अंगवाली में सन् 1860 से श्रद्धा भाव से हो रही है माँ दुर्गा की पूजा

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। पेटरवार प्रखंड के बधाई में अंगवाली गांव में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना सन् 1860 ई यानि 163 वर्ष से होते आ रही है।

ज्ञात हो कि, उक्त पूजा स्थल बोकारो जिला के हद में फुसरो शहर से दक्षिण, पेटरवार से उत्तर, जैनामोड़ से पश्चिम तथा तेनूघाट से पूरब दिशा में बसा हुआ है। गांव की सूरत फिलवक्त पहले से काफी बदल चुकी है।

पहले के ग्रामीण खेती गृहस्थी या छोटा व्यवसाय जैसे राशन दुकान, भौंरी कर गुजारा करते थे। फिर भी उनके हृदय में धार्मिक भावना कम नही थी। उस समय सार्वजनिक धर्म स्थल मंडपवारी चौक के बीचो-बीच विशाल पीपल का पेड़ था।

पूर्व के बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार सन् 1859 में गांव के चार जिगरी दोस्त दुर्गा प्रसाद भगत, सालिक साव, अनु प्रग्नैत एवं देबू लायक (सभी दिवंगत) ने निकट के गांव बसेरिया से दुर्गा पूजा देखकर घर लौटते वक्त यह सोच बनाई कि हम लोग भी अपने गांव में पूजा करेंगे।इसके अगले वर्ष 1860 में सार्वजनिक चौक के उत्तरी भाग में एक स्थल पर पत्थर के आकार के मां की आकृति की पूजा की शुरुआत कर किया गया।

फिर क्या था, कालांतर में पुरे गांव के रहिवासी पूजा का कमान संभालते आ रहे हैं। पूजा स्थल पर शुरू के दस, बारह वर्षों तक घोरावन से घेराबंदी होता रहा। फिर कच्चा दीवाल तो बड़े बड़े कुंदे हुए पत्थरों की जोड़ाई कर मंदिर का आकार दिया गया।

स्थानीय रहिवासी स्व नंदलाल भगत, जगेश्वर प्रसाद भगत, जयलू लायक, धनीलाल मिश्रा, द्वारीकानाथ मिश्रा, बलदेव साव, सदानंद साव, रूपलाल साव, रथू महतो, जयनाथ महतो, महादेव सिंह, सुखलाल कपरदार, बहादुर रजवार, नंदलाल सिंह, हरिनारायण मिश्रा, रामबिलास भगत, राजेंद्र भगत, शिव प्रसाद साव, मथन पाल, आदि।

करमचंद साव, नारायण मिश्रा, अवध मिश्रा, विशेश्वर साव, मोती कपरदार, भीम कपरदार, रोहन कपरदार, डीलेश्वर महतो, मोहन राम शर्मा, बंशीधर मिश्रा, गौरीनाथ कपरदार, देवब्रत जयसवाल, हिमाचल मिश्रा, धर्मेंद्र कपरदार आदि प्रारंभ से अबतक क्रमवार पूजा की कमान संभाला है।

इस वर्ष अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी सत्यजीत मिश्रा पर है। मुखिया धर्मेंद्र सहित दर्जनों युवक इनका साथ दे रहे हैं। पूजा पाठ की जिम्मेवारी गांव के ही द्वारिका चटर्जी के वंशज बनमाली चटर्जी, कीर्तिवास चटर्जी, महावीर चटर्जी, नरेंद्र चटर्जी, मदन चटर्जी, अजीत चटर्जी, बीसू चटर्जी आदि ने संभाला है।

वर्तमान में गौर बाबा, प्रफुल्य, अनूप, संतोष, रामपद, राजेश आदि संभाल रहे हैं। पूर्व से प्रारंभ बलि प्रथा को कोई अस्सी साल पूर्व ही बंद कर यहां वैष्णवी पूजा की शुरुआत की गयी। कालांतर में मंदिर को भव्य रूप दिया गया और आयोजक ग्रामीणों के सहयोग से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करने लगे। यहां नौ दिनों तक श्री दुर्गा सप्तशती पाठ भी कराई जाती है।

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