साभार/ नई दिल्ली। फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों ने बेशक बीजेपी को बैचेन किया हो, लेकिन सबसे ज्यादा हालत कांग्रेस की खराब हुई है। आज यूपी में कांग्रेस की हैसियत चौथे नम्बर पर पहुंच गई है। आज कांग्रेस के पास यूपी में खोने लायक कुछ नहीं बचा है। लेकिन कांग्रेस का आलाकमान इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि 2019 की राह डिप्लोमेसी डिनर से ज्यादा यूपी से आसान होगी।
इस बात को ध्यान में रखते हुए ही 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस एक दांव चल भी चुकी है। ये बात अलग है कि उसे उसमें कामयाबी नहीं मिली। पहले कांग्रेस के सियासी उस्तादों ने ‘27 साल यूपी बेहाल’ का नारा देकर और राहुल गांधी की खाट सभा से माहौल बनाने की कोशिश की। रातों-रात शीला दीक्षित को यूपी के मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित कर दिया। लेकिन इसका भी कोई फायदा मिलता हुआ नहीं दिखाई दिया।
फिर अचानक से सपा की साइकिल पर सवार होकर नया नारा दिया ‘यूपी को ये साथ पसंद है।’ लेकिन कांग्रेस का ये दांव भी नहीं चला और यूपी को लड़कों का ये साथ भी पसंद नहीं आया। उसके बाद जो कुछ हुआ उससे सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। 2017 की हार ने कांग्रेस को करारा झटका दिया। जबकि यूपी में जीत के बाद कांग्रेस यह दिखाना चाहती थी कि यूपी और बिहार में वो सत्ता में है फिर चाहे पार्टनर की शक्ल में ही क्यों न हो। इसके सहारे कांग्रेस 2019 की कमान अपने हाथों में लेना चाहती थी।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रो. एके वर्मा का कहना है, ‘14 मार्च को फूलपुर और गोरखपुर ने एक बार फिर कांग्रेस को चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। दोनों ही उप चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई है। फूलपुर में तो हालत ये है कि निर्दलीय प्रत्याशी अतीक अहमद कांग्रेस प्रत्याशी से दोगुना करीब 40 हजार वोट लेकर आए हैं। जबकि चौथे नम्बर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी मनीष को 19353 वोट मिले हैं। वहीं गोरखपुर में तीसरे नम्बर पर रहीं सुरहिता करीम को 18858 वोट मिले हैं।’
फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों के बाद कांग्रेस का हाथ खाली है। वह किसी भी सियासी मंच पर शर्त रखने लायक बची नहीं दिख रही। 2019 के लिए यूपी में गठबंधन के आसार भी धुंधले नजर आ रहे हैं। सपा-बसपा गठबंधन की कामयाबी ने भी कांग्रेस को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है। बावजूद इसके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अभी आस नहीं छोड़ी है। बेशक उन्होंने फूलपुर और गोरखपुर में सपा-बसपा को समर्थन नहीं दिया हो, इसके बाद भी वह उनकी खुशी में शामिल हुए।
साथ ही ये कहकर कि ‘कांग्रेस उत्तर प्रदेश में नवनिर्माण के लिए तत्पर है’, लेकिन यह रातों-रात नहीं होगा। साथ ही जनता उस गैर-बीजेपी प्रत्याशी को वोट करेगी, जिसके जीतने की संभावना सबसे ज्यादा होगी’ ये इशारा भी दे दिया कि कांग्रेस समझ चुकी है कि यूपी में अब बिना गठबंधन के कुछ हासिल होने वाला नहीं है।”
प्रोफेसर वर्मा का कहना है, ‘ऐसे हालात में अगर कांग्रेस को गठबंधन में ही जगह मिल जाती है तो ये बड़ी बात होगी, सियासी मोलभाव की तो बात ही दूर हो जाती है। और फिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को यूपी में अपनी-अपनी सीट भी बचानी है।’ डॉ. बीआर अंबेडकर विवि के प्रोफेसर मुहम्मद अरशद का कहना है कि ‘उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं, ऐसे में उत्तर प्रदेश में सफलता नहीं मिलने की स्थिति में दिल्ली की राह मुश्किल हो जाती है। ऐसे में ये जरूरी है कि 2019 के लिए यूपी को साध कर रखा जाए।’
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