मे गुरु गोबिंद सिंह के जन्मोत्सव सह प्रकाशोत्सव पर विचार व्यक्त करते हुए समाजसेवी गुरुदयाल सिंह ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जनसाधारण में कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।
गुरु गोविन्द सिंह जहाँ विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं।
भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है।
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